Home Meerut कम मतदान: प्रचार का बदलता ट्रेंड या मौसम की मार

कम मतदान: प्रचार का बदलता ट्रेंड या मौसम की मार

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– इस बार लोकसभा चुनाव में उम्मीद से ज्यादा कम हो रहा है मतदान


अनुज मित्तल, समाचार संपादक

मेरठ। पहले, दूसरे और अब तीसरे दौर में कम मतदान को देखते हुए यह प्रश्न उठने लगा है कि क्या राजनीति और राजनीतिक तंत्र को लेकर हमारा समाज उदासीन होता जा रहा है। क्या यह सोच गहरी हो रही है कि राजनीति चाहे इधर की हो या उधर की, लगभग एक जैसी ही है। या फिर प्रचार के बदले हुए तरीके को अभी भारतीय मतदाता समझ नहीं पाया है या गर्मी में होने वाला चुनाव मौसम की मार को झेल रहा है।

 

देश की आजादी के 77 साल के सफर में साक्षरता दर चार गुना से भी ज्यादा बढ़ चुकी है। 1947 में जब देश आजाद हुआ, तब करीब 18% लोग ही साक्षर थे। आज करीब तीन चौथाई भारतीय शिक्षित है। इस लिहाज से मतदान में लोगों की भागीदारी बढ़नी चाहिए थी, लेकिन वह घटती जा रही है।

 

ऐसा आखिर क्यों हो रहा है। जब इसके कारण तलाशे गए और लोगों से बात की गई, तो मामला कुछ और ही सामने आया। पहला कारण चुनाव प्रचार का तरीका अब बदल चुका है। एक बड़ी रैली के माध्यम से नेता चुनाव प्रचार को माध्यम बना रहे हैं। डोर-टू-डोर संपर्क की प्रथा अब खत्म होती जा रही है। रोड शो के जरिए ही प्रचार पूरा हो जाता है। इसमें भी अहम बात ये है कि कई क्षेत्र पूरी तरह छूट जाते हैं।

राजनीतिक पार्टियों और प्रत्याशियों के सामने भी मुश्किल संकट होता है। क्योंकि अधिकांश राजनीतिक दल अपने प्रत्याशियों का चयन नामांकन की तिथि से पांच-दस दिन पहले ही करते हैं। जिसके चलते उन प्रत्याशियों के पास भी पूरे क्षेत्र में प्रचार कर पाना मुश्किल होता है।

 

बदला है प्रचार का तरीका

पहले गांव-गांव और गली-गली में प्रत्याशियों के बैनर, पोस्टर, पार्टियों के झंडे नजर आते थे। जिसे देखते हुए लोकतंत्र के इस महोत्सव का अहसास होता था। लेकिन निर्वाचन आयोग की बदली गाइड लाइन और सख्ती ने इसे सूना कर दिया है। चुनाव सिर्फ सोशल मीडिया और टीवी चैनलों तक सिमट कर रह गया है। ऐसे में मतदाताओं के भीतर उदासीनता आना लाजिमी है, क्योंकि अभी भारतीय मतदाता जो कि अधिकांश ग्रामीण परिवेश में रहता है। वह चुनाव के इस महामहोत्सव से अनजान से रह जाता है।

 

मोदी फैक्टर भी कम प्रचार का कारण

कम मतदान को लेकर कई तरह की राय सामने आ रही है। एक वर्ग का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव जीतने को लेकर एक वर्ग आश्वस्त है, इसलिए वह वोट देने कम ही बाहर निकल रहा है। ऐसा कहने वालों में मोदी समर्थक ज्यादा हैं। विरोधी वर्ग यह दावा कर रहा है कि उसके समर्थक बढ़-चढ़कर वोट डाल रहे हैं। लेकिन चुनाव विश्लेषकों की मानें तो हर वर्ग का मतदाता पिछले तीन दौर के मतदान में मतदाताओं में उत्साह नजर नहीं आया।
इलेक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया में चुनाव के दौरान अब तक जो भी संबोधन आ रहे हैं, वह अधिकांश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हैं। जब भी मतदाता टीवी खोलते हैं, तो उन्हें अधिकांश समय मोदी ही बोलते हुए नजर आते हैं। ऐसे में जनता में भ्रम है कि विपक्ष चुनाव में है ही नहीं, तो भाजपा की जीत तय है। ऐसे में मतदाता बाहर नहीं आ रहा है।

 

तीन श्रेणी के वोटर हैं

वोटरों की तीन श्रेणियां हैं। पहली श्रेणी में वे मतदाता आते हैं, जो किसी भी एक दल से निष्ठा रखते हैं। दूसरी श्रेणी में वे वोटर हैं, जो आखिरी वक्त तक इस ऊहापोह में रहते हैं कि वोट दें या न दें। तीसरी श्रेणी के वोटरों को वोट तो देना होता है, लेकिन किसे वोट देंगे यह फैसला आखिरी वक्त में मुद्दा और दल की नीति के आधार पर करते हैं।

 

जमीनी कार्यकर्ता हो रहे कम

किसी भी पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता चुनावी माहौल बनाने और मतदान केंद्र तक मतदाता को लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन अब सभी राजनीतिक दलों में नेताओं की संख्या बढ़ गई और जमीनी कार्यकर्ता कम होते जा रहे हैं। यह भी मतदान कम होने का कारण माना जा रहा है।

 

जोड़-तोड़ की राजनीति ने भी भटकाया

हाल में जिस तरह राजनीतिक दलों और नेताओं की वैचारिक निष्ठा डांवाडोल हुई है और अपने विरोधियों को साथ लेने की कोशिशें बढ़ी हैं, उससे इन जमीनी कार्यकर्ताओं में निराशा है। वह यह नहीं समझ पा रहे हैं कि ऐसे लोगों का वह समर्थन कैसे करें। कई लोग कम मतदान के पीछे एक बड़ी वजह इन कार्यकतार्ओं के मन में उपजी निराशा को भी मानते हैं।

 

गर्मी भी माना जा रहा है कारण

हालांकि इस बार गर्मी भी ज्यादा पड़ रही है। लेकिन पिछले चुनावों को देखें तो वह गर्मी में ही हुए हैं। लेकिन फिर भी कुछ लोग इसे भी एक मुख्य कारण मान रहे हैं।

 

निर्वाचन आयोग को करना चाहिए बदलाव

देश में साक्षरता दर भले ही बढ़ी हो, लेकिन अभी लोग इतने जागरूक नहीं हुए हैं कि वह प्रचार के बदले हुए ट्रेंड को समझ सकें। ऐसे में आयोग को प्रचार नीति में ढील देनी होगी और इलेक्ट्रोनिक तथा प्रिंट मीडिया के लिए भी प्रत्येक पार्टी के पक्ष में चुनाव के दौरान बराबर कवरेज की गाइड लाइन भी तैयार करनी होगी। इसके साथ ही चुनाव कार्यक्रम गर्मी, सर्दी और बरसात के मौसम को देखते हुए तय करने पर भी विचार करना होगा। ताकि आने वाले चुनावों में लोकतंत्र के इस महोत्सव में ज्यादा से ज्यादा लोग भागीदारी कर सकें।

 

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