Tuesday, June 17, 2025
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लोहियानगर का ‘कूड़े कचरे का पहाड़’: जनप्रतिनिधियों की चुप्पी

  • लोहियानगर का ‘कूड़े कचरे का पहाड़’: दम घोंटती प्रदूषित हवा, जनप्रतिनिधियों की चुप्पी-
– आदेश प्रधान एडवोकेट

आदेश प्रधान एडवोकेट | मेरठ शहर के लोहियानगर में “कूड़े के पहाड़” हर रात दोपहर एक आग सुलगती है—कभी कचरे में, कभी सांसों में, और कभी उम्मीदों में। नगर निगम की लापरवाही से बना कचरे का यह पहाड़ अब खराब स्वस्थ का प्रतीक बन चुका है। प्रतिदिन लगने वाली रहस्यमयी आगें, हवा में घुलता ज़हर, बीमार होते लोग और शांत बैठा प्रशासन—यह कहानी किसी दूर-दराज़ क्षेत्र की नहीं, उत्तर प्रदेश के एक बड़े शहर मेरठ की है, जहां विकास के नारों के बीच ज़िंदा इंसान तिल-तिल कर मर रहे हैं।

 

 

लोहियानगर का ‘कूड़े कचरे का पहाड़’

 

दम घोंटती सुबहें, धुएं में डूबी शामें

सुबह जैसे ही सूरज उगता है, लोहियानगर और आसपास के क्षेत्रों में एक और दिन की शुरुआत होती है, लेकिन ताजगी हवा के साथ नहीं—धुएं की गंध के साथ होती है । सौहार्द नगर, काजीपुर ,गगोल, नगला बट्टी, और जुर्रानपुर, घोसीपुर , हाजीपुर, नरहाडॉ फ़फुण्डा, बाजोट, काशीराम, पुलिस ट्रेनिंग सेंटर, कालोनी ,पुलिस एनक्लेव कॉलोनी, सिद्धार्थ एंक्लेव कॉलोनी, बुद्ध एनक्लेव, कॉलोनी मेरठ की सबसे बड़ी मंडी सब्जी मंडी कूड़े के ढेर से महज 500 मीटर दूर पर पब्लिक स्कूल एवं डिग्री कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों छात्राएं एवं लोगों के लिए हवा में सांस लेना अब रोज़ का संघर्ष है । घरों के खिड़की-दरवाज़े बंद करने के बाद भी धुआं दीवारें चीर कर फेफड़ों में घुस आता है।

“रात में बच्चे खांसते-खांसते सोते हैं”

आंखें जलती हैं और दम घुटता है।” ये सरकार एवँ नगर निगम तभी जागेगा जब यहां कोई मर जाएगा।”

 

 

 

हर दिन जलती आग, और हर दिन एक नया सवाल

कूड़े में लगने वाली आग अब किसी दुर्घटना का हिस्सा नहीं लगती। यह लगभग तय समय पर लगती है—दोपहर या रात को। क्या यह सिर्फ संयोग है? या फिर कोई सुनियोजित साजिश?

स्थानीय सामाजिक संगठन ‘ग्रीन मेरठ फाउंडेशन’ के सदस्य ने कि यह आगें जान-बूझकर लगाई जा रही हैं।यह फिर कचरे को खत्म करने की गैरकानूनी और सस्ती कोशिश है।

 

 

प्रदूषण का जहर, प्रशासन की चुप्पी-

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अब तक खामोश है। न कोई रिपोर्ट, न कोई चेतावनी। AQI लगातार 300 से ऊपर, यानी ‘खतरनाक’ स्तर पर बना हुआ है, लेकिन न नगर निगम जागता है, न प्रदूषण बोर्ड।

डॉक्टरों के अनुसार, इनसे कैंसर, दमा, एलर्जी और आंखों की बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ गया है।

दमकल विभाग की बेबसी-

दमकल विभाग आग बुझाने आता जरूर है, लेकिन आग बुझती नहीं—सुलगती रहती है। पहाड़ की गहराई में सुलगती लपटें धुएं के रूप में हर दिशा में फैल जाती हैं।

नगर निगम की चुप्पी: ‘कागज़ पर चल रही नगर निगम की योजना लेकिन ज़मीन पर कोई ठोस बदलाव नजर नहीं आता है। न कूड़ा कम हुआ, न आग बंद हुई। लोग पूछते है

कानूनी रूप से कौन है दोषी?

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार, ऐसा कोई भी कार्य जिससे पर्यावरण को हानि हो, कानूनन अपराध है। नगर निगम द्वारा बिना वैज्ञानिक तरीके से कचरे को जलाना और ज़हरीली गैसों का उत्सर्जन करना, अधिनियम की धारा 7 का स्पष्ट उल्लंघन है

NGT (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) ने स्पष्ट रूप से ठोस कचरे को जलाने पर रोक लगाई है। लेकिन मेरठ नगर निगम ने न कोई ‘वेस्ट मैनेजमेंट एक्शन प्लान’ पेश किया और न ही NGT के निर्देशों का पालन किया।

“नगर आयुक्त पर हो कार्रवाई”

कानूनी जानकारों के अनुसार, नगर आयुक्त की भूमिका को दुर्लक्ष्य कर्तव्य (Dereliction of Duty) और लापरवाही से जनजीवन को खतरे में डालना (Negligence under Tort Law) के तहत अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

जनहित याचिका, SIT जांच की माँग स्थानीय संगठनों ने अब हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर करने की तैयारी शुरू कर दी है। उनका कहना है कि यह संकट न केवल पर्यावरणीय बल्कि मानवाधिकारों के उल्लंघन का मामला भी है, क्योंकि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21—जीवन के अधिकार—का सीधा उल्लंघन है।

प्रदर्शन और पैदल मार्च के द्वारा क्षेत्रीय व्यक्तियो ने आवाज उठाई–

गत सप्ताह सौहार्द नगर में हुए विरोध प्रदर्शन में नारों की गूंज थी:
“हमें ज़हर नहीं जीवन चाहिए!”
“कूड़े का जवाब चाहिए!”
“CBI जांच कराओ!”

क्या हैं समाधान?

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि इस आपदा से निपटने के लिए ये तत्काल कदम जरूरी हैं:
लोहियानगर से कचरे का चरणबद्ध निष्कासन ओर कचरा जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध और वैकल्पिक प्रसंस्करण,स्मार्ट वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम लागू करना,AQI मॉनिटरिंग सेंटर और सार्वजनिक रिपोर्टिंग, दोषियों पर कानूनी कार्रवाई और नगर निगम पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति
देंने पर कार्यवाही हो । प्रभावित नागरिकों के लिए स्वास्थ्य शिविर और मुफ्त उपचार होना चाहिए ।

कहां हैं हमारे जनप्रतिनिधि?

यह स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब जनता यह सवाल पूछती है कि जिन जनप्रतिनिधियों को उन्होंने वोट देकर सत्ता में भेजा, वे आखिर कहां हैं?

संसद ,मंत्री, विधायक, लेकिन उनके द्वारा कूड़ा निस्तारण या क्षेत्रीय सफाई व्यवस्था को लेकर किए गए किसी भी ठोस प्रयास की जानकारी जनता को नहीं है। जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा ऐसे गंभीर मुद्दों पर चुप रहना जनता के लिए लोगों के लिए एक विषय बना हुआ है इस सांसद विधायक मंत्री या अन्य जनप्रतिनिधियों की क्या जिम्मेदारी है या अपनी जिम्मेदारी से सभी जनप्रतिनिधि भाग रहे हैं टुडे के ढेर से जनता को निजात दिलाने के लिए जनप्रतिनिधियों का योगदान कम ही नजर आता है । मेरठ शहर के चारों तरफ कूड़े के ढेर सड़को पर पड़े है । मेरठ से किला परीक्षित रोड वाली रोड पर भी कूड़े के ढेर ने जनता का जीना दुस्वार कर दिया है । जनता को स्वम ही जागना होगा और कोई रास्ता नजर नही आता दिखाई दे रहा है ।

यह आग सिर्फ कचरे में नहीं लगी है

यह आग लोगों की उम्मीदों में लगी है। यह आग प्रशासन की संवेदनशीलता में लगी है। यह आग उस व्यवस्था को जला रही है जो इंसान को गिनती में नहीं लाती। लोहियानगर का यह कचरा सिर्फ गंदगी नहीं है—यह हमारे शहरी तंत्र की सड़न का सबूत है।
अब फैसला जनता को करना है—चुप रहना है या आवाज़ बनना है। क्योंकि सवाल सिर्फ मेरठ का नहीं, हर उस शहर का है जो अपने नागरिकों को सांस लेने के लिए साफ़ हवा तक नहीं दे पा रहा।

 

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