पश्चिम में सभी सीटों पर होगा त्रिकोणीय मुकाबला

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– बसपा के जातीय कार्ड खेलने और मुस्लिम प्रत्याशी कम उतारे जाने से रोचक हुआ चुनाव


अनुज मित्तल (समाचार संपादक)

मेरठ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद से लेकर सहारनपुर-बिजनौर तक लोकसभा चुनाव में मुकाबला दिलचस्प होता नजर आ रहा है। अहम बात ये है कि इस बार सपा और बसपा दोनों ने ही मुस्लिम प्रत्याशियों पर कम मेहरबानी की है। जिसके चलते त्रिकोणीय नजर आ रहे मुकाबले में काफी उलटफेर की संभावनाएं नजर आ रही हैं।

 

 

लोकसभा के पिछले दो चुनावों में मतदाताओं ने जात-बिरादरी से ऊपर उठकर धार्मिक भावनाओं में बहकर मतदान किया था। लेकिन इस बार जिस तरह सपा और बसपा ने जातीय कार्ड खेला है, उससे साफ है कि ये दोनों पार्टियां पिछले चुनावों से सबक लेते हुए इस बार चुनाव को सांप्रदायिक धु्रवीकरण से अलग हटाते हुए जातीय आधार पर ले जाने की तैयारी में है। अब यदि ऐसा होता है, निश्चित रूप से इस बार चुनाव परिणाम चौंकाने वाले आएंगे। यह दावा इस बात से सिद्ध होता है कि पश्चिम की आठ सीटों में से मात्र दो सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी बनाए हैं। इनमें बसपा, सपा और कांग्रेस ने एक-एक प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। जबकि पूर्व के चुनाव में ये दोनों पार्टियां मुस्लिम प्रत्याशियों पर ज्यादा भरोसा जताती थी।

सहारनपुर सीट से भाजपा ने एक बार फिर से राघव लखनपाल को प्रत्याशी बनाया है। जबकि कांग्रेस से इमरान मसूद और बसपा से माजिद अली प्रत्याशी हैं। यहां पर दो मुस्लिम प्रत्याशी होने से भाजपा की राह आंकड़ों में तो मजबूत नजर आ रही है, लेकिन यदि मुस्लिम बसपा प्रत्याशी के पक्ष में चले गए तो भाजपा की राह मुश्किल हो सकती है।

कैराना लोकसभा सीट पर मुकाबला इस बार बहुत ज्यादा रोचक हो गया है। यहां बसपा ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग के चलते ठाकुर श्रीपाल राणा को चुनाव मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा ने जहां वर्तमान सांसद प्रदीप चौधरी पर फिर से भरोसा जताया है, तो सपा ने कद्दावर नेता नाहिद हसन की बहन इकरा हसन को चुनाव मैदान में उतारा है।

मुजफ्फरनगर सीट पर भाजपा का पिछले दो बार से लगातार कब्जा है। तीसरी बार भी भाजपा ने केंद्रीय मंत्री डा. संजीव बालियान पर भरोसा जताया है। जबकि आश्चर्यजनक रूप से इस सीट पर सपा और बसपा ने इस बार मुस्लिम प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारने के बजाए अलग ही चाल चली है। सपा ने हरेंद्र मलिक तो बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को चुनाव मैदान में उतारते हुए सीधे-सीधे भाजपा के सामने बड़ी चुनौती पेश कर दी है।

बिजनौर सीट पर भी मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतरते रहे हैं, लेकिन इस बार इस सीट पर भी कोई मुस्लिम प्रत्याशी नहीं है। भाजपा ने यह सीट गठबंधन में रालोद को दी है, जिससे मीरापुर विधायक चंदन चौहान जो कि गुर्जर हैं प्रत्याशी हैं। जबकि बसपा ने यहां से जाट कार्ड खेला है, तो सपा ने अति पिछड़ा कार्ड खेलते हुए दीपक सैनी को मैदान में उतारते हुए भाजपा गठबंधन से रालोद प्रत्याशी के सामने चुनौती खड़ी कर दी है।

नगीना सुरक्षित सीट हैं। लेकिन इस सीट पर आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर का नामांकन होने के बाद सबकी नजर इस सीट पर टिक गई है। यहां पर भाजपा ने इस बार ओमकुमार, बसपा ने सुरेंद्र मैनवाल और समाजवादी पार्टी ने मनोज कुमार को प्रत्याशी बनाया है। यहां पर दलित वोटों का बंटवारा किसके पक्ष में होगा, यह बड़ा सवाल है। लेकिन दलितों से अलग मुस्लिम और अन्य वोटों के बंटवारा सबसे ज्यादा अहम होगा।

मेरठ सीट पर भाजपा का लगातार तीन बार से कब्जा है और चौथी जीत की तलाश में भाजपा ने अप्रत्याशित रूप से प्रत्याशी बदलते हुए स्थानीय के ऊपर अभिनेता अरुण गोविल को तरजीह दी है। जबकि बसपा ने इस बार भाजपा को झटका देने की नीति से देववृत्त त्यागी को मैदान में उतारा है, तो सपा ने अंतिम समय में दलित कार्ड खेलते हुए पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी और पूर्व महापौर सुनीता वर्मा को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट पर यह पहला चुनाव है, जिसमें किसी भी प्रमुख दल से कोई मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में नहीं है।

बागपत सीट गठबंधन में रालोद के खाते में है और रालोद ने डा. राजकुमार सांगवान को प्रत्याशी बनाया है। जबकि सपा ने यहां गुर्जर तो सपा ने ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए सभी को चौंका दिया है। ऐसे में इस सीट पर भी मुकाबला त्रिकोणीय बन गया है। इसमें नजर अब मुस्लिम वोटों के धु्रवीकरण पर होगी।

गाजियाबाद सीट पर भाजपा पिछले कई चुनावों से ठाकुर बिरादरी से प्रत्याशी बनाती आयी है। लेकिन इस बार यहां से वैश्य को उतारा गया है। जिसे भुनाने के लिए बसपा ने यहां पर ठाकुर बिरादरी से नंदकिशोर पुंडीर को प्रत्याशी बनाया तो गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के पाले में जाने पर कांग्रेस ने डोली शर्मा के रूप में ब्राह्मण कार्ड खेला है।

 

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