– सुबह-शाम कभी भी कर रहे अटैक, घर के अंदर भी असुरक्षित लोग
शारदा रिपोर्टर मेरठ। शहर के लोगों को इन दिनों अजीब समस्या का सामना करना पड़ रहा है। जहां आमतौर चोर से परेशान रहते हैं, मेरठ में लोग बंदरों से परेशान हैं। पूरे शहर में तीस हजार से अधिक बंदर खुलेआम घूम रहे हैं। इन्हें कौन पकड़े और पकड़कर कहां रखा जाए, ये बड़ा सवाल है। बंदरों की समस्या को लेकर नगर निगम और वन विभाग दोनों में ही अजीब सी जंग देखने को मिल रही है।
दरअसल, वन विभाग का कहना है कि बंदर वाइल्ड लाइफ की कैटेगरी में नहीं आते हैं। ये कुत्ते और बिल्ली की तरह डोमेस्टिक एनिमल्स की कैटेगरी में आते हैं। ऐसे में नगर निगम ही इन्हें पकड़ सकता है। हालांकि, वन विभाग अपनी तरफ से जितनी हो सके, उतनी मदद करने को तैयार है। लेकिन नगर निगम का कहना है कि वो तीस हजार बंदरों को पकड़कर कहां छोड़ेगा। इस तरह दोनों के बीच की इस संशय के बीच मेरठ शहर के लोगों की जिंदगी में कोहराम मचा हुआ है। बंदरों के अटैक के कई मामले सामने आते जा रहे हैं।
मामले को लेकर मेरठ के जिÞला वन अधिकारी राजेश कुमार का कहना है कि वाइल्ड लाइफ की कैटेगरी में लंगूर आते हैं ना की बंदर। बंदर अब वाइल्ड लाइफ की कैटेगरी में नहीं रह गए हैं। 2022 से ही बंदर वन्य जीव की कैटगरी में शामिल नहीं हैं, अब वो डॉग्स या कैटल्स की कैटेगरी में आते हैं। बंदर अब डोमेस्टिक एनिमल की श्रेणी में है। इसलिए अब बंदरों की समस्या से उनका कोई सीधा लेना-देना नहीं रह गया है। वो कहते हैं कि तकनीकी रुप से वन विभाग नगर निगम को सपोर्ट देने को तैयार है। बंदरों को पकड़ने के लिए वन विभाग की अनुमति जरुरी नहीं है।
नगर निगम ने रखा अपना पक्ष
वहीं मेरठ के नगर आयुक्त सौरभ गंगवार का कहना है कि ये कहां कहा गया है कि बंदर नगर निगम के दायरे में शामिल हो गया है। क्योंकि हम शहर की जिÞम्मेदारी लेते हैं इसलिए हम इसका समाधान खोज रहे हैं। बंदर पकड़ने वाली एक संस्था के साथ नगर निगम का टाईअप है। लेकिन सवाल ये उठता है कि मंकी को पकड़ने के बाद हम उन्हें छोड़ें कहां? छोड़ने का प्रॉपर स्थान नहीं मिल पा रहा है।
लोगों ने की पहल
बंदरों को लेकर नगर निगम और वन विभाग के रवैये को देखते हुए जब लोग थक गए तब उन्होंने बंदरों से बचने के लिए खुद ही पहल शुरू कर दी है। लोग अपने घरों में जाल लगा कर बंदरों को पकड़ रहे हैं। लोगों का कहना है कि सैकड़ों की संख्या में बंदर झुंड बनाकर आते हैं और देखते ही देखते पूरे इलाके में कब्जा कर लेते हैं। जब एकाएक घर के अंदर या छत पर लोगों का सामना बंदर से होता है तो वो घबरा जाते हैं। कभी-कभी इसी घबराहट की वजह से बड़े हादसे तक हो जाते हैं।
एक अनुमान के मुताबिक शहर में लगभग तीस हजार बंदर हैं। ऐसे में बंदरों को रखने के लिए रेस्क्यू सेंटर बनाने की जरुरत है। रेस्क्यू सेंटर को बनाने और बंदरों के रखरखाव पर आने वाले खर्च की व्यवस्था कहां से होगी, ये भी लाख टके का सवाल है। रेस्क्यू सेंटर में बंदरों की नसबंदी और एंटी रेबीज वैक्सीनेशन का खर्च कौन उठाएगा, इसकी भी कोई नियमावली नहीं बनी है। निगम की मानें तो रेस्क्यू सेंटर बनाने में कम से कम पंद्रह करोड़ का खर्च आएगा। नगर निगम ने कई बार पत्र भेजकर आलाधिकारियों से मार्ग दर्शन मांगा है लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।