दाखिल-खारिज के नाम पर मांगी थी रिश्वत
महिला की शिकायत पर एंटीकरप्शन टीम ने की कार्रवाई
शारदा रिपोर्टर मेरठ। सदर तहसील में सोमवार को आफिस खुलते ही एंटीकरप्शन टीम ने एक लेखपाल को पांच हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। आरोप है कि लेखपाल जमीन के दाखिल-खारिज की रिपोर्ट के नाम पर पांच हजार रुपये की रिश्वत मांग रहा था।
परतापुर थाना क्षेत्र के ग्राम गेझा निवासी महिला पूनम ने करीब एक माह पहले डेढ़ बीघा जमीन खरीदी थी। इस जमीन पर विक्रेता का नाम हटवाकर अपने नाम करवाने के लिए वह करीब बीस दिन पहले तहसील आई थी। लेकिन लगातार चक्कर काटने के बाद भी उसका काम नहीं हो रहा था।
पूनम ने बताया कि पिछले सप्ताह उसके हलका लेखपाल ऋषभ चौहान ने दाखिल खारिज की रिपोर्ट देने के लिए पांच हजार रुपये की मांग की। जब उसने रुपये ज्यादा मांगने की बात कही तो ऋषभ चौहान ने इससे कम कीमत में दाखिल खारिज के प्रार्थना पर रिपोर्ट लगाने से इंकार कर दिया।
इसके बाद पूनम फिलहाल रुपये न होने और बाद में देने की बात कहकर चली गई। वहीं ऋषभ चौहान ने कहा कि रुपये मिलने के बाद ही काम होगा। इसके बाद पूनम ने एंटीकरप्शन विभाग में संपर्क कर शिकायत दर्ज कराई। जिसके बाद एंटीकरप्शन की टीम ने अपना जाल बुनना शुरू कर दिया। इसके तहत पूनम से फोन कराकर सोमवार सुबह रुपये देने की बात तय हुई।
एंटीकरप्शन की टीम के दिशा निर्देश पर पूनम सोमवार सुबह तहसील पहुंची और एंटीकरप्शन द्वारा दिए गए पांच हजार रुपये के नोटों को लेखपाल ऋषभ को पकड़ा दिया। जैसे ही ऋषभ ने पूनम के हाथ से रुपये लिए, तभी एंटीकरप्शन की टीम ने उसे धरदबोचा। एंटीकरप्शन टीम द्वारा पकड़े जाते ही लेखपाल ऋषभ ने हाथ में लिए रुपये नीचे फेंक दिए। लेकिन तब तक एंटीकरप्शन टीम का मिशन पूरा हो चुका था।
मौके पर तहसील कर्मचारी जब तक कुछ समझ पाते, एंटीकरप्शन की टीम लेखपाल ऋषभ चौहान को पकड़कर सदर थाना ले गई और वहां जाकर पहले उसके हाथ धुलवाए गए। जिसमें नोटों पर लगे केमिकल के कारण उसके हाथ लाल रंग में रंग गए। इस पूरे मामले की एंटीकरप्शन टीम ने वीडियोग्राफी भी कराई।
समाचार लिखे जाने तक एंटीकरप्शन टीम द्वारा सदर थाने में रिश्वत लेने के आरोपी लेखपाल ऋषभ चौहान के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया जा रहा था।
तहसील में मचा हड़कंप
सुबह दफ्तर खुलते ही एंटीकरप्शन विभाग की टीम की कार्रवाई से तहसील में हड़कंप मच गया। सूत्रों के अनुसार उस समय तक अधिकांश कर्मचारी दफ्तर आए भी नहीं थे। जैसे ही कर्मचारी तहसील पहुंचे और मामले का पता चला तो उनके चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगी। किसी भी कर्मचारी या लेखपाल की सदर थाना तक जाने की हिम्मत नहीं हुई।