शारदा रिपोर्टर मेरठ। गुरु तेग बहादुर पब्लिक स्कूल में गुरु तेग बहादुर साहिब जी के 350वें शहीदी दिवस को समर्पित 27 नवंबर को थिएट्रिकल लाइट एंड साउड लाइव शो और 28 नवंबर को कीर्तन दरबार का आयोजन किया जाएगा। यह जानकारी सोमवार को वेस्ट एंड रोड स्थित गुरु तेग बहादुर पब्लिक स्कूल में प्रेसवार्ता के दौरान आयोजनकर्ताओं ने दी।
उन्होंने बताया कि, 1675 ई० में जब कश्मीरी पंडितों पर बादशाह औरगंजेब अत्याचार कर जबरन धर्म परिवर्तन करा रहा था। तब कश्मीरी पड़ित कृपा राम की अगुवाई में कश्मीरी पंडितों का एक जत्था गुरू तेग बहादुर जी के पास आया और कहा कि बादशाह औरंगजेब हमसे जबरन धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश कर रहा है और हम पर बहुत अत्याचार किया जा रहा है। गुरू जी ने उनकी पीड़ा को समझा और कहा कि धर्म और मानवता की रक्षा के लिए किसी महान व्यक्ति के बलिदान की आवश्यकता है। तभी पास बैठे श्री गुरू साहिब के पुत्र श्री गोविंद रॉय जिनकी उम्र मात्र 9 वर्ष थी ने कहा-पिताजी आपसे बड़ा महापुरूष इस बलिदान के लिए और कौन हो सकता है। जो इतनी बड़ी कुर्बानी दे सको। पुत्र के शब्दों को सुनकर गुरू जी ने स्वयं का बलिदान देने का फैसला किया। औरंगजेब के पास संदेश भिजवाया कि यदि बादशाह हमारे गुरू का धर्म परिवर्तन कराने में सफल हो जाए जो हम सभी खुशी-खुशी इस्लाम कुबूल कर लेंगे।
गुरु जी के इस संदेश को सुनकर औरंगजेब ने उन्हें गिरफ्तार करने का फैसला किया। गुरूजी को उनके शिष्य भाई मतीदास, भाई सतीदास और भाई दयाला जी के साथ बंदी बनाकर दिल्ली के चांदनी चौक लाया गया। धर्म परिवर्तन के लिए जब उसकी सारी कोशिश नाकाम हो गई तो बादशाह ने गुस्से में दिल्ली के चांदनी चौक पर उनके प्रिय शिष्य भाई मतीदास को आरे से चिरवाया, भाई सतीदास को रूई में लपेटकर आग के हवाले कर दिया एवं भाई दयाला जी को उबलते पानी के देग में डाल कर शहीद कर दिया। फिर भी गुरु जी अपने शिष्यों की शहादत को देखकर बादशाह के आगे नहीं झुके और ना ही इस्लाम कुबूल करने को राजी हुए तो औरंगजेब ने उनके शीश को धड़ से अलग करने का आदेश दिया। चारों ओर कोहराम मच गया। इसी बीच उनके एक शिष्य भाई जैता जी ने उनका शीश श्रद्धा से उठाया और आनंदपुर के लिए रवाना हो गया। दूसरा शिष्य लक्खी शांह बंजारा ने उनका घड़ अपनी झोपड़ी में रख आग लगाकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया, जहां आज दिल्ली, संसद भवन के पास रकाबगंज गुरुद्वारा स्थित है।
उन्होंने कहा कि,इसलिए हिंद की चादर’ श्री गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस केवल एक शहादत नहीं, बल्कि मानवता के लिए साहस का जीवंत संदेश है। उनकी शहीदी यात्रा में शामिल होना उसी प्रेरणा-पथ पर चलने का संकल्प है। एक ऐसी राह जो हमें त्याग, सत्य और धर्म की रक्षा का दर्शन कराती है।



