– गठबंधन से रालोद के अलग होने पर सपा-कांग्रेस में बेचैनी
– अब बसपा को साथ लाने पर दिया जा रहा जोर
– रालोद जाने से बदल गए हैं पश्चिमी यूपी के राजनीतिक समीकरण


अनुज मित्तल (समाचार संपादक)

मेरठ। लोकसभा चुनाव की अधिसूचना से पहले ही राजनीतिक दलों के बीच शह और मात का गेम चल रहा है। कौन कब किसका साथ छोड़ दे और किसका दामन थाम ले कहना मुश्किल नजर आ रहा है। लेकिन फिलहाल जो बदले हालात हैं, उसमें अब बसपा की चाल पर सबकी नजर लगी है। क्योंकि वर्तमान हालात में सपा-कांग्रेस दोनों को बसपा का साथ हर हाल में चाहिए। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मार्च में बसपा की तरफ से भी कोई सूचना आ सकती है।

उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने इस समय कोई भी अकेला दल टिकने की स्थिति में नहीं है। लेकिन गठबंधन के बाद भाजपा के अंदर बेचैनी थी। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी उसके सामने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में थी, क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश जाट बहुल होने के साथ ही यहां की राजनीति को भी लीड करता है। वर्तमान में जाट वोट बैंक रालोद के पक्ष में ज्यादा रूझान लिए हुए है। ऐसे हालात में रालोद यदि सपा के साथ रहते हुए चुनाव लड़ता तो जाट-मुस्लिम समीकरण के साथ यादव सहित अन्य वोटों के सहारे भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर सकता था।

लेकिन अब रालोद लगभग भाजपा के साथ जाने की तैयारी का चुका है, तो सपा और कांग्रेस में बेचैनी बढ़ गई है। क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा अकेले मुस्लिमों के दम पर कोई बड़ा करिश्मा करने की स्थिति में नजर नही आती है और कांग्रेस का जनाधार तो लगभग पश्चिमी यूपी में सिमट ही चुका है।
अब चाहिए बसपा का साथ

आईएनडीआईए गठबंधन में शामिल सभी दल बसपा को भी साथ लाने के पक्षधर थे, लेकिन अकेले समाजवादी पार्टी ही विरोध कर रही थी। लेकिन अब जो हालात बने हैं, उससे सपा में ही सबसे ज्यादा बेचैनी है। ऐसे में सपा के ही वरिष्ठ नेता अब बसपा को साथ मिलाने पर जोर दे रहे हैं। क्योंकि बिना बसपा को साथ लाए सपा-कांग्रेस भाजपा के सामने यूपी में नहीं टिक सकते हैं। इसके अलावा एक बड़ा कारण ये भी है कि बसपा अगर अलग रहकर चुनाव लड़ती है तो वह जीते या न जीते, लेकिन सपा और कांग्रेस की राह हर सीट पर जरूर मुश्किल करेगी, जिसका सीधे-सीधे लाभ भाजपा को जाएगा।

अधिसूचना के साथ ही मिल सकती है बसपा से सूचना

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजनीति में कोई भी बयान अंतिम नहीं होता, वह समय के साथ बदलता रहता है। बसपा सुप्रीमो मायावती भले ही अकेले चुनाव लड़ने और सपा पर कोई भी टिप्पणी कर चुकी हों। लेकिन वह भी जानती हैं कि अकेले चुनाव लड़ने पर उन्हें भी कुछ हासिल नहीं होगा, उल्टे हाशिए पर आ जाएंगी। जो भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है। ऐसे में लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद सपा और कांग्रेस मिलकर बसपा को मनाते हुए अपने साथ ला सकती हैं।

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