शारदा न्यूज़, संवाददाता |
मेरठ। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के उर्दू विभाग में डॉ. शादाब अलीम की पुस्तक “हयात-ए-नू” का विमोचन एवं महफ़िल-ए-सहरा ख्वानी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. असलम जमशेदपुरी ने कहा कि उर्दू विभाग में सेहरा ख्वानी के इस शुभ अवसर पर डॉ. शादाब अलीम द्वारा प्रस्तुत सेहरा पढ़ने की परंपरा में अब कम ही रह गई है। आज हमें चाहिए कि हर विधा पर काम करें और अपनी लुप्त होती साहित्यिक विधाओं की रक्षा करें तथा उन्हें नए आलोचकों और पाठकों के सामने उजागर करें। आज सैयद अतहरुद्दीन अतहर भी हमारे साथ होते। यह महफ़िल अधिक जीवंत होती। कार्यक्रम की शुरुआत एम. ए. द्वितीय वर्ष के छात्र मुहम्मद तल्हा ने पवित्र कुरान के पाठ और नुज़हत अख्तर द्वारा प्रस्तुत नात से हुई। मेहमानों का फूलों से स्वागत किया गया और सभी मेहमानों ने मिलकर “हयात-ए-नू” शीर्षक पुस्तक का विमोचन किया। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. मेराजुद्दीन अहमद (पूर्व मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार) और सैयद मेराजुद्दीन (पूर्व चेयरमैन, फलावदा, मेरठ), जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में सैयद नयाबुद्दीन नायाब (फलावदा), सैयद मुहम्मद आसिम (मेरठ)। असरार-उल-हक असरार और शादान फलावदी ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन इरफान आरिफ और डॉ. फुरकान सरधनवी ने संयुक्त रूप से किया ।
“हयात-ए-नू” के विमोचन के बाद डॉ. मकरम अहमद अदनी इश्काबादी, नजीर मेरठी, डॉ. फुरकान सरधनवी, वारिस वारसी और शाहिद चौधरी ने अपनी एक- एक प्रस्तुत की, जिसका श्रोताओं ने खूब आनंद लिया और सभी कवियों को उनके सुंदर शब्दों के लिए सराहा।
अपनी पुस्तक के विषय में परिचय देते हुए डॉ. शादाब अलीम ने कहा कि तकनीकी दृष्टि से सेहरा एक प्रशंसा काव्य है, जो किसी महान् व्यक्तित्व की प्रशंसा में लिखा जाता है। चरित्र वर्णन के लिए कवि ऐसा अवसर चुनता है जब वह व्यक्ति स्वयं प्रसन्नता के कगार पर होता है। इन सभी साहित्यिक विषयों के बावजूद, इस तथ्य से इनकार करना असंभव है कि सेहरानिगारी उर्दू साहित्य काव्य परंपरा का एक हिस्सा है। यह काव्य की एक खूबसूरत शैली है जिसमें साहित्य का स्वाद, भावनाओं की प्रचुरता, समापन की चपलता, कल्पना की ऊंची उड़ान, रोचकता और और दिल को छू लेने वाली कविताएं पूरी तरह से मौजूद हैं। इसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि मुस्लिम है।
सेहरा की परंपरा प्राचीन है। इसे क़सीदा की एक शाखा भी कहा जा सकता है। क़सीदा को अरबी, फ़ारसी और उर्दू में समान दर्जा प्राप्त है। अंतर केवल इतना है कि क़सीदा कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिए आरक्षित है, लेकिन सेहरा उसी व्यक्ति के लिए लिखा जा सकता है, जिसकी शादी हो रही हो। यह परंपरा भारत के लगभग सभी क्षेत्रों और शहरों में पाई जाती है। क्योंकि शादी की खुशी और उपहार देना एक स्वाभाविक भावना है। यह संस्कार जन्म के दिन से ही जीवन के शिष्टाचार में शामिल हो जाता है।
इस अवसर पर डा. आसिफ अली सुशील सीतापुरी, सैय्यद ईसा, सैय्यद मुहम्मद इरफान, सैय्यद मुहम्मद यूसुफ, सैय्यद मुहम्मद अमीर, सैय्यद मुहम्मद फुरकान, अब्दुल कादिर त्यागी, डा. मुहम्मद यूनुस, सैय्यदा काकुल रिजवी, सैय्यद अहमर, डा. कहकशां , आफाक खान. , ताहिरा परवीन सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं और शहर के गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।