जब बात शहीदों की होती है ।
आँखें सावन सी रोती हैं ।
अगर अंहिसा से आजादी मिल जाती।
क्यों भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव को फांसी दी जाती ।
याद करो जलियां वाला बाग।
इरादे अंग्रेजो के नापाक।
अगर अंहिसा थी हथियार।
क्यों हुआ बोली पर ,गोली का वार।
नाम शहीदों के गिनना मुश्किल हैं।
उन फूलों से बेहतर फूलों का खिलना मुश्किल हैं।
पाई अंहिसा से आजादी भारत ने
अब ये जुमला भी सुनना मुश्किल हैं।
बापू छपे हैं नोटों पर ।
कुछ भाई बटे हैं वोटों पर।
कभी शहीदो के घर जाकर देखो तुम ।
मुस्कान नहीं हैं परिजन के होठों पर ।
अरविन्द कुमार तोमर
आदरणीय संपादक महोदय,
मैं आपका हार्दिक आभारी हूँ ,
आपने मेरी रचना ” जब बात शहीदो की होती हैं ” को अपने समाचार पत्र की वैबसाइट पर प्रकाशित कर मेरा उत्साहवर्धन किया ।
मेरा सम्मान बढाया
धन्यवाद।
आपका – अरविन्द कुमार तोमर।