शारदा रिपोर्टर मेरठ। लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कॉलेज में विश्व विटिलिगो दिवस के अवसर पर एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। ताकि लोगों को इससे संबंधी जरूरी जानकारी दी जा सके। कार्यक्रम में चर्म रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अमरजीत ने बताया कि विटिलिगो, जिसे आम भाषा में ‘सफेद दाग’ कहा जाता है, न तो इन्फेक्शन है और न ही यह किसी के छूने से फैलता है, लेकिन जानकारी की कमी के कारण आज भी इसे लेकर कई गलतफहमियां समाज में फैली हुई हैं।
विटिलिगो एक आॅटोइम्यून डिसआॅर्डर है, यानी यह हमारे इम्यून सिस्टम से जुड़ा होता है। इस स्थिति में त्वचा में मौजूद ‘मेलानोसायट्स’ नामक कोशिकाएं, जो त्वचा का रंग निर्धारित करती हैं, या तो नष्ट हो जाती हैं या काम करना बंद कर देती हैं। इसका परिणाम होता है- शरीर के विभिन्न हिस्सों पर सफेद या हल्के रंग के दाग।
विभाग की डाक्टर सौम्या सिंघल ने बताया कि विटिलिगो को बीमारी नहीं, बल्कि एक फिजिकल कंडीशन की तरह देखना चाहिए। यह न तो दर्द देता है और न ही किसी अन्य अंग को नुकसान पहुंचाता है, लेकिन इसका मानसिक असर जरूर हो सकता है। खासकर जब समाज में इसे लेकर भ्रम या शर्मिंदगी की भावना जुड़ी हो।इसका इलाज संभव है।
विटिलिगो का इलाज हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि दाग कहां हैं, कितनी तेजी से फैल रहे हैं और मरीज की उम्र और सेहत की स्थिति क्या है।
टॉपिकल क्रीम्स: कुछ खास स्टेरॉइड क्रीम या इम्यून सिस्टम को कंट्रोल करने वाली दवाएं शुरूआती दागों को रोकने और हल्का करने में मदद कर सकती हैं।
लाइट थेरेपी (फोटोथेरेपी): नैनो-वश्इ लाइट तकनीक से त्वचा के रंग को सामान्य बनाने में काफी मदद मिलती है। यह थेरेपी अब भारत के कई शहरों में भी उपलब्ध है।
माइक्रोपिग्मेंटेशन और सर्जरी: अगर दाग स्थायी हो चुके हैं और लंबे समय से एक जैसे हैं, तो स्किन ग्राफ्टिंग या माइक्रोपिग्मेंटेशन जैसे आॅप्शन उपलब्ध हैं।
नई दवाओं की खोज: अमेरिका में नामक एक क्रीम को अनुमति मिल चुकी है, जो इम्यून सिस्टम को बैलेंस कर सफेद दागों को भरने में मदद करती है। भारत में भी इस पर शोध जारी है। विभाग की डॉ आकांशा ने विटिलिगो के मरीजों के लिए जरूरी हेल्थ टिप्स के बारे में जानकारी दी।