मुस्लिम इलाकों में याकूब की बैठकों ने लगाई सेंध, दलित वोटरों को बटोरने लगी बसपा

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ज्ञान प्रकाश, संपादक मेरठ। मेरठ हापुड़ लोकसभा सीट इस वक्त हॉट सीट बन गई है। शुरआती दौर में माना जा रहा था कि इस बार मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच होगा लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने जिस तरह से एंट्री मारी है उससे चुनाव त्रिकोणीय हो गया है। अब सवाल यह उठ रहा है कि बसपा किस हद तक चुनाव को प्रभावित कर सकती है।

इंडिया महागठबंधन से समाजवादी पार्टी की तरफ से सुनीता वर्मा चुनाव मैदान में उतरी है। इनके पति योगेश वर्मा बसपा के टिकट पर विधायक और इनकी पत्नी मेयर रह चुकी है। समाजवादी पार्टी की तरफ से योगेश वर्मा एक बार चुनाव लड़े और हार गए थे। इस बार मुस्लिमों और दलित वोट बैंक के दम पर चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं भाजपा की तरफ से फिल्म अभिनेता और रामायण धारावाहिक में राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल मैदान में है। शुरुआती दिनों में अरुण गोविल पर बाहरी होने का आरोप लगाया गया लेकिन जैसे जैसे चुनाव आगे बढ़ा गोविल को पार्टी ने उनको योजनाबद्ध तरीके से लड़वाना शुरु कर दिया।

बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी देवव्रत त्यागी को लेकर विपक्षी दल हलके में आकलन कर रहे थे लेकिन वक्त बदला तो बसपा सुप्रीमो मायावती के कोर वोट बैंक ने पार्टी के साथ जुड़ने का ऐलान कर दिया। पहले माना जा रहा था कि योगेश वर्मा दलित वोट बैंक में तेजी से सेंध लगाएंगे लेकिन अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं दलित वोट का बड़ा प्रतिशत बसपा के खाते में जा सकता है। वहीं बसपा खेमे में पूर्व विधायक याकूब कुरैशी के आने से मुस्लिम समीकरण बदलने की पूरी संभावना बन गई है। मुस्लिम समाज में याकूब कुरैशी की अपनी अलग इमेज है। जिस तरह से मुस्लिम इलाकों में याकूब कुरैशी की बैठकें हो रही है उसने मेरठ सीट को त्रिकोणीय बना दिया है। बहनजी को कोर वोट बैंक किसी और पार्टी में डायवर्ट हो इसकी उम्मीद कम लग रही है।

वहीं बसपा अगर त्यागी वोटरों के एक बड़े प्रतिशत को लुभावने में कामयाब हो गई तो सपा और भाजपा की राहें जरुर मुश्किल कर देगी। मतदान होने में चार दिन बाकी है और 23 अप्रैल को मायावती की अलीपुर में होने वाली रैली साबित कर देगी कि बसपा किस स्तर का चुनाव लड़ने जा रही है।

हालांकि दो दिन पहले हापुड़ की रैली ने जरुर विपक्षी दलों की नींद उड़ा दी है। कौन पार्टी विजयी पताका लहराएगी वो तो चार जून को पता लगेगा लेकिन 23 अप्रैल को अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी, योगी आदित्यनाथ और मायावती के मेरठ दौरे ने साबित कर दिया कि क्रांतिधरा की सीट किसी के लिये आसान होने वाली नहीं है।

 

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