- सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच तय करेगी राष्ट्रपति और राज्यपाल के विधेयक का मामला।
एजेंसी, नई दिल्ली। राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय करने के मामले में केंद्र ने राष्ट्रपति संदर्भ मामले की सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट में लिखित दलीलें पेश की। जिसमें कहा गया राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए राज्य विधेयकों पर निर्णय लेने की समय-सीमा, शक्तियों के नाजुक पृथक्करण को बिगाड़ देगी और संवैधानिक अव्यवस्था को जन्म देगी। इस मामले पर सुनवाई 19 अगस्त से शुरू होगी। पांच जजों की पीठ ये सुनवाई करेगी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के माध्यम से दायर लिखित दलीलों में सुप्रीम कोर्ट को आगाह किया गया है कि राज्यपालों और राष्ट्रपति पर राज्य विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए निश्चित समय-सीमा लागू करना, जैसा कि अदालत ने अप्रैल के एक फैसले में कहा था, सरकार के एक अंग द्वारा उन शक्तियों को अपने हाथ में लेने के समान होगा जो उसके पास निहित नहीं हैं, जिससे शक्तियों का नाजुक पृथक्करण बिगड़ जाएगा और संवैधानिक अव्यवस्था पैदा होगी।
केंद्र ने कहा अनुच्छेद 142 में निहित अपनी असाधारण शक्तियों के तहत भी, सुप्रीम कोर्ट संविधान में संशोधन नहीं कर सकता या संविधान निमार्ताओं की मंशा को विफल नहीं कर सकता, बशर्ते कि संवैधानिक पाठ में ऐसी कोई प्रक्रियागत जनादेश न हों। एसजी मेहता के अनुसार, हालांकि स्वीकृति प्रक्रिया के कार्यान्वयन में कुछ सीमित समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन ये राज्यपाल के उच्च पद को अधीनस्थ पद पर आसीन करने को उचित नहीं ठहरा सकतीं।
उन्होंने तर्क दिया कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के पद राजनीतिक रूप से पूर्ण हैं और लोकतांत्रिक शासन के उच्च आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्होंने कहा कि किसी भी कथित चूक का समाधान राजनीतिक और संवैधानिक तंत्रों के माध्यम से किया जाना चाहिए, न कि जरूरी ना होने वाले न्यायिक हस्तक्षेपों के माध्यम से भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा अनुच्छेद 143 के तहत भेजे गए 14 संवैधानिक प्रश्नों पर निर्णय लेने के लिए 19 अगस्त से सुनवाई शुरू करने का फैसला लिया है।