- आचार्य श्री 108 ज्ञान भूषण जी महाराज एवं ज्ञान गंगा माताजी ससंग असोड़ा हाउस मंदिर में विराजमान रहे
- व्यक्ति धर्म का आचरण नहीं करता, उसकी भक्ति में स्थायित्व नहीं आता
शारदा रिपोर्टर मेरठ। सदर जैन मंदिर से विहार करके आचार्य श्री 108 ज्ञान भूषण जी महाराज एवं ज्ञान गंगा माताजी ससंग असोड़ा हाउस मंदिर में विराजमान रहे। आचार्य श्री 108 ज्ञानभूषण जी महाराज ने अपने मंगल प्रवचनों में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि सच्ची भक्ति केवल कर्मकांड या बाह्य क्रियाओं तक सीमित नहीं होनी चाहिए। उसमें ज्ञान (सच्चे धर्म का बोध), वैराग्य (संसार से विरक्ति), और अनुराग (भगवान और आत्मा से प्रेम) का समन्वय होना आवश्यक है। उन्होंने समझाया कि जब तक व्यक्ति ज्ञानपूर्वक धर्म का आचरण नहीं करता, तब तक उसकी भक्ति में स्थायित्व नहीं आता।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि जीवन में प्रथम गुरु माता-पिता है जो लौकिक व धार्मिक शिक्षा देकर बच्चों के जीवन में प्रकाश करते हैं बच्चों के जीवन में धार्मिक संस्कार रोपण करने के लिए संत संगति में जाना आवश्यक है संतों के चरणों में जाने से ही सही – गलत की पहचान होती है इसीलिए माता-पिता को प्रथम गुरु कहा जाता है।
दूसरे गुरु दिगंबर संत होते हैं संतों की पहचान के ये ज्ञान होना चाहिए कि संत कैसे होने चाहिए जो पांच इंद्रियों के विषयों से रहित हैं आरंभ परिग्रह से रहित होते हैं ज्ञान ध्यान में लीन रहते हैं ऐसे संत सच्चे गुरु होते हैं जो स्वयं तिरते हैं और अपनी शरण में आने वालों को तिरने का मार्ग बताते हैं संत की वाणी को अनुसरण करने को वैराग्य कहते हैं संत की वाणी सुनकर संसार – शरीर – भोगों से विरक्ति हो जाती है वैराग्य की भावना जागृत हो जाती है संत में जो गुण विद्यमान है उनके गुणों को अपने हृदय में विराजमान करने की भावना करना उसे अनुराग कहते हैं गुरु के प्रति अटल भक्ति व श्रद्धा होना अनुराग है जीवन में ज्ञान वैराग्य अनुराग करते हुए सच्ची भक्ति करते रहे एक दिन मोक्ष भी निश्चित होगा आपका आचार्य श्री ने जीवन मूल्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि माता-पिता ही संतान के प्रथम गुरु होते हैं। उन्होंने कहा कि बालक का पहला शिक्षण उसी घर में होता है, जहां माता-पिता उसे बोलना, चलना, संस्कार, व्यवहार और धर्म का प्रथम ज्ञान कराते हैं।
मुनिश्री ने कहा कि जिस प्रकार एक बीज को यदि शुरूआत से ही अच्छे वातावरण और खाद-पानी मिले तो वह वटवृक्ष बनता है, उसी प्रकार यदि माता-पिता अपने बच्चों को बचपन से ही धार्मिक, नैतिक और चारित्रिक शिक्षा दें, तो वह जीवन में सद्मार्ग पर चलता है और समाज में प्रेरणा बनता है।
उन्होंने आगे कहा कि आज की पीढ़ी में यदि संस्कारों की कमी दिख रही है तो उसका एक प्रमुख कारण है। माता-पिता का बच्चों से समय और धर्म-संस्कार का अभाव। यदि हम चाहते हैं कि समाज में सदाचार और संयम बना रहे, तो हमें घर से ही इसे शुरू करना होगा। मंदिर परिसर में कपिल जैन, मनोज जैन, राकेश जैन, कमल जैन, नवीन जैन, अनिल जैन, सुरेश जैन, अशोक जैन, अनुराग जैन, सोनिया जैन, बबिता जैन आदि उपस्थित रहे।