– गुर्जर महापंचायत के बाद विपक्ष के दांव में फंसे दक्षिण विधायक और राज्यमंत्री सोमेंद्र तोमर।
अनुज मित्तल, मेरठ। तेजगढ़ी चौराहा पर सत्यम रस्तोगी से नाक रगड़वाने का मामला अब वैश्य बनाम गुर्जर बनाने की तैयारी चल रही है। रविवार को काजीपुर में हुई महापंचायत के बाद गुर्जर समाज ने जो ऐलान किया है, उससे साफ है कि अब यह आग ठंडी नहीं हुई, बल्कि भविष्य में और ज्यादा भड़केगी। लेकिन इसका असर किस पर जाएगा? इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषक मंथन में जुट गए हैं।
गुर्जर बिरादरी की मेरठ जनपद की सात विधानसभाओं में से चार पर निर्णायक भूमिका है। इनमें हस्तिनापुर विधानसभा में तो गुर्जर ही हर बार हार और जीत तय करते हैं। लेकिन यह कहना भी गलत नहीं होगा कि गुर्जर बिरादरी भाजपा के साथ है। वर्ष 2022 के ही विधानसभा चुनावों के परिणामों को अगर देखें तो गुर्जर बिरादरी ने पहले अपनी जाति के प्रत्याशी को वोट दिया है, उसके बाद उसने पार्टी की तरफ ध्यान दिया है।
सरधना विधानसभा में गुर्जर वोट जहां सपा के अतुल प्रधान के साथ एकजुट रहा, तो मेरठ दक्षिण में भाजपा के सोमेंद्र तोमर के साथ खड़ा नजर आया। किठौर में कोई दमदार गुर्जर प्रत्याशी न होने से गुर्जर वोट बंटता हुआ नजर आया। जबकि हस्तिनापुर में पिछली दो बार से गुर्जर मतदाता भाजपा के साथ नजर आ रहा है, जबकि इससे पहले गुर्जर वोट सपा के साथ खड़ा नजर आता था। हालांकि यदि सपा की तरफ से दो बार के विधायक रहे प्रभुदयाल वाल्मीकि को प्रत्याशी बनाया जाता तो निश्चित रुप से गुर्जर वोट बंटता हुआ नजर आता। क्योंकि बसपा से सपा में गए पूर्व विधायक योगेश वर्मा से गुर्जरों की अदावत 2007 में हो गई थी।
अब बात करते हैं मेरठ दक्षिण विधानसभा में चल रहे चर्चित सत्यम रस्तोगी प्रकरण की। इस मामले में पुलिस प्रशासन पहले दो दिन पूरी तरह राज्यमंत्री के दबाव में काम कर रहा था। यही कारण रहा कि विकुल चपराना को मामूली धाराओं में गिरफ्तार किया गया और तुरंत ही जमानत पर रिहा भी करा दिया गया।
लेकिन जब मामला बढ़ा और वैश्य बिरादरी के साथ व्यापारी संगठनों में आक्रोश फैला तो भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने इस पर संज्ञान लिया। जिसके बाद भाजपा के स्थानीय बड़े नेता सक्रिय हुए और पुलिस प्रशासन बैकफुट पर आ गया। इसके बाद न केवल इस मामले में धाराएं बढ़ाई गई, बल्कि विकुल चपराना के तीन सहयोगियों और बाद में विकुल चपराना को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
यहीं से गुर्जर समाज में आक्रोश फैलना शुरू हो गया। अब इस आक्रोश को लेकर दो चर्चाएं सामने आ रही है। पहली चर्चा है कि विपक्ष इस मुद्दे को भुनाकर भाजपा को झटका देना चाहता है। क्योंकि विपक्ष को पता है कि उसे वैश्य वोट नहीं मिलेगा, लेकिन वह गुर्जरों का वोट तोड़ सकता है। ऐसे में विपक्षी दलों से गुर्जर समाज के नेताओं ने इसे गुर्जर बनाम वैश्य मुद्दा बनाकर भाजपा के माथे पर ठीकरा फोड़ दिया।
वहीं चर्चा ये भी है कि इस मामले के बाद अपनी ही पार्टी के नेताओं के निशाने पर आने के बाद राज्यमंत्री डा. सोमेंद्र तोमर पूरी तरह बैकफुट पर आ गए हैं। ऐसे में उनके ऊपर इस मामले को लेकर दबाव भी बना हुआ है। क्योंकि विकुल चपराना उनका खास समर्थक है। जिसके चलते उन्होंने ही अपने समर्थकों के माध्यम से भाजपा नेताओं को बैकफुट पर लाने और प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए गुर्जर पंचायत कराई है।
लेकिन सवाल अब यह उठता है कि इस गुर्जर-वैश्य विवाद का आखिरकार सबसे बड़ा नुकसान किसे है। तो राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इस विवाद में सबसे बड़ा नुकसान वर्तमान विधायक और राज्यमंत्री सोमेंद्र तोमर को ही है। क्योंकि आने वाले 2027 के चुनाव में यदि उन्हें टिकट मिलता है तो निश्चित रुप से सत्यम रस्तोगी ही नहीं बल्कि दूसरे अन्य मुद्दे भी इस बार चुनाव में उनके खिलाफ पुरजोर तरीके से उठाएं जाएंगे। यहां यह भी साफ है कि मेरठ दक्षिण विधानसभा में अकेले गुर्जर के दम पर जीत हासिल करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। क्योंकि इस सीट पर मुस्लिमों के बाद सबसे बड़ा वोट बैंक वैश्य बिरादरी का है।
अब भाजपा के सामने भी स्थिति थोड़ा अलग होगी। यदि वह सोमेंद्र तोमर का टिकट काटती है तो फिर किस बिरादरी के प्रत्याशी को यहां से चुनाव लड़ाएगी? क्योंकि भाजपा लगातार तीन बार से यहां जीत हासिल कर रही है, जिसमें तीनों ही बार गुर्जर प्रत्याशी जीते हैं। तो ऐसे में साफ है कि भाजपा को इस सीट पर गुर्जर वोटों के लिए कोई नया तेज तर्रार गुर्जर चेहरा इस सीट पर लाना होगा, ताकि विपक्ष की चाल की काट भी हो जाए और सीट भी बचा ली जाए।