Friday, April 18, 2025
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यूपी में लोकसभा का रण…

विधानसभा चुनाव के परिणाम से लोकसभा चुनाव पर नजर

  • सपा और रालोद कांग्रेस के साथ मिलकर भाजपा से मुकाबले को हो रहे तैयार।
  • 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंधन कर जीती थी 15 सीटें।
  • जबकि गठबंधन से बाहर रही कांग्रेस को मिली थी मात्र एक सीट।

अनुज मित्तल, शारदा न्यूज, मेरठ। सपा, रालोद और कांग्रेस विधानसभा चुनाव 2022 के चुनाव परिणाम को सामने रखते हुए लोकसभा चुनाव साधने का मन बनाए हुए हैं। लेकिन एक तरफ जहां हमेशा ही लोकसभा और विधानसभा के परिणाम अलग-अलग रहे हैं, तो दूसरी ओर इस बार गठबंधन को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।

आंकड़ों पर अगर गौर करें तो लोकसभा चुनाव 2019 में सपा का बसपा और रालोद से गठबंधन था, जबकि कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़ी थी। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा को पांच और बसपा को दस सीटें मिली थी, जबकि रालोद को एक भी सीट नहीं मिली थी। वहीं अकेले दम पर चुनाव लड़ी कांग्रेस को मात्र एक सीट से संतोष करना पड़ा था।

आधे ज्यादा वोट गए थे भाजपा गठबंधन को

लोकसभा चुनाव 2019 में उत्तर प्रदेश में हुए कुल मतदान का 49.98 प्रतिशत भाजपा और 01.21 प्रतिशत उसके सहयोगी दल अपना दल को मिली थी। भाजपा ने 80 लोकसभा सीटों में से 62 पर जीत हासिल की थी, जबकि दो सीट उसके सहयोगी दल अपना दल को मिली थी।

वहीं दूसरी ओर गठबंधन की तरफ से दस सीट हासिल करने वाली बसपा को 19.43प्रतिशत, सपा जिसने पांच सीटें जीती थी, उसे 18.11 प्रतिशत और रालोद को मात्र 01.69 प्रतिशत वोट मिला था। वहीं कांग्रेस ने मात्र एक सीट पर जीत दर्ज की थी और उसे 06. 36 प्रतिशत वोट मिला था।

आंकड़ों में बेहद मजबूत नजर आ रही भाजपा

पिछले लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा बेहद मजबूत नजर आ रही है। क्योंकि लोकसभा के उपचुनाव में सपा ने अपनी जीती हुई एक सीट गंवा दी और चार पर सिमट गई। आजम खां की लोकसभा सदस्यता समाप्त होने पर हुए उपचुनाव में यहां से भाजपा ने जीत हासिल कर अपना आंकड़ा 63 पहुंचा दिया।

बसपा के अलग होने का आंकड़ों में दिख रहा नुकसान

पिछले चुनाव में बसपा ने दस सीट जीतने के साथ ही 19.43 प्रतिशत वोट हासिल किया था। अब बसपा अलग है और कांग्रेस साथ है, तो ऐसे में गठबंधन को कहीं न कहीं कागजों में तो नुकसान साफ नजर आ रहा है।

विधानसभा चुनाव में बदल गया आंकड़ा

2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बंपर जीत मिली थी। इस चुनाव में सपा का गठबंधन कांग्रेस के साथ था। लेकिन 2022 के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को काफी नुकसान हुआ। यह चुनाव सपा और रालोद ने मिलकर लड़ा था। 2017 में मेरठ की सात विधानसभा सीटों में से जहां छह पर भाजपा ने जीत हासिल की थी, वहीं 2022 में यह आंकड़ा मात्र तीन सीटों पर सिमट कर रह गया। तीन सीटों पर सपा और एक पर रालोद की जीत हुई। वहीं शामली जनपद की तीनों सीटों में से पहले दो पर जीती थी, लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं हुई। ऐसा ही बागपत में भी हुआ, यहां पर मात्र एक सीट ही भाजपा को मिली। ऐसा ही अन्य जनपदों में भी हुआ। कुल मिलाकर सपा और रालोद गठबंधन ने भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पसीना ला दिया।

वही परिणाम दोहराने की कर रहे उम्मीद

सपा और रालोद इस बार आईएनडीआईए गठबंधन के साथ हैं। राष्ट्रीय स्तर पर हुए इस गठबंधन में यूपी के भीतर सपा, रालोद और कांग्रेस ही मुख्य भूमिका में होंगी, जबकि आम आदमी पार्टी यहां सहायक के रूप में होगी। क्योंकि आम आदमी पार्टी अभी तक यूपी में अपने पांव नहीं जमा पाई है।

भाजपा कर रही गहन मंथन

विधानसभा चुनाव 2022 का चुनाव परिणाम मुस्लिम और जाट वोटों के ध्रुवीकरण के साथ ही दलित वोटों के बिखराव के कारण आया था। ऐसे में भाजपा इस समीकरण को तोड़ने के लिए मंथन में जुटी है। इसी को लेकर तमाम जाट नेताओं पर दांव खेला गया है और प्रदेश अध्यक्ष के पद पर भी जाट नेता भूपेंद्र चौधरी को सामने लाया गया है। जिसके चलते कहीं न कहीं प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की प्रतिष्ठा भी अब सीधे सीधे दांव पर लगी हुई है। क्योंकि अगर जाट वोटों का ध्रुवीकरण विपक्ष की तरफ होता है, तो यह उनकी नाकामी मानी जाएगी।

अति पिछड़ों में हो रही सेंधमारी

सपा और रालोद नेता जानते हैं कि मुस्लिम और जाट का यदि ध्रुवीकरण उनके पक्ष में होता है, तो वह मजबूत स्थिति में होंगे। लेकिन जीत की निर्णायक बढ़त अति पिछड़ा वर्ग के हाथों में ही होगी, ऐसे में इस वोट बैंक को अपने पक्ष में लाने के लिए दोनों ही दल लगातार सेंधमारी में जुटे हुए हैं।

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