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Friday, November 14, 2025
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HomeEducation Newsआरजी पीजी कॉलेज में स्टर्टअप-डे पर चार दिवसीय कार्यक्रम की शुरूआत

आरजी पीजी कॉलेज में स्टर्टअप-डे पर चार दिवसीय कार्यक्रम की शुरूआत

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शारदा रिपोर्टर


मेरठ। रघुनाथ गर्ल्स डिग्री कॉलेज के चित्रकला विभाग में मंगलवार को स्टार्टअप-डे के उपलक्ष में चार दिवसीय कार्यक्रम की शुरूआत हुई। कार्यक्रम में छात्राओं को सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्टार्टअप कार्यक्रमों के बारे में जानकारी दी गई।

पहले दिन आरजी इनोवेशन सेल व चित्रकला विभाग के संयुक्त तत्वाधान में अतिथि व्याख्यान महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो. निवेदिता कुमारी के निर्देशन में आयोजित किया गया। जिसका विषय लोक कला में रोजगार की संभावनाएं रहा। व्याख्यान को प्रस्तुत करने के लिए मेरठ कॉलेज की पूर्व एसोसिएट प्रो. डॉ. मधु बाजपेई को आमंत्रित किया गया। कार्यक्रम का आरंभ अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष व डीन आर्ट प्रो. पारुल सिंह तथा चित्रकला विभाग की अध्यक्ष प्रो. अर्चना रानी के साथ आगंतुक् अतिथियों ने दीप प्रज्वलन के साथ किया।

कार्यक्रम में डॉ. मधु वाजपेई ने स्टार्टअप पर अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि स्टार्टअप इंडिया भारत सरकार की एक प्रमुख पहल है। जिसका उद्देश्य स्टार्टअप संस्कृति को उत्प्रेरित करना व पारंपरिक लोक कलाओं के बारे में युवा पीढ़ी को जागरूक करना है। जैसे बंगाल में अल्पना प्रसिद्ध है तो महाराष्ट्र में रंगोली कलाकार अपनी कलाओं को पीढ़ी दर पीढ़ी संभालते आ रहे हैं। अंग्रेजी शासन काल के बाद भारत की वह लोक कलाएं जो की मृत प्राय हो गई थी उनको पीएम मोदी द्वारा चलाई जा रही योजनाओं से एक नवीन श्वांस प्राप्त हुई है। कला संस्कृति के क्षेत्र में राजस्थान स्टूडियो के नाम से सबसे पहले कला एवं संस्कृति स्टार्टअप प्रोजेक्ट प्रारंभ हुआ है। इसमें कलाकारों की हस्त निर्मित कला चाहे वह बंधानी हो या संगमरमर के मूर्ति शिल्प या राजस्थान के चमड़े के समान हो रंग बिरंगी कठपुतलियां सभी को विदेशी-देसी पर्यटको तक पहुंचाया है। उन्होंने कलाकारों में उनकी कला के खरीदारों के बीच की दूरी को खत्म कर दिया है एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाया है जो कलाकृतियों को बाजार तक ले जाता है। देश की लोक कलाओं की न केवल अपने देश बल्कि विदेशों में भी मांग बढ़ रही है। जो कलाकार लोक कला में कार्य करते हैं वह विभिन्न प्रकार से अपनी आजीविका उसके माध्यम से परिवार सकते हैं।

डॉ. वाजपेई ने बताया की बिहार की मधुबनी कला इसका ज्वलंत प्रमाण है। वहां के कलाकार पहले केवल कागज या दीवार पर चित्र बनाते थे परंतु आज कपड़ों पर जैसे साड़ी, दुपट्टा, बेड कवर तथा विभिन्न प्रकार के बर्तनों, पेपर मेसी व धातु के प्रतिदिन काम में आने वाली वस्तुओं पर भी सुंदर मधुबनी चित्रों का सृजन किया जा रहा है। इनकी बाजार में निरंतर मांग बढ़ रही है। जिससे कलाकारों के लिए आजीविका के साधन उपलब्ध हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि कला केवल एक साधना ही नहीं है बल्कि वह कलाकार के लिए रोजगार का भी सशक्त माध्यम है। अंत में प्रो. पारुल सिंह ने विभाग को कार्यक्रम आयोजित करने पर बधाई दी। कार्यक्रम का संचालन चित्रकला विभाग की असिस्टेंट प्रो. डॉ. नजमा इरफान द्वारा किया गया। जबकि विभाग अध्यक्ष प्रो. अर्चना रानी ने सभी को धन्यवाद दिया।

कार्यक्रम को सफल बनाने में इनोवेशन सेल की प्रेसिडेंट प्रो. सोनिका चौधरी, डा. पूनम लता सिंह, ममता, डॉ. शैलजा, प्रीति ,डॉ. स्वाति शर्मा, डॉ. नलिनी द्विवेदी, डॉ. रीमा मित्तल, डॉ. मीनाक्षी जैन व कोमल अनुरागी का सहयोग रहा।

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