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विधानसभा के आंकड़ों में भाजपा तो धरातल पर सपा आ रही मजबूत नजर

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– पश्चिमी की पांच लोकसभा सीटों पर भाजपा रालोद के हैं 19 विधायक
– समाजवादी पार्टी छह विधायकों के साथ पीछे, बसपा कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं
– रालोद के आठ विधायकों के निर्वाचन में मुस्लिम मतदाताओं का रहा है अहम योगदान


अनुज मित्तल (समाचार संपादक)

मेरठ। लोकसभा चुनाव में कागजी आंकड़ें भाजपा गठबंधन को सपा गठबंधन से बहुत मजबूत दिखा रहे हैं। लेकिन धरातल पर यदि इन आंकड़ों का पोस्टमार्टम करें तो हालात कुछ और ही नजर आते हैं। क्योंकि आरएलडी के जिन आठ विधायकों की गिनती भाजपाई कर रहे हैं, उन विधायकों को निर्वाचित कराने में मुस्लिम वोटरों ने अहम भूमिका निभाई है। ऐसे में क्या अब ये विधायक भाजपा के पक्ष में मुस्लिमों का वोट करवा पाएंगे? इस पर सबकी नजर है।

कैराना लोकसभा सीट पर भाजपा और रालोद के दो-दो विधायक हैं। लेकिन रालोद के दोनों विधायकों के निर्वाचन में मुस्लिम वोट यहां बेहद अहम रहे हैं। ऐसे में यदि रालोद विधायक यहां मुस्लिम वोटों को भाजपा की तरफ मोड़ देते हैं, तो निश्चित रूप से भाजपा मजबूत स्थिति में होगी, लेकिन अगर ऐसा नहीं कर पाए तो भाजपा को झटका लग सकता है।

बिजनौर सीट पर भी कैराना जैसी स्थिति है, यहां भाजपा और रालोद के पास दो-दो विधायक हैं जबकि सपा के पास मात्र एक है। बावजूद इसके बिजनौर सीट पर मुस्लिमों की संख्या काफी ज्यादा होने के कारण यहां रालोद विधायकों की अग्नि परीक्षा होगी। सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि रालोद विधायक अपनी-अपनी विधानसभा से गठबंधन से रालोद प्रत्याशी के पक्ष में कितनी वोट डलवाते हैं।

बागपत सीट पर भाजपा-रालोद गठबंधन के पास सभी पांचों सीट हैं। यहां मुस्लिम वोटों को यदि अलग भी कर दिया जाए तो यहां पर रालोद की स्थिति फिर भी बेहद मजबूत नजर आ रही है। गठबंधन से एकमात्र यही सीट ऐसी है, जिसे लेकर अभी तक किसी को कोई संशय नहीं है। यह बात अलग है कि जातीय समीकरण का दांव चलते हुए बसपा और सपा ने रालोद प्रत्याशी को उलझाने का प्रयास किया है, लेकिन फिलहाल कागजों और धरातल पर वह कहीं भी उलझे हुए नजर नहीं आ रहे हैं।

मुजफ्फरनगर सीट इस समय सबसे ज्यादा हॉट है। जिसकी गूंज पूरे देश में चल रही है। इसका कारण भाजपा के वर्तमान सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री डा. संजीव बालियान का क्षत्रिय समाज द्वारा विरोध करना है। इस लोकसभा सीट पर भाजपा का मात्र एक ही विधायक है। जबकि रालोद और सपा के दो-दो विधायक हैं। लेकिन धरातल पर अगर बात करें तो यही आंकड़ा भाजपा को कमजोर कर रहा है। क्योंकि रालोद के पास खतौली और बुढ़ाना सीट है। यहां पर मुस्लिम मतदाताओं के साथ ही अति पिछड़ा वर्ग के मतदाता खासी संख्या में है। लेकिन इस बार अति पिछड़ा वर्ग से भी कई बिरादरी भाजपा से नाराज या बंटती नजर आ रही हैं। ऐसे में भाजपा की यह सीट सबसे ज्यादा फंसी दिखाई दे रही है।

मेरठ सीट पर भाजपा के तीन और सपा के दो विधायक हैं। यहां पर विधायकों की गिनती और उनके समर्थन में आए वोट के आधार पर भाजपा प्रत्याशी मजबूत हैं। लेकिन जातीय विरोध और वोटों के बंटवारे के कारण स्थिति इस बार पलट भी सकती है। भाजपा की जीत में यहां पर त्यागी, गुर्जर, ठाकुर, जाट वोटों के साथ ही अति पिछड़ा वर्ग के वोट अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन इस बार त्यागी और ठाकुर वोट जहां नाराज हैं, तो गुर्जर वोटों का बंटवारा भी तय माना जा रहा है। अति पिछड़ा वर्ग में भी सपा और बसपा की सेंधमारी तेज है। जिसके कारण यह सीट असमंजस की स्थिति में है।

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