– चुनाव हुआ तो इस बार बदल जाएंगे पूरी तरह हालात, कैंट बोर्ड की राजनीति में वाधवा परिवार का साथ देगा ताकत।
शारदा रिपोर्टर मेरठ। सांसद अरूण गोविल की रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात और कैंट बोर्ड चुनाव को लेकर चर्चा ने फिर से छावनी परिषद की शांत हो चुकी राजनीति को गरमा दिया है। लोगों के बीच भाजपा की कैंट बोर्ड राजनीति में क्या स्थिति होगी? विपक्ष कैसे हालात में होगा? इसे लेकर अब चर्चाओं का बाजार गर्म होने लगा है। इसका बड़ा कारण ये भी है कि भले ही कैंट विधानसभा सीट 1989 से भाजपा की झोली में जा रही हो, लेकिन छावनी परिषद की राजनीति में भाजपा मुकम्मल तौर पर मजबूत होकर नहीं उभर पाई है।

मेरठ हापुड़ लोकसभा सांसद अरुण गोविल ने रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से शिष्टाचार मुलाकात कर कैंट बोर्ड चुनाव कराने की मांग की। इस महत्वपूर्ण मुलाकात के दौरान सांसद ने मेरठ कैंट बोर्ड एवं स्थानीय जन-सरोकारों से जुड़े कई गंभीर एवं लम्बे समय से लंबित मुद्दों पर चर्चा की। सांसद ने रक्षा मंत्री को पत्र देकर कैंट में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पुन: स्थापना कराने का अनुरोध किया। लेकिन हम आपको बता दें कि, पिछले दस सालों में मेरठ कैंट बोर्ड में चुनाव नहीं होने से ना केवल यहां की राजनीति को बड़ा झटका लगा है। बल्कि, अधिकांश कार्य अधर में लटके हुए है।
एक समय था जब यहां कांग्रेस नेताओं का दबदबा था। लेकिन देश, प्रदेश से लेकर कैंट तक अब भाजपा की दमदार स्थिति है, जबकि 2015 में प्रदेश में सपा की सरकार थी। हालांकि देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बन गई थी।
दरअसल, 2015 में जब मेरठ कैंट बोर्ड का चुनाव हुआ था, तब प्रदेश में सपा की सरकार थी। विपक्षी दलों ने निर्दलीय प्रत्याशियों को समर्थन देकर जीत दिलाई गई थी। भाजपा आठ में से दो सीटों पर ही चुनाव जीत सकी थी। छह सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी जीते थे। यहां तक 2015 से 2021 के बीच उपाध्यक्ष बने बीना वाधवा और विपिन सोढ़ी भी तब निर्दलीय जीते थे। जो अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं। जिससे भाजपा की अच्छी पकड़ हो गई है। अन्य निर्दलीय सभासद भी अब भाजपाई हो चुके हैं और स्थिति अब पूरी तरह से बदल गई है।
अब कैंट बोर्ड के अधिकतर दावेदार भाजपाई हो चुके हैं। विपक्ष में अब कोई दमदार प्रत्याशी भी नहीं दिख रहा। हालांकि दावा है कि, अगर चुनाव होता है तो सपा-कांग्रेस गठबंधन मजबूती से चुनाव लड़ेगा। भाजपा को वाकओवर नहीं लेने देगा, लेकिन स्थिति बदली हुई है। वहीं अगर बात करें धनराशि की तो मेरठ कैंट बोर्ड की सबसे बड़ी समस्या आर्थिक है। यदि सरकार से सहायता न मिले तो वेतन-भत्ते, पेंशन के लिए कैंट बोर्ड के पास पैसा नहीं है।
विकास कार्यों के लिए तो केन्द्र से ही अनुदान चाहिए। फिलहाल कैंट क्षेत्र की स्थिति धन के अभाव में बदहाल है। कभी कैंट का उदाहरण दिया जाता था, जो अब नहीं है। इसके अलावा कैंट को भाजपा के लिए मजबूत किला माना जाता है। सांसद, विधायक के चुनाव में विपक्ष के मुकाबले भाजपा की स्थिति काफी मजबूत है। सांसद के चुनाव में तो सबसे बड़ी जीत मेरठ कैंट क्षेत्र से ही भाजपा की हुई है। मेरठ कैंट विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा का लगभग चार दशक से कब्जा है।
लेकिन, अब माना जा रहा है कि, अगर चुनाव होता है तो भाजपा क्षेत्र की बदहाल स्थिति को लेकर गंभीर होगी। समस्याओं के समाधान के लिए रास्ता निकालेगी। आर्थिक स्थिति कैसे मजबूत हो तो विकल्प तलाशे जाएंगे। आय के स्रोत बढ़ाने पर गंभीरता से विचार होगा।
वाधवा परिवार का रहा है दबदबा
कैंट बोर्ड राजनीति में यूं तो तमाम नेता उभरकर आए। लेकिन एक परिवार ऐसा रहा, जिसका दबदबा हमेशा रहा। कैंट बोर्ड के उपाध्यक्ष सुनील वाधवा परिवार का कैंट बोर्ड में हमेशा दबदबा रहा है। यह बात अलग है कि तब वह भाजपा में नहीं थे। यही कारण रहा कि इस परिवार के कारण भाजपा को यहां पर हमेशा झटका लगा। लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। सुनील वाधवा और उनकी पत्नी पूर्व कैंट बोर्ड उपाध्यक्ष बीना वाधवा भाजपा में आ चुके हैं। जिसके कारण यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि अब भाजपा कैंट बोर्ड की राजनीति में नगर निगम जितनी ही मजबूत स्थिति में है।



