– सोशल इंजीनियरिंग के नये समीकरण को बनाने में जुटी बसपा सुप्रीमों – लोकसभा चुनाव में अकेले दम पर यूपी में बेहतर प्रदर्शन की तैयारी
अनुज मित्तल (समाचार संपादक)
मेरठ। बहुजन समाज पार्टी वर्तमान में यूपी के भीतर लोकसभा सीटों में दूसरे नंबर पर है। 2019 का लोकसभा चुनाव सपा और रालोद के साथ मिलकर लड़ने वाली बसपा इस बार अकेले दम पर चुनाव मैदान में आ रही है। इसके लिए नये सिरे से सोशल इंजीनियरिंग का समीकरण तैयार किया जा रहा है।
भाजपा तीन राज्यों में बहुमत के साथ सरकार बनाने के बाद पूरी तरह आत्मविश्वास से लबरेज है। वहीं इस परिणाम के बाद आईएनडीआईए में शामिल तमाम दल कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव को लेकर दबा हुआ महसूस कर रहे हैं। लेकिन बसपा अपनी ही धुन में नया समीकरण तैयार कर चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है।
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अपने भतीजे को उत्तराधिकारी घोषित कर युवा हाथों में पार्टी की कमान देकर एक तरह से अखिलेश, जयंत के सामने विकल्प खड़ा कर दिया है। इसके साथ ही आनंद के आने से कहीं न कहीं आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर की चुनौती को भी कम करने का प्रयास किया है।
इस युवा रणनीति के बाद अब मुख्य फोकस सोशल इंजीनियरिंग की तरफ है। बसपा को पता है कि इसी सोशल इंजीनियरिंग के बल पर वह 2007 यूपी के भीतर एक तरफा जीत हासिल कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। ऐसे में अब हर सीट का समीकरण अलग-अलग तैयार करने में बसपा की चुनाव कोर कमेटी लगी हुई है।
हर सीट पर चलेगा जातीय समीकरण
बसपा एक बार फिर से अपने मूल वोट बैंक को साधने में लग गई है। इस वोट बैंक को वह सुरक्षित सीटों पर टिकट देकर उपकृत करेगी। जबकि अन्य सीटों पर वहां के जातीय समीकरण के आधार पर जीताऊ प्रत्याशी का चयन किया जायेगा। बसपा चाहती है कि दलित वोट बैंक के साथ मिलकर प्रत्याशी अपनी जाति के वोट बैंक के सहारे जीत हासिल करे।
बूथ स्तर पर गठन प्रक्रिया चल रही तेज
बसपा सुप्रीमों मायावती ने पिछले दिनों संगठन स्तर पर काम करने का निर्देश दिया था। जिसके तहत भाजपा की तर्ज पर बूथ को ज्यादा से ज्यादा मजबूत करना है। ऐसे में प्रत्येक बूथ पर 15 यूथ का चयन कर उन्हें प्रशिक्षित भी किया जा रहा है।
आईएनडीआईए के मतभेद और भाजपा की भीतरीघात पर भी नजर
बसपा नेतृत्व का मानना है कि लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे और प्रत्याशी चयन के बाद जो माहौल बनेगा, उसका सीधे-सीधे लाभ बसपा को मिलेगा। क्योकि आईएनडीआई में जहां सीटों का बंटवाना बिना किसी मतभेद और विवाद के संभव नहीं है, तो भाजपा में प्रत्याशी चयन के बाद घमासान मचना लगभग तय है। जिस पर बसपा की पूरी नजर रहेगी। मानना है कि उसका सीधे-सीधे लाभ बसपा को ही मिलेगा।