भारत में एआई का बढ़ता प्रभाव; युवाओं की नौकरियों पर संकट

छात्राए बी.ई. क्लाउड कंप्यूटिंग
चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, मोहाली, पंजाब
आरुषि महाजन | युवाओं की ऊर्जा और तकनीकी प्रशिक्षण का मेल भारत को वैश्विक तकनीकी शक्ति बना सकता है। इसके लिए सरकारए शिक्षा संस्थान और उद्योगों को मिलकर एक दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी। भविष्य एआई का है, लेकिन उसमें मानव कौशल और सोच की भी अपनी भूमिका है। अगर सही दिशा में कार्य हुआए तो भारत न केवल एआई से मुकाबला करेगाए बल्कि उसका नेतृत्व भी कर सकता है।
भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तेजी से नौकरी बाजार को बदल रहा है। तकनीकी शहरों में आईटीए बीपीओए बैंकिंग और खुदरा क्षेत्रों में एंट्री लेवल नौकरियाँ गायब होती जा रही हैं। पहले जो कार्य स्नातक युवा करते थे-जैसे डेटा एंट्रीए बेसिक कोडिंग और ग्राहक सेवाकृअब वही काम मशीनें और एआई टूल्स कर रहे हैं। कंपनियाँ लागत कम करने और दक्षता बढ़ाने के लिए आॅटोमेशन को तेजी से अपना रही हैं। NASSCOM की रिपोर्ट के अनुसार 2027 तक कम कौशल वाली आईटी नौकरियों में 20 प्रतिशत की गिरावट हो सकती है। बड़े कॉपोर्रेट जैसे इंफोसिस और अमेजन ने पहले ही कई ऐसे कामों को स्वचालित कर दिया है जो पहले इंसान करते थे। बैंकिंग में चैटबॉट्स अब सामान्य ग्राहक प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं और खुदरा क्षेत्र में मशीन लर्निंग इन्वेंट्री को आॅटोमेट कर रही है।
भारत की सबसे बड़ी पूंजी उसकी युवा आबादी है। देश की आधी से अधिक जनसंख्या 25 वर्ष से कम उम्र की है। एंट्री लेवल की नौकरियाँ युवाओं के लिए न सिर्फ आय का जरिया थींए बल्कि यह उनके करियर की नींव भी थीं। लेकिन अब जब वही नौकरियाँ घट रही हैंए तो युवाओं के सामने बड़ा संकट खड़ा है। गिग इकोनॉमीए जिसे युवा एक वैकल्पिक अवसर मानते थे, वह भी अब एआई के चलते प्रभावित हो रही है। डेटा लेबलिंगए आॅनलाइन ग्राहक सहायताए टाइपिंग जैसी फ्रीलांस नौकरियाँ अब तेजी से खत्म हो रही हैं या उनकी दरें घटती जा रही हैं। इससे न केवल कमाई घट रही हैए बल्कि प्रतिस्पर्धा भी बहुत अधिक बढ़ गई है।
हालांकि एआई नए क्षेत्रों में नौकरियाँ भी पैदा कर रहा है-जैसे डेटा साइंटिस्ट, मशीन लर्निंग इंजीनियर, एआई डेवलपर आदि। पर इन नौकरियों के लिए गहरी तकनीकी समझ, गणितीय ज्ञान और प्रोग्रामिंग कौशल चाहिए, जो अधिकांश स्नातकों में नहीं है।
भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली अभी भी रटने और परीक्षा पास करने पर केंद्रित है। व्यावहारिक शिक्षाए तकनीकी प्रयोग और नवाचार पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता। इसलिए जब छात्र स्नातक होकर बाहर निकलते हैं, तब वे एआई से प्रभावित नौकरी बाजार के लिए तैयार नहीं होते। कंपनियाँ भी कर्मचारियों को फिर से प्रशिक्षित करने में हिचक रही हैं। प्रशिक्षण को महंगा और समय लेने वाला मानकर कई फर्में इस पर निवेश नहीं करतीं। उनका मुख्य उद्देश्य लागत में कटौती और उत्पादकता बढ़ाना होता है। जिससे युवाओं को कौशल विकसित करने का अवसर नहीं मिल पाता। सरकार और उद्योगों को मिलकर इस स्थिति का समाधान निकालना होगा। शिक्षा में बदलाव लाकर तकनीकी विषयों को प्राथमिकता देनी होगी-जैसे कोडिंगए डेटा विश्लेषणए मशीन लर्निंग और एआई साक्षरता।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने इन मुद्दों को पहचाना हैए लेकिन इसका कार्यान्वयन अभी बहुत धीमा है। स्कूल और कॉलेजों में विद्यार्थियों को व्यावहारिक परियोजनाओं और तकनीकी नवाचारों से जोड़ना होगा। कंपनियों को रिस्किलिंग कार्यक्रम शुरू करने चाहिएए जिससे वे अपने मौजूदा कर्मचारियों को नई तकनीकों में प्रशिक्षित कर सकें। सरकार को उन कंपनियों को प्रोत्साहन देना चाहिए, जो एआई के साथ मानव रोजगार को भी बढ़ावा दें। ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में इंटरनेट और डिजिटल शिक्षा की सुविधा पहुंचाकर देश के हर कोने तक तकनीकी शिक्षा को लाना आवश्यक है। यह केवल शहरों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। यदि आज यह कदम नहीं उठाए गएए तो भविष्य में करोड़ों युवा नौकरी की तलाश में भटकते रहेंगे। लेकिन यदि भारत समय रहते तैयार हो जाएए तो यही एआई युग भारत के लिए नवाचार और विकास का एक सुनहरा अवसर बन सकता है।
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