– लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सपा को दी चेतावनी
– भाजपा नेतृत्व को किया सोचने पर मजबूर
अनुज मित्तल (समाचार संपादक)
मेरठ। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश पूरे देश में अहम भूमिका निभाता है। कहा भी जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर ही गुजरता है। ऐसे में इस बार भी लोकसभा चुनाव में यूपी की भूमिका अहम होगी। ऐसे में भाजपा, सपा सहित बसपा भी अहम भूमिका में रहने वाले हैं। फिलहाल किसी भी गठबंधन से बाहर बसपा सुप्रीमों मायावती ने बृहस्पतिवार को बहुत दिनो के बाद मीडिया के सामने आकर दिए बयान से राजनीतिक दलों में खलबली मचा दी है।
मायवती विपक्षी सांसदों के निलंबन, राज्यसभा के सभापति के अपमान, संसद की सुरक्षा आदि के तमाम बिंदुओं पर अपना वक्तव्य रखा। लेकिन इन सबके बीच आईएनडीआईए गठबंधन और आने वाले लोकसभा चुनाव की तरफ इशारों में दिए गये बयान ने सभी के होश उड़ा दिए हैं।
मायावती ने कहा कि आईएनडीआईए गठबंधन में बसपा सहित जो भी दल शामिल नहीं है, उनके खिलाफ बेफिजूल टीका टिप्पणी करना उचित नहीं है। क्योंकि भविष्य में देश व जनहित में कब किसको, किसी की भी जरूरत पड़ जाये, यह कुछ भी कहा नहीं जा सकता है। तब उन्हें शर्मिदंगी न उठानी पड़े। हालांकि इस मामले में समाजवादी पार्टी इसका जीता जागता उदाहरण है।
मायवती का सपा को लेकर दिया गया यह सीधा बयान गठबंधन में खलबली मचा गया है। क्योंकि गठबंधन की पिछले दिनों हुई बैठक में अखिलेश और रामगोपाल यादव ने बसपा को लेकर मुद्दा उठाया था। समाजवादी पार्टी नहीं चाहती कि बसपा उनके साथ आए। क्योंकि बसपा के गठबंधन में आने से यूपी के भीतर सीटों का बंटवारा करने में सपा को काफी नुकसान होगा। फिलहाल यूपी में कांग्रेस और रालोद को समाजवादी पार्टी अपने ढंग से हैंडल कर रही है। लेकिन बसपा को हैंडल करना उसके लिए मुश्किल होगा। वहीं गठबंधन में शामिल अन्य दल चाहते हैं कि भाजपा को रोकने के लिए बसपा का गठबंधन में आना जरूरी है।
मायावती ने खुद को धर्म निरपेक्ष बताते हुए कहा कि अयोध्या में मंदिर निर्माण से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है और जब भी कोर्ट के आदेश पर सरकार द्वारा तय जमीन पर मस्जिद निर्माण होगा तो उससे भी उनकी पार्टी को कोई एतराज नहीं है।
मायावती के रुख से साफ हो गया कि वह गठबंधन में जा सकती हैं। इसका बड़ा कारण है कि मायावती भी जानती हैं कि अकेले दम पर वह किसी की जीत को रोक तो सकती हैं, लेकिन अपनी जीत तय नहीं कर सकती हैं। ऐसे में गठबंधन में जाने से उनका वजूद राजनीति में बना रहेगा।
यूपी में बसपा का ग्राफ 2007 के बाद से लगातार गिरा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा और रालोद से गठबंधन किया था और दस सीटें जीती थी। लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर चुनाव लड़ने पर उन्हें मात्र एक ही सीट पर जीत हासिल हुई थी। इस चुनाव में बसपा का वोट बैंक 13 प्रतिशत से भी नीचे खिसक गया।
बसपा का गठबंधन में जाना भाजपा पर पड़ेगा भारी
यदि बसपा, सपा, कांग्रेस और रालोद चारों मिलकर यूपी में लोकसभा का चुनाव लड़ती हैं, तो निश्चित रुप से भाजपा के लिए तगड़ा झटका होगा। क्योंकि तब इन चारों दलों का वोट प्रतिशत भाजपा से कहीं ऊपर निकल जाएगा, और सबसे अहम बात ये है कि हवा के साथ रुख बदलने वाला वोटर उस समय गठबंधन के साथ जुड़कर भाजपा को और ज्यादा नुकसान देगा।
गठबंधन और भाजपा में चल रहा मंथन
बसपा सुप्रीमों मायावती द्वारा सपा को लेकर दिए गए बयान और गठबंधन के प्रति अपने रुख को इशारों में बताने के बाद गठबंधन के साथ ही भाजपा नेतृत्व नफा नुकसान आंकने में जुट गए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2024 के चुनाव में यूपी के भीतर बसपा की अहम भूमिका रहने वाली है। बसपा का रुख ही गठबंधन और भाजपा का भविष्य तय करेगा।
आचार संहिता के बाद ले सकती हैं निर्णय
फिलहाल भाजपा के रवैये को देखते हुए मायवती चुप हैं। लेकिन आचार संहिता लगने के बाद जब ईडी, सीबीआई जैसे संस्थाएं निष्क्रिय हो जाएंगी तो मायावती अपना रुख तय कर सकती हैं। क्योंकि 22 जनवरी को राम मंदिर का उद्घाटन है तो गणतंत्र दिवस और बजट सत्र के बाद कभी भी आचार संहिता लग सकती है। ऐसे में मात्र डेढ़-दो माह के भीतर यूपी के रण का भविष्य तय हो सकता है।