मुंबई। दंगल की गीता फोगट हो या ठग्स आॅफ हिंदोस्तान की वॉरियर प्रिंसेस जाफिरा, मॉडर्न लव मुंबई की लालजरी या धक धक की बिंदास स्काई, ऐक्ट्रेस फातिमा सना शेख ने पर्दे पर हमेशा मजबूत लड़कियों के किरदार निभाए हैं। इन दिनों वह चर्चा में हैं, अनुराग बसु की फिल्म मेट्रो इन दिनों के लिए। ऐसे में, हमने उनसे प्यार, रिश्ते, शादी आदि पर की खास बातचीत। एक दौर था, जब बॉलिवुड अपनी रोमांटिक फिल्मों के लिए जाना जाता था। मगर कुछ सालों से क्राइम, ऐक्शन, थ्रिलर पर ज्यादा जोर दिख रहा है।
आपको लगता है कि लोग रोमांटिक फिल्में मिस कर रहे हैं? सौ फीसदी। हम सब मिस कर रहे हैं, क्योंकि सिनेमा को इतना सीरियस भी नहीं ले सकते। हम सबकी जिंदगी में वैसे ही इतनी मुश्किलें, इतनी सीरियस चीजें हैं कि आप पर्दे पर कुछ हल्का-फुल्का देखना चाहते हैं। रोमांटिक फिल्में हमेशा हमारी जिंदगी का हिस्सा रही हैं। हमने अपनी जिंदगी में जितना भी रोमांस किया है, उस पर कुछ न कुछ प्रभाव हमारी फिल्मों का रहा ही है। हमने फिल्मों में देखा कि शाहरुख ने ऐसा कुछ किया तो उसे अपनी असल जिंदगी में अप्लाई किया, तो वो चीज मुझे लगता है कि अभी मिसिंग है।
हमारी फिल्म मेट्रो इन दिनों से शायद वो कमी थोड़ी दूर हो, क्योंकि इसमें अलग-अलग उम्र, अलग-अलग किस्म के प्यार की कहानी है, तो हर इंसान किसी ना किसी इमोशन रिलेट करेगा। आजकल प्यार बहुत जटिल हो गया है, जैसा कि फिल्म में भी एक डायलॉग है। शादी की संस्था से भी युवा पीढ़ी का भरोसा उठ रहा है। आपका प्यार और शादी को लेकर क्या नजरिाया है? फातिमा ने कहा, ह्यप्यार को लेकर हम लोग जो इतना सोचते हैं कि हम प्यार ऐसे करेंगे, वैसे करेंगे, मगर असल जिंदगी में जब आप प्यार में पड़ते हैं, तो उस पर कुछ कंट्रोल नहीं होता। आपके जितने भी सिद्धांत या नियम होते हैं सब खिड़की के बाहर चले जाते हैं। उसी तरह, मैं शादी में यकीन रखती हूं और मुझे लगता है कि शादी तब ज्यादा चलती है, जब बच्चा होता है।
क्योंकि हमारे देश में अगर मां, बाप और बच्चा एक परिवार के रूप में साथ होते हैं, तो सरकार बहुत सारी सुविधाएं और सुरक्षा देती है। कानून भी प्रोटेक्ट करता है, तो बहुत सारे फायदे हैं। इसके अलावा, शादी को तोड़ने के लिए बहुत सोचना पड़ता है। आप ऐसे उठकर अलग नहीं हो जाते। फिर भी इन दिनों तो तलाक के मामले बहुत ज्यादा सामने आ रहे हैं।
यह भी अच्छी बात है ना। पहले तलाक एक टैबू था। दूसरे, बहुत सारी औरतें कमाती नहीं थीं। वे अपने पति पर ही निर्भर होती थीं। उनके पास कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं होता था, इसलिए वे तलाक लेने की सोचती भी थीं तो हमारा समाज उन्हें हतोत्साहित ही करता था। मगर आज वे आत्मनिर्भर हैं। ऐसे में, अगर दो लोगों के बीच जम नहीं रहा है, तो हमें एक समाज के तौर पर उन्हें सपोर्ट करना चाहिए, क्योंकि ऐसे साथ रहने का क्या मतलब है? टूटे हुए घर में अगर बच्चा भी होता है ना, तो वो भी टूट जाता है। बाहरवालों के लिए बोलना आसान होता है कि शादी को निभाना चाहिए, मगर हमने बहुत देखा है कि अगर घर में क्लेश होता है तो बच्चे पर भी खराब असर ही पड़ता है। मेरे हिसाब से ऐसे में तलाक एक एंपवारमेंट है। अगर रिश्ता बिल्कुल टॉक्सिक है, तो उसका टूट जाना ही बेहतर है।