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गुटबाजी में हाथ से निकल गया सपा के हाथ से जनहित का मुद्दा

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– भाजपाइयों के समर्थन से चिकित्सकों की लॉबी रही हावी
– विधायक अतुल प्रधान को मिला सिर्फ अपने कार्यकर्ताओं का समर्थन


अनुज मित्तल (समाचार संपादक)

मेरठ। निजी अस्पतालों के खिलाफ सपा विधायक अतुल प्रधान की लड़ाई कई सवाल खड़े कर गई। इस पूरे विवाद में जीत सिर्फ चिकित्सक लॉबी की हुई है। लेकिन भाजपाई कहीं न कहीं जनता के निशाने पर आ गए हैं। वहीं सपा की गुटबाजी ने भविष्य की राह मुश्किल कर दी है।

न्यूटिमा अस्पताल में एक नवजात बच्ची और उसकी मां के इलाज पर आए खर्च के बिल को लेकर विवाद शुरू हुआ था। जिसमें विधायक अतुल प्रधान पर एफआईआर दर्ज करा दी गई। इसके बाद अतुल प्रधान ने सभी निजी अस्पतालों में व्याप्त अव्यवस्था के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसे आंदोलन का रूप देते हुए उन्होंने चार दिसंबर से कलक्ट्रेट पर आमरण अनशन शुरू कर दिया, जो एक सप्ताह चला और आठवें दिन नाटकीय अंदाज में समाप्त हो गया।

इस पूरे आंदोलन के दौरान चिकित्सक लॉबी एक-दो बार झुकती तब झुकती नजर आई, जब आईएमए ने आईएमए हाल में नि:शुल्क ओपीडी शुरू की और दवा लिखने को लेकर भी बदलाव करने की बात कही।

भाजपा के रवैये पर उठ रहे सवाल

यह पूरा आंदोलन जनहित में था। लेकिन भाजपा ने यहां सिर्फ सपा विधायक को देखा और चिकित्सकों का खुलकर समर्थन कर दिया। खुद भाजपा के कार्यकर्ता भी इससे हैरत में है। कई भाजपाइयों का मानना है कि नेताओं को इस मामले में चुप्पी साधनी चाहिए थी, किसी का भी समर्थन नहीं करना चाहिए था। अब यह मामला चुनाव में जरूर उठेगा।

सपा को भी होगा गुटबाजी का नुकसान

सपा विधायक अतुल प्रधान पार्टी संगठन से अलग चलते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। लेकिन यह मुद्दा जनहित का था। ऐसे में पार्टी के शीर्ष नेताओं को स्थानीय विधायकों और नेताओं को उनका सहयोग करने का निर्देश देना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पूरे आंदोलन में अतुल को रालोद और आप जैसी राजनीतिक दलों के साथ कुछ सामाजिक संगठनों का समर्थन तो मिला, लेकिन वह अपनी पार्टी में ही अलग थलग नजर आए। उनके कार्यकर्ता और समर्थक ही आंदोलन में जोर लगाते रहे। यही कारण रहा कि हर दिन चिकित्सक हावी होते नजर आए।

निजी अस्पतालों की मनमानी पर कैसे होगा नियंत्रण

विधायक अतुल प्रधान का आंदोलन तो लगभग समाप्त हो गया। आंदोलन समाप्त होने के बाद आईएमए ने जिस तरह से बयान दिया है, उससे साफ हो चला है कि निजी अस्पतालों और चिकित्सकों की मनमानी रुकने वाली नहीं है। मतलब साफ है कि आम जनता का शोषण और उत्पीड़न इसी तरह चलता रहेगा। अब सवाल ये उठ रहा है कि आखिर सरकार अपने स्तर से कुछ करेगी या जनता इसी तरह लूटती रहेगी। क्योंकि सरकारी चिकित्सा व्यवस्था के लिए सरकार कितना भी खर्च कर ले, लेकिन वहां की व्यवस्थाएं कभी ठीक नहीं होंगी।

अब न्यूटिमा पर होने वाली कार्रवाई पर टिकी है नजर

न्यूटिमा अस्पताल प्रकरण में इस समय गेंद पूरी तरह मेडा के पाले में है। न्यूटिमा अस्पताल के अनियमित निर्माण पर यदि मेडा कार्रवाई करता है, तो निश्चित रूप से विधायक अतुल प्रधान अपने मकसद में किसी हद तक कामयाब जरूर हो जाएंगे। लेकिन यदि यह फाइल फिर से दब गई, तो चिकित्सकों की पूरी तरह जीत मानी जाएगी।

बहुत मजबूत है चिकित्सकों की लॉबी

कोरोना काल में बागपत रोड स्थित एक अस्पताल में हुई कई मौतों के मामले पर जांच बैठी थी। तमाम आरोप इस अस्पताल पर लगे थे। लेकिन जांच रिपोर्ट आज तक भी सार्वजनिक नहीं हुई। अस्पताल संचालक आज भी धड़ल्ले से अपने उसी व्यवहार के साथ काम कर रहे हैं।

कई अस्पतालों के खिलाफ मामले हैं कोर्ट में लंबित

शहर के न्यूटिमा सहित कई अस्पतालों का मामला हाईकोर्ट में गया था। जिसमें अस्पताल संचालकों ने शपथ देकर अपने यहां पार्किंग की व्यवस्था सुधारने की बात कही थी। लेकिन एक साल बाद भी इनमें पार्किंग की व्यवस्था बहाल नहीं हो पाई। मेडा के पाले में इनकी कार्रवाई भी अटकी हुई है। अब इन सबके खिलाफ भी नये सिरे कोर्ट में याचिका दायर करने की बात विधायक अतुल प्रधान खेमा कर रहा है।

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