- पांच दिन में सुनवाई होती है, मेरी याचिका दो साल अटकी रही, अमित शाह ने कहा मैंने समन मिलते ही इस्तीफा दिया।
एजेंसी, नई दिल्ली। विपक्ष द्वारा 130वें संविधान संशोधन विधेयक के विरोध के बीच अमित शाह ने कहा है कि जब सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में सीबीआई ने उन्हें समन जारी किया था तो उन्होंने समन मिलने के अगले ही दिन इस्तीफा दे दिया था। साथ ही उन्होंने कहा कि जब तक वे इस मामले से बरी नहीं हो गए, तब तक उन्होंने कोई संवैधानिक पद नहीं लिया।
दरअसल विपक्ष ने अमित शाह पर आरोप लगाए हैं और सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में जेल जाने के लिए शाह की नैतिकता पर सवाल उठाए। न्यूज एजेंसी एएनआई के साथ बातचीत में अमित शाह ने इसका जवाब देते हुए कहा कि ह्यजैसे ही मुझे सीबीआई से समन मिला, मैंने अगले ही दिन इस्तीफा दिया और मुझे बाद में गिरफ्तार किया गया।
यह मामला चलता रहा और फैसले में भी कहा गया कि यह राजनीतिक प्रतिशोध का मामला था और मैं पूरी तरह से बेगुनाह था। फैसला बाद में आया, लेकिन मुझे जमानत पहले मिल गई। इसके बावजूद मैंने शपथ नहीं ली। इतना ही नहीं जब तक मुझे पूरी तरह से बरी नहीं कर दिया गया, मैंने कोई संवैधानिक पद भी नहीं लिया। विपक्ष मुझे कौन सा नैतिकता का पाठ पढ़ाना चाहता है?
यह पूछे जाने पर कि क्या जस्टिस आफताब आलम उनके घर आए थे हस्ताक्षर लेने? इस पर अमित शाह ने इन आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि ह्यनहीं ऐसा नहीं हुआ था।
जस्टिस आफताब आलम कभी मेरे घर नहीं आए।
उन्होंने मेरी जमानत याचिका पर रविवार के दिन विशेष सुनवाई की और कहा कि गृह मंत्री होने के नाते मैं गवाहों को प्रभावित कर सकता हूं, तब मेरे वकील ने कहा कि जब तक जमानत याचिका पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक मेरे मुवक्किल गुजरात से बाहर रहेंगे।
मैं दो साल राज्य से बाहर रहा क्योंकि देश के इतिहास में किसी की भी जमानत याचिका पर दो साल तक सुनवाई नहीं हुई, लेकिन जस्टिस आफताब आलम की कृपा से मेरी जमानत याचिका पर दो साल सुनवाई चली। जबकि आमतौर पर जमानत याचिका पर 11 दिन में फैसला हो जाता है।” विपक्ष भी 130वें संविधान संशोधन में जमानत के लिए 30 दिन के समय पर सवाल उठा रहा है। इस शाह ने कहा कि मेरे मामले के अलावा सुप्रीम कोर्ट में कोई भी जमानत याचिका का केस पांच दिन से ज्यादा नहीं चलता।