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Thursday, November 13, 2025
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नाम बदल कर बॉलीवुड में राज किया इन कलाकारों ने

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मौके की नजाकत


Editor Gyan Prakash
ज्ञान प्रकाश, समूह संपादक |

– सपनों की नगरी मुंबई में आकर हीरो और हीरोइन बनना लोगों का सपना रहता है। इसमें कई लोग सफल होते हैं और कई लोगों को अथक परिश्रम करने के बाद भी नाकामयाबी हाथ लगती है। इनके अलावा हीरो और हीरोइनों का एक वर्ग ऐसा भी है जिनको बालीवुड में एंट्री तो मिल जाती है लेकिन मुस्लिम होने के कारण उनके फिल्मों के निर्देशक कामयाबी की गारंटी मानते हुए उनका हिंदू नाम रख देते हैं। ऐसे लोगों की फेहरिस्त है जो नाम बदलने के बाद लाखों करोड़ों की निगाहों में फेवरेट बन गए। इनमें दिलीप कुमार और मधुबाला जैसे लोग आइकन बन गए।

मधुबाला
मधुबाला

– बालीवुड में मधुबाला का नाम फिल्मी इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। माना जाता है कि इस हीरोइन जैसी सुन्दरता और अभिनय की कला अन्य अभिनेत्रियों के लिये हमेशा एक चुनौती बनी रही।

मधुबाला का असली नाम मुमताज जहां बेगम देहलवी था। बॉलीवुड में आते ही फिल्म निर्देशक ने उनका नाम मुमताज से बदलकर मधुबाला कर दिया था। मधुबाला को असली पहचान साल 1947 में आई फिल्म ‘नीलकमल’ से मिली थी। मधुबाला उर्फ मुमताज बेगम दिल्ली की एक मुस्लिम परिवार से संबंध रखती थीं।

महज 36 साल की उम्र में इस दुनिया से विदा लेने वाली मधुबाला ने 1960 में किशोर कुमार से शादी की, लेकिन इसके 9 साल बाद 23 फरवरी 1969 को वह चल बसीं। मधुबाला की लव लाइफ में यूं तो पहला नाम एक्टर प्रेमनाथ का था, लेकिन उनका यह रिश्ता महज 6 महीने चला। मधुबाला का नाम ‘ट्रेजडी क्वीन’ भी रख दिया गया था, क्योंकि कई फिल्मों के आखिर में उनकी मौत दिखाई गई थी. वहीं मधुबाला का असल जीवन भी किसी फिल्म से कम नहीं रहा। मधुबाला अपने छोटे से जीवन में फिल्मों की एक लंबी पारी खेल गईं। उनकी खूबसूरती और स्टाइल के लिए आज भी उन्हें याद किया जाता है।

रीना रॉय

– बॉलीवुड फिल्मों एक्ट्रेस रीना रॉय भी एक मुस्लिम परिवार से संबंध रखती हैं। रीना रॉय का असली नाम सायरा अली है। उन्होंने साल 1972 में फिल्म ‘जरूरत’ से बॉलीवुड में एंट्री की। बॉलीवुड में कदम रखते के साथ ही सायरा अली ने नाम बदलकर रीना रॉय रख दिया गया। उन्होंने 1972 से 1985 तक कई फिल्मों में प्रमुख भूमिकाएं निभाई हैं और उस युग की एक प्रमुख अभिनेत्री थीं। वह अपने समय की सबसे अधिक कमाई वाली अभिनेत्री में से एक थीं। उन्हें हिन्दी सिनेमा में उनके योगदान के लिए शर्मिला टैगोर के साथ 1998 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। वह सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था। जो उन्हें फिल्म अपनापन (1977) में उनके प्रदर्शन के लिए दिया गया था। उन्हें नागिन (1976) और आशा (1980) के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार के लिए नामांकन मिला था।

अमिता
अमिता

– इस चुलबुली हीरोइन का असली नाम कमर सुल्ताना था। तुमसा नहीं देखा , मेरे मेहबूब और गूंज उठी शहनाई जैसी फिल्मों में उनके अभिनय को काफी सराहा गया।अमिता को मेरे मेहबूब (1962) के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के रूप में फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, लेकिन गुमराह (1963) के लिए वह शशिकला से हार गईं । वह 20 नवंबर 2005 को सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड स्वीकार करने के लिए केवल एक बार एकांत से बाहर आईं और फिर गायब हो गईं थी।

श्यामा
श्यामा

– 7 जून 1935 को लाहौर में जन्मी श्यामा का वास्तविक नाम खुर्शीद अख्तर था। चालीस के दशक में वे लाहौर से मुंबई चली आईं और कम उम्र में ही फिल्मों में काम शुरू कर दिया। श्यामा का असली नाम खर्शीद अख्तर था। डायरेक्टर विजय भट्ट ने उन्हें श्यामा नाम दिया। श्यामा ने 45 साल की उम्र तक करीब 175 फिल्मों में काम किया। श्यामा को फिल्म ‘मिलन’ में काम करने के लिए फिल्मफेयर का बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला था।उनकी सबसे प्रसिद्ध भूमिकाएँ आर पार (1954), बरसात की रात (1960) और तराना में थीं । मिलन , भाई-भाई (1956), मिर्जा साहिबान (1957), भाभी (1957) और शारदा (1957) में उनके प्रदर्शन के माध्यम से उन्हें उनकी बहुमुखी प्रतिभा के लिए भी देखा गया । शारदा में उनके अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

कुमकुम
कुमकुम

– कुमकुम का असली नाम जैबुनिस्सा था। बिहार की रहने वाली कुमकुम हिन्दी व भोजपुरी फिल्मो की एक अभिनेत्री थी। उन्होनें 100 से अधिक फिल्मों में काम किया। उन्होंने ‘मदर इंडिया’, ‘मिस्टर एक्स इन बॉम्बे’, ‘सन आॅफ इंडिया’, ‘कोहिनूर’, ‘नया दौर’, ‘दो आंखें बाहर हाथ, ‘बसंत बहार’, ‘उजाला’, ‘एक सपेरा, एक लुटेरा’, ‘राजा और रंक’, ‘आंखें’, ‘गंगा की लहरें’, ‘गीत’, ‘ललकार’, ‘एक कुंवारा, एक कुंवारी’, ‘जलते बदन’, ‘किंग कॉन्ग’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया। कुमकुम जाने-माने निर्देशक गुरू दत्त की खोज थीं. गुरू दत्त उन दिनों फिल्म ‘आर पार’ बना रहे थे, जिसका मशहूर गाना ‘कभी आर कभी पार लागा तीरे नजर’ वो किसी स्थापित हीरोइन पर फिल्माना चाह रहे थे।

मीना कुमारी
मीना कुमारी

– मीना कुमारी का असली नाम महजबीं बानो था और मुंबई में पैदा हुई थीं। दरिद्रता से ग्रस्त उनके पिता अली बक़्श उन्हें पैदा होते ही अनाथाश्रम में छोड़ आए थे। मीना कुमारी ने हिंदी सिनेमा में अपनी अलग ही छाप छोड़ी है। उन्होंने अपनी जिंदगी के दुखों को पर्दे पर बखूबी उकेरा है। उन्होंने हिंदी सिनेमा में एक से बढ़कर एक किरदार निभाए, जो काफी हिट भी हुए और हमेशा के लिए अमर हो गए। मीना कुमारी अक्सर फिल्मों में अपने बाएं हाथ को कैमरों के सामने लाने से बचाती थीं। दरअसल इसके पीछे एक वजह थी। वो वजह थी मीना कुमारी के बाएं हाथ की उंगली का टेढ़ा होना।

पाकीजा, बैजू बावरा, साहब बीबी और गुलाम, दिल एक मंदिर, यहूदी, परिणीता, जैसी तमाम फिल्में देने वाली मीना कुमारी ने 38 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। बता दें कि मीना कुमारी को लीवर की बीमारी थी, जिसके चलते उनके आखिरी दिन काफी दर्दनीय रहे। पूरी जिंदगी वह अपने पति कमाल अमरोही के द्वारा दिये गए दर्द से परेशान रही।

तब्बू
तब्बू

– तब्बू भी मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनकी असली नाम तब्बसुम फातिमा हाशमी है। तब्बू ने साल 1985 में फिल्म हम नौजवान से बॉलीवुड डेब्यू किया। इसके बाद उन्होंने कई सुपरहिट फिल्में दी। तब्बू ने बॉर्डर (1997), साजन चले ससुराल (1996), बीवी नंबर वन, हम साथ साथ हैं(1999) माचिस (1996), विरासत (1997), हु तू तू (1999) अस्तित्व (2000), चांदनी बार (2001), मकबूल (2003) एवं चीनी कम (2007) में उन्होंने उल्लेखनीय अभिनय किया है।

 

मान्यता दत्त

– संजय दत्त की पत्नी मान्यता दत्त भी मुस्लिम हैं। उनका असली नाम दिलनवाज शेख है और यह संजय दत्त की तीसरी पत्नी हैं। बताया जाता है कि मान्यता ने फिल्में में आने के लिए दिलनवाज शेख नाम बदलकर मान्यता रख लिया था। वह फिल्म गंगाजल में आइटम नंबर कर के चर्चा में आई थीं।

दिलीप कुमार
दिलीप कुमार

-ट्रैजिडी किंग कुमार का जन्म मोहम्मद यूसुफ खान के रूप में पेशावर, पाकिस्तान में एक पश्तून परिवार में हुआ था। बॉम्बे टॉकीज के स्क्रिप्ट विभाग में सहायता करने के बाद वह बॉलीवुड में शामिल हो गए जहाँ उनकी मुलाकात देविका रानी से हुई, जिन्होंने उनसे अपना नाम बदलकर दिलीप कुमार रखने का अनुरोध किया। इसके बाद, उन्होंने ज्वार भाटा में मुख्य भूमिका निभाई। उन्होंने मुगले आजम, गंगा जमना, अमर, दीदार, शक्ति, विधाता, क्रांति,दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, आदमी और बाकी इतिहास में अनेकों फिल्म दर्ज है।

संजय खान
संजय खान

– इनका असली नाम शाह अब्बास खान था। संजय खान ने दोस्ती, हकीकत और दस लाख जैसी फिल्मों में संजय नाम का उपयोग करना शुरू किया , जिसके बाद उन्होंने अपने आॅनस्क्रीन नाम के साथ ‘खान’ जोड़ लिया। 60, 70 और 80 के दशक में संजय मशहूर अभिनेता और निर्देशक बन गये।

 

 

 

अर्जुन

महाभारत सीरियल में अर्जुन की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अर्जुन का नाम फिरोज खान ने कई फिल्मों में विलेन का रोल भी किया।

 

जगदीप
जगदीप

-हास्य अभिनेता जगदीप का जन्म का नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी था। उन्होंने 400 से अधिक फिल्मों में काम किया और 1951 में निर्देशक बीआर चोपड़ा की फिल्म अफसाना में एक बाल कलाकार के रूप में अपना करियर शुरू किया । लेकिन निर्देशक बिमल रॉय के अनुरोध पर, उन्होंने दो बीघा जमीन करते समय अपना नाम बदलकर जगदीप रख लिया।

 

 

जयंत

बालीवुड के मशहूर सहायक अभिनेता जयंत का असली नाम जकारिया खान था।1915 में पेशावर के एक पश्तून-परिवार में जन्मे जकारिया खान ने लाल चिट्टा (1935) से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा। निमार्ता-निर्देशक विजय भट्ट ने उनका नाम बदल दिया और उन्हें जयंत के नाम से जाना जाने लगा। वह लोकप्रिय अभिनेता अमजद खान के पिता भी हैं। उन्होंने मधुमती, परख, हिमालय की गोद में, हकीकत,दो रास्ते आदि में काम किया। वह मशहूर अभिनेता अमजद खान और इम्तियाज खान के पिता थे।

 

अजीत (हामिद अली खान)
अजीत (हामिद अली खान)

– हामिद अली खान के रूप में जन्मे अजीत ने फिल्म कुरूक्षेत्र से अभिनय की दुनिया में कदम रखा , जहां उन्होंने अपना असली नाम इस्तेमाल किया। फिल्म निर्देशक के. अमरनाथ , जिन्होंने उन्हें बेकसूर में निर्देशित किया था, ने सुझाव दिया कि अभिनेता को अपना लंबा नाम हामिद अली खान बदलकर कुछ छोटा कर लेना चाहिए, और हामिद ने अजीत चुना। बेकसूर (1950), जिसमें उन्होंने मधुबाला के साथ अभिनय किया , 1950 की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक थी। नायक के रूप में अजीत की फिल्मों में नास्तिक (1953), बड़ा भाई , मिलन , बारादरी (1955) और ढोलक (1951) और शामिल हैं। इन सभी में उन्होंने अभिनेता के रूप में विश्वसनीय काम किया। नास्तिक (1953) में उन पर गाना देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान फिल्माया गया है। नया दौर और मुगल-ए-आजम में उनकी यादगार भूमिका थी।

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