Home उत्तर प्रदेश Meerut दादा-दादी के लिए श्रवण कुमार बने पोते

दादा-दादी के लिए श्रवण कुमार बने पोते

0
  • शिव भक्त अपने दादा-दादी को हरिद्वार से पालकी में बिठाकर जल लेकर आ रहे

शारदा रिपोर्टर मेरठ। कांवड़ यात्रा में एक से बढ़कर एक अनोखा रंग देखने को मिल रहा है। जहां लोग अपने माता-पिता को सैकड़ों किलोमीटर की दूरी की यात्रा करा रहे हैं, वहीं कुछ भोले भक्त अपने दादा-दादी को हरिद्वार से पालकी में बिठाकर दर्शन करा कर ला रहे हैं।

भले ही बदलते दौर में रिश्तों में अनेकों प्रकार की दूरियां दिखाई पड़ रही हैं। लेकिन आज भी ऐसे उदाहरण देखने को मिलेंगे, जो भारतीय सभ्यता को जीवित करते हुए दिखाई देते हैं। कुछ इसी तरह का नजारा कांवड़ यात्रा 2024 के दौरान भी देखने को मिला। जब हस्तिनापुर के अकबरपुर गढ़ी गांव के भोले अपने बुजुर्ग दादा-दादी को हरिद्वार से पालकी में बिठाकर गंगाजल लेकर अपने गांव के लिए ले जा रहे हैं।

सचिन कश्यप भोले ने बताया कि उनके दादा-दादी ने बताया था कि हरिद्वार से गंगाजल लाकर वह भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करना चाहते थे, लेकिन किसी कारण वह अपनी इस इच्छा को पूरी नहीं कर पाए। ऐसे में उन चारों भाइयों ने निर्णय लिया कि दादा दादी की जो यह इच्छा है। उसे अबकी बार पूरी करेंगे। इसके लिए उन्होंने एक खास पालकी बनाई। जिसमें एक तरफ कलयुग के श्रवण कुमार की तरह अपने दादा को बिठाया तो वहीं, दूसरी ओर दादी को बिठाकर हरिद्वार से गंगाजल लेकर आए।

भोले सचिन, अनिल, सुनील और राहुल चारों भाई मिलकर अपने 85 साल के दादा प्रेमचंद एवं 83 साल की दादी समुद्री को पालकी में बिठाकर लेकर आए। जिनके साथ मिलकर वह अकबरपुर गढ़ी गांव के शिवालय में भोले बाबा का जलाभिषेक करेंगे। इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि सावन मास के पवित्र महीने में ही वह अपने दादा-दादी को दूसरी बार भी कांवड़ तीर्थ का संकल्प करा कर लाएंगे। दरअसल, यह भोले हरिद्वार से लेकर अकबरपुर गढ़ी गांव तक लगभग 190 किलोमीटर की दूरी पूरी कर कर लौटे हैं।

भोले ने बताया कि वह काफी खुश हैं कि अपने दादा-दादी की यह इच्छा पूरी की है। क्योंकि बचपन में उनकी जो भी कोई इच्छा होती थी, तो दादा-दादी खुशी के साथ उसे पूरा करते थे। ऐसे में अपने आप को सौभाग्यशाली मानते हैं. उन्होंने अपने दादा दादी का सपना पूरा किया।

बता दें कि कांवड़ यात्रा 2024 में इस तरह के अद्भुत नजारे देखने को मिल रहे हैं। इससे पहले एक पिता अपनी दो बेटियों को भी हरिद्वार से पालकी में बिठाकर ही जल लेकर आया था। वहीं, एक बेटा भी अपने माता-पिता को दर्शन करा कर मेरठ के किठौर क्षेत्र गांव लेकर आया है। वहीं, अब यह उदाहरण देखने को मिली है, जो भारतीय सनातन परंपरा की एक अच्छी तस्वीर को दशार्ती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here