कल तक राजनीति के अभिमन्यु को जयंत ने बनाया अर्जुन

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– बागपत लोकसभा सीट अपनी जगह डा. राजकुमार सांगवान को प्रत्याशी बनाया
– जाट ही नहीं सर्वसमाज से जुड़े डा. सांगवान की छवि है पूरी तरह निर्विवाद


अनुज मित्तल ( समाचार संपादक)

मेरठ। छात्र राजनीति से सक्रिय राजनीति तक पूरा जीवन रालोद को समर्पित करने वाले डा. राजकुमार सांगवान को अब राजनीति का अभिमन्यु माना जाने लगा था। लेकिन सोमवार को रालोद मुखिया चौ. जयंत सिंह ने उन्हें चुनावी रण का अर्जुन बना दिया। अहम बात ये है कि पूरे कयास लगाए जा रहे थे कि बागपत सीट पर जयंत खुद चुनाव लड़ेंगे, लेकिन उन्होंने सारे मिथक तोड़ दिए। वहीं बिजनौर में भी विधायक चंदन चौहान को टिकट देकर शारदा एक्सप्रेस की न्यूज पर मुहर लगा दी है।

डा. राजकुमार सांगवान

डा. राजकुमार सांगवान पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति का बड़ा चेहरा हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि सारे राजनीतिक दलों के नेता डा. राजकुमार सांगवान को न केवल सम्मान देते हैं, बल्कि उनकी हर वर्ग में पकड़ है। सक्रिय राजनीति में रहने के बावजूद डा. राजकुमार सांगवान अकेले ऐसे नेता हैं, जिन पर आज तक कोई विवाद नहीं है। उनके काम और संवाद दोनों ही निर्विवाद रहे हैं।

चौधरी जयंत सिंह ने सोमवार को बागपत और बिजनौर लोकसभा सीट को लेकर सारी अटकलों पर विराम लगा दिया। बागपत से अपने पुराने कार्यकर्ता डा. राजकुमार सांगवान को इनकी निष्ठा का ईनाम दिया है। बिजनौर सीट पर पूर्व उप मुख्यमंत्री नारायण सिंह के पौत्र चंदन चौहान को चुनावी मैदान में उतारा है। 1977 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि जब चौधरी चरण सिंह के परिवार की बजाय बागपत लोकसभा सीट से सामान्य कार्यकर्ता को टिकट दिया गया है।

बागपत लोकसभा सीट पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की कर्मस्थली रही है। यहीं से वह पहली बार सांसद बने। चौधरी अजित सिंह ने भी अपने राजनीतिक जीवन का आगाज बागपत से ही किया। जयंत ने भी यहां से चुनाव लड़ा, हालांकि वे जीत नहीं पाए। ऐसे में भाजपा से गठबंधन के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि जयंत या तो खुद यहां से लड़ेंगे या फिर चारू को चुनाव मैदान में उतारा जाएगा। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से चौ. जयंत सिंह ने यहां एक सामान्य कार्यकर्ता की तरह काम करने वाले रालोद के राष्ट्रीय सचिव डा. राजकुमार सांगवान को प्रत्याशी घोषित कर दिया।

बागपत सीट के इतिहास और चुनावी समीकरण की बात करें तो साल 1998 को छोड़कर साल 2014 तक लगातार इस सीट पर किसानों के बड़े नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और उनके परिवार का कब्जा रहा है।

बिजनौर पर युवा चेहरा चंदन सिंह चौहान

– चंदन सिंह चौहान

बिजनौर सीट पर भी भाजपा-रालोद गठबंधन के बाद समीकरण बदले हैं। यहां पर मुस्लिम और दलित वोटों के बाद सबसे ज्यादा संख्या गुर्जर वोटों की है और उसके बाद जाट, ठाकुर, वैश्य आदि के साथ पिछड़ा वर्ग के वोट आते हैं। इस समीकरण को देखते हुए रालोद ने यहां से 2009 में भाजपा से गठबंधन का समीकरण दोहराया है। 2009 में भी यह सीट रालोद के खाते में गई थी और संजय चौहान सांसद बने थे। इस बार मीरापुर से विधायक और संजय चौहान के पुत्र चंदन सिंह चौहान को बिजनौर लोकसभा से प्रत्याशी बनाया है।

चंदन सिंह चौहान को राजनीति विरासत में मिली है। उनके बाबा चौधरी नारायण सिंह जहां यूपी के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं, तो उनके पिता संजय सिंह चौहान पहले एमएलए और बाद में सांसद रह चुके हैं।

बागपत की राह आसान तो बिजनौर में मुकाबला कड़ा

रालोद को भाजपा गठबंधन में दो सीटें मिली हैं। फिलहाल दोनों सीटों का जो समीकरण है, उसमें बागपत से रालोद की राह इस बार बहुत आसान नजर आ रही है। लेकिन बिजनौर में मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद की जा रही है। क्योंकि यहां पर सपा ने जहां बिजनौर की पूर्व विधायक रूचिवीरा को मैदान में उतारा है, तो बसपा से वर्तमान सांसद मलूक नागर का टिकट फाइनल माना जा रहा है।

क्योंकि चंदन चौहान भी गुर्जर हैं, तो रालोद ने यहां अपने मूल जाट वोट बैंक और भाजपा के वोटर के सहारे गुर्जर वोट कटने की सोच के साथ चंदन सिंह चौहान को उतारा है। लेकिन मलूक नागर का गुर्जर बिरादरी में बड़ा कद है और सांसद बनने के बाद से वह लगातार अपनी लोकसभा क्षेत्र में सक्रिय भी रहे हैं। ऐसे में दलित और गुर्जर वोटों के साथ उन्हें मुस्लिम वोट मिलता भी नजर आ रहा है। हालांकि रूचिवीरा बिजनौर शहर के मुस्लिम वोटों पर पकड़ रखती हैं, लेकिन रालोद प्रत्याशी के सामने बसपा को ज्यादा मजबूत देखते हुए मुस्लिम वोट यहां बसपा के पक्ष में धु्रवीकरण कर सकता है।

यदि मुस्लिम वोट बसपा के पाले में चला गया तो यहां रालोद प्रत्याशी के लिए मुश्किल फंस सकती है। क्योंकि बिजनौर सीट पर मुस्लिम वोटों की संख्या बहुत अच्छी संख्या और निर्णायक स्थिति में है।

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