– मेडा की कार्रवाई हो जाती तो अतुल का धरना भी आज हो जाता समाप्त।
– राजनीतिक दबाव के चलते हो रही कार्रवाई में देरी, बन सकती है प्रशासन के गले की फांस।
– आईएमए भी लामबंद होकर अब बना रहा पुलिस प्रशासन पर दबाव।
अनुज मित्तल, शारदा न्यूज़, मेरठ। न्यूटिमा अस्पताल प्रकरण अब प्रशासन के गले की फांस बनने जा रहा है। मेडा तो अपने स्तर से मामले को ठीक करने की कवायद में जुटा है, लेकिन राजनीतिक दबाव में कहीं न कहीं स्वास्थ्य विभाग के साथ ही पुलिस प्रशासन दबाव में नजर आ रहा है। क्योंकि आज अगर मेडा की कार्रवाई हो जाती, तो अतुल प्रधान का अनशन भी मंगलवार को समाप्त हो सकता था। ऐसे में सभी को राहत की सांस मिलती। लेकिन प्रशासन, पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की इस मामले में नूराकुश्ती अब सबको नजर आ रही है।
न्यूटिमा अस्पताल मामले में राजनीति किस कदर हावी हो चुकी है। यह अब जनता को भी साफ नजर आने लगा है। इस पूरे मामले में अब सिर्फ मेडा ही एक ऐसा विभाग बचा है, जो दबाव से अलग नजर आ रहा है। लेकिन पुलिस, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग सभी पर दबाव साफ नजर आ रहा है।
न्यूटिमा अस्पताल की शिकायत नई नहीं है। बल्कि करीब पांच साल से इस अस्पताल के अनियमित निर्माण की शिकायत मेडा कार्यालय में है और मामला कोर्ट में भी है। बावजूद इसके आज तक इस अस्पताल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस बार अस्पताल प्रबंधन सपा विधायक से उलझ गया, तो मामला तूल पकड़ गया और पुरानी फाइलें धूल साफ कर बाहर आ गई। जिसके चलते मेडा अपनी कार्रवाई को अंजाम देने की कवायद में जुटा है।
लेकिन दूसरी ओर इस मामले में भाजपा जहां पूरी तरह अस्पताल लॉबी के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है, तो इसी के चलते सत्ता का दबाव भी पुलिस प्रशासन पर साफ नजर आ रहा है। जिस कारण चिकित्सकों के हौंसले बुलंद हैं। वहीं सपा विधायक अतुल प्रधान को अपनी ही पार्टी का खुलकर समर्थन नहीं मिल पा रहा है।
हालांकि इस जनहित के मुद्दे पर उनके समर्थक कहीं न कहीं आम जनता को अपने साथ जोड़ने में कामयाब होते नजर आ रहे हैं। अतुल प्रधान ने भी इस मामले को लेकर एक मुहिम सी छेड़ दी है। उन्होंने जिले भर में पत्रक वितरित कराते हुए जनहित के इस मुदÞ्दे पर आम जनता का साथ मांगा है और धरने में शामिल होने की अपील की है।
अब अतुल प्रधान की यह मुहिम कब तक और कितना मुकाम तक पहुंचेगी। यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन फिलहाल एक तरफ जहां जिस तरह अतुल प्रधान का समर्थन जहां लगातार बढ़ रहा है, वहीं चिकित्सकों की लामबंदी भी गहरी होती जा रही है। जिसके चलते पुलिस प्रशासन के गले में यह मामला फंस सकता है। इन सबके बीच अहम बात ये भी है कि यह मामला इस वक्त हाईकोर्ट भी जा चुका है, वहां से भी होने वाले फैसले पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं।