- आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को निशुल्क शिक्षा का है नियम।
- आरटीई का मजाक बना रहे निजी स्कूल, कोई सुनवाई नहीं।
प्रेमशंकर, मेरठ। राज्य सरकार ने पूरे प्रदेश के निजी स्कूलों को अपने यहां पहली कक्षा में 25 प्रतिशत दाखिले शिक्षा का अधिकार (आरटीई) के तहत देने का फरमान जारी कर रखा है। सरकार की मंशा ऐसे परिवारों के बच्चों को अच्छे स्कूलों में शिक्षा दिलाना है जो आर्थिक रूप से कमजोर है। ऐसे में हर साल बेसिक शिक्षा विभाग लाटरी के द्वारा जिले भर से बच्चों की सूची तैयार करता है जिन्हें आटीई के तहत निजी स्कूलों की कक्षा एक में दाखिले दिये जाने है। लेकिन निजी स्कूल बीएसए द्वारा जारी इस सूची के अंतर्गत आने वाले बच्चों को अपने यहां दाखिले देने में आनाकानी कर रहें है।
– गुरूतेग बहादुर पब्लिक स्कूल के खिलाफ जारी हुआ नोटिस
शिक्षा का अधिकार सरकार द्वारा चलाई जाने वाली एक महत्वकांशी योजना है। इस योजना में पूरे जिले से सैंकड़ो बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने के लिए चुना जाता है। ऐसे ही चुने गए एक बच्चे का लाटरी में नाम आया जिसके बाद बच्चे का दाखिला कैंट स्थित गुरूतेग बहादुर पब्लिक स्कूल में करने के लिए बीएसए द्वारा पत्र जारी कर दिया गया। लेकिन स्कूल पिछले सात माह से बच्चे का दाखिला नहीं कर रहा है। इसी को लेकर बेसिक शिक्षा विभाग ने स्कूल के खिलाफ नोटिस जारी किया है।
– बच्चे को परिजनों को गेट से ही लौटाया
लालकुर्ती के रहने वाले मो. आमिद का आरोप है अप्रैल माह में बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा आरटीई के तहत चुने गए बच्चों में उनके बच्चे का भी नाम है। जबकि विभाग द्वारा स्कूल के लिए पत्र भी जारी कर दिया गया। पत्र लेकर जब वह गुरूतेग बहादुर पब्लिक स्कूल पहुंचे तो उन्हें गेट से ही बाहर कर दिया गया। ऐसे में परिजन अपने को ठगा सा महसूस करते हुए वापस लौट आए।
– पहले भी इस तरह के मामले आए है सामने
शिक्षा का अधिकार नियम के तहत कई स्कूल बच्चों को अपने यहां दाखिला देने से कतराते है। ऐसे कई मामले पहले भी सामने आ चुके है। लेकिन अपने बच्चे के भविष्य को लेकर कोई सामने आकर कुछ बोलने को तैयार नहीं होता।
– जब दाखिले नहीं तो शिक्षा का अधिकार कैसा
सवाल यह कि जब निजी स्कूल आरटीई के तहत अपने यहां कक्षा एक में दाखिला देने से बचते है तो फिर इस नियम का फायदा ही क्या। क्यों बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा जारी सूची में शामिल बच्चों का दाखिला स्कूल नहीं करते है। यदि ऐसा है तो फिर बीएसए या प्रशासन ऐसे स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करते।
मामले को लेकर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आशा चौधरी से बात करने की कोशिश की गई तो उनका फोन रिसीव नहीं हुआ।