सुप्रीम कोर्ट की फटकार: केंद्रीय शासन और प्रवर्तन निदेशालय की निकटता पर गंभीर सवाल

आदेश प्रधान एडवोकेट | भारतीय लोकतंत्र एक ऐसी प्रणाली है, जिसकी नींव न्याय, स्वतंत्रता, समता और गरिमा जैसे मूलभूत सिद्धांतों पर टिकी हुई है। इस लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि संवैधानिक संस्थाएँ स्वतंत्र, निष्पक्ष और जवाबदेह बनी रहें। जब इन संस्थाओं की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं, तो वह केवल एक संस्था नहीं, बल्कि लोकतंत्र की पूरी संरचना पर आघात होता है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय की भूमिका और उसकी कार्यप्रणाली पर गंभीर टिप्पणी की, जो इस दिशा में एक चेतावनी के समान है।
प्रवर्तन निदेशालय: भूमिका और उद्देश्य-
प्रवर्तन निदेशालय भारत सरकार की एक विशेष जांच एजेंसी है, इसका मूल उद्देश्य आर्थिक अपराधों पर नियंत्रण, काले धन की जांच और विदेशी मुद्रा उल्लंघनों को रोकना था। समय के साथ इसकी शक्तियाँ बढ़ती गईं और यह एक प्रभावशाली एजेंसी बनकर उभरी। परंतु विडंबना यह है कि बढ़ती शक्ति के साथ-साथ उस पर राजनीतिक दुरुपयोग के आरोप भी गहराते गए।
ईडी की निष्पक्षता पर सवाल
पिछले कुछ वर्षों में विशेषकर तब से जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार सत्ता में आई, ईडी की कार्यशैली को लेकर कई बार विपक्षी दलों ने आवाज उठाई है। आरोप यह हैं कि यह एजेंसी विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ ज्यादा सक्रिय दिखाई देती है, जबकि सत्ता पक्ष से जुड़े मामलों में उसकी कार्यवाही धीमी या नगण्य रहती है। यह असंतुलन लोकतंत्र में निष्पक्ष जांच की अवधारणा पर प्रश्नचिह्न लगाता है।