- सच संस्था के संदीप पहल ने कहा – कोर्ट के आदेशों की समीक्षा नहीं
शारदा रिपोर्टर मेरठ। शुक्रवार को सच संस्था के अध्यक्ष संदीप पहल ने बताया शास्त्री नगर योजना संख्या-7, सेक्टर-6 भवन संख्या 061/6 को सम्बन्ध में रिषिकेश भास्कर यशोद आयुक्त मेरठ मण्डल मेरठ व अन्यों द्वारा समीक्षा कर 27 अक्टूबर को परित अनाधिकृत व भेदभाव पूर्ण आदेश सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय इलाहाबाद का आदेश 5 दिसंबर 2014 में गतिरोध उत्पन्न करने वाला है, जो उच्च न्यायालय इलाहाबाद और सुप्रीम कोर्ट भारत के आदेशों की जानबूझकर अवमानना व अवहेलना है।
उन्होंने कहा कि पहला प्रश्न यह है कि, क्या उच्च न्यायालय इलाहाबाद और सुप्रीम कोर्ट भारत के आदेशों की समीक्षा बैठक 27 अक्टूबर में की जा सकती थी, उत्तर है नहीं। यह बैठक पूर्णत उच्च न्यायालय इलाहाबाद और सुप्रीम कोर्ट भारत के आदेशों की अवहेलना और अवमानना है।

उन्होंने कहा कि क्या उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने गलत आदेश पारित किये है तो उत्तर है नहीं दोनों आदेश कानून अनुसार और तर्क संगत है। बताया कि, 27 अक्टूबर 2025 को आयुक्त हृषिकेश भास्कर यशोद, कैंट विधायक अमित अग्रवाल विधायक, मेयर हरिकान्त अहुवालिया, बीजेपी महानगर अध्यक्ष विवेक रस्तौगी, नगर आयुक्त सौरभ गंगवार नगर और अन्य अधिकारियों ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश 5-12-2014 और सुप्रीम कोर्ट भारत के आदेश 17 दिसंबर 2024 की समीक्षा करते हुए दोनो आदेशों पर स्थगन आदेश जारी किया है, जो इन सभी के अधिकार क्षेत्र से बाहर था और आज भी अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

बताया कि, सुप्रीम कोर्ट भारत ने अपने आदेश में उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश को सही मानते हुए आपने आदेश के पैरा 220५) में स्पष्ट निर्देश दिए है कि उच्च न्यायालय के आदेश को लागू करने के लिए समीप्राधिकारी आवश्यक सहायता आवास विकास परिषद को देंगे और पैरा 22(५) में स्पष्ट किया है कि सभी अपराधी अधिकारियों व्यक्तियों के विरुद्ध कानूनी और विभागीय कार्यवाही करते हुए आख्या न्यायालय में प्रस्तुत करें। परन्तु सभी अधिकारियों ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना कर डाली।
जबकि, न्यायालय ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि हमें यह अंकित करने में कोई संकोच नहीं है कि इतने बड़े निर्माण एक दिन नहीं बन कर खड़े हो गये हैं, यह निर्माण भू माफिया और आवास विकास परिषद के अधिकारियों की मौलीभगत से हुए हैं। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि आवास विकास परिषद और ऐसी विकास प्राधिकरण अधिकारियों के लिए अवैध उगाही के साधन बन गये हैं। आवास विकास परिषद ने सुप्रीम कोर्ट में शास्त्री नगर की स्कीम 7 व स्कीम 3 में कुल 1478 आवासीय भवन पर अवैध कामर्शियल निर्माण की सूची जमा की थी।
उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने आवास विकास परिषद को स्पष्ट आदेश दिए है कि वह बिना किसी भेद भाव के एक निश्चित समय सीमा में सारे अवैध कामर्शियल निर्माण तोड़े।
जबकि, 22 दुकानें तोड़े जाने के बाद न्यायालयों के आदेशों पर रोक लगाना आवासीय मकान बालों पर अत्याचार होने के साथ-साथ सुनियोजित विकास में बाधा है, जो पूर्णत: गैर कानूनी है।



