आवैसी की पार्टी मेरठ के साथ पश्चिम के कई जनपदों में दिखा चुकी है ताकत।
निकाय चुनाव में मुस्लिमों की पहली पसंद बनी एआईएमआईएम।
अनुज मित्तल, समाचार संपादक |
मेरठ। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सभी प्रमुख दल जुट चुके हैं। यूपी के भीतर का रण दिलचस्प होगा। क्योंकि भाजपा, बसपा, सपा, रालोद और कांग्रेस मुख्य पार्टियां हैं, जो गठबंधन करके चुनाव मैदान में है। लेकिन इन सबके बीच कुछ ऐसी भी पार्टियां हैं, जो इनके खेल को बिगाड़ने की तैयारी में जुटी हुई है। उन्हीं में से एक है एआईएमआईएम पार्टी। जो मुसलमानों के बीच धीरे धीरे पैठ बनाते हुए सपा के सामने परेशानी खड़ी कर रही है।
स्थानीय निकाय चुनाव में मेरठ के महापौर पद पर किसी को उम्मीद नहीं थी कि आॅल इंडिया मजलिए ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन ऐसा प्रदर्शन करेगी कि बसपा और सपा जैसी पार्टियों को पीछे छोड़ देगी। लेकिन राजनीति में दूसरे के भरोसे अपना वजूद खो रहे मुसलमानों ने इस बार अलग ही सोच बनाई और एक तरफा जाकर एआईएमआईएम को वोट किया। जिसका परिणाम ये हुआ कि भाजपा को जहां आसानी से जीत हासिल हुई तो एआईएमआईएम ने सपा और बसपा को पछाड़कर दूसरे नंबर पर अपनी आमद दर्ज कराते हुए सभी को चौंका दिया। यही नहीं नगर निगम में अपने 12 पार्षद भी निर्वाचित कराने में कामयाब रहे। ये सभी पार्षद मुस्लिम बहुल वार्डों से निर्वाचित हुए।
इसका मतलब साफ है कि मुसलमान अब अपनी राह बदलने की तरफ चल पड़ा है। यदि यही सोच लोकसभा चुनाव में भी रही तो आईएनडीआईए गठबंधन सहित बसपा को भी भारी पड़ सकता है। क्योंकि इनके जीत के गणित में मुस्लिम वोट बैंक मुख्य आधार होता है।
एआईएमआईएम के जिलाध्यक्ष मौ. फहीम ने बताया कि प्रदेश स्तर से लोकसभा चुनाव की तैयारी के निर्देश दिए गए हैं। अभी यह तय नहीं हुआ कि उनकी पार्टी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। लेकिन यह तय है कि एआईएमआई फिलहाल अपने दम पर ही यूपी में लोकसभा चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है।
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार यदि निकाय जैसा इतिहास एआईएमआईएम लोकसभा चुनाव में भी दोहराती है तो सबसे ज्यादा नुकसान सपा को होगा। क्योंकि उसका सबसे बड़ा आधार मुस्लिम वोट बैंक ही है। ऐसे में गठबंधन के बावजूद सपा के सामने जीत का गणित साधना बेहद मुश्किल होगा।
भाजपा की भी है एआईएमआईएम पर नजर
भाजपा एक तरफ बसपा और दूसरी तरफ एआईएमआईएम पर नजर लगाए हुए हैं। भाजपा नेतृत्व चाहता है कि ये दोनों पार्टियां बिना गठबंधन के स्वतंत्र होकर चुनाव लड़ें। ताकि वोटों के बंटवारा हो और उसका सीधा लाभा भाजपा को मिले।
सपा नकार रही एआईएमआईएम का वजूद
सपा सूत्रों का कहना है कि निकाय चुनाव स्थानीय स्तर पर होता है। इसलिए मुसलमान एआईएमआाईएम के साथ चले गए थे। लेकिन यह चुनाव केंद्र सरकार के लिए है। क्योंकि मुसलमान भाजपा से नाराज है तो उसके सामने सिर्फ सपा ही विकल्प है। इसलिए मुसलमान इस चुनाव में एकजुट होकर सपा के पक्ष में ही मतदान करेगा। कुछ सीटें ऐसी हो सकती हैं, जहां पर भाजपा के सामने मजबूत प्रत्याशी यदि दूसरी पार्टी का नजर आता है, तो मुसलमान उसके पक्ष में वोट कर जाएं। लेकिन पूरी यूपी में मुसलमान भाजपा के खिलाफ ही एकजुट होकर वोट करेगा। जिसका लाभ सपा गठबंधन को मिलेगा।