संविधान बदलने पर रार ने सपा-कांग्रेस की लगाई नैया पार

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  • अब यूपी में फिर से मजबूती की तरफ बढ़ेगी कांग्रेस।

अनुज मित्तल, मेरठ। लोकसभा का 18 वां चुनाव देश के साथ ही यूपी में बदलाव की कहानी लिखता नजर आ रहा है। यूपी में पिछले चुनाव तक लगभग खत्म होने की कगार पर खड़ी कांग्रेस को इस चुनाव में न केवल संजीवनी मिली है, बल्कि आने वाले समय में वह भाजपा के सामने मजबूती से खड़ी होती नजर आ रही है।

इस बार चुनाव में निवर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 400 पार का नारा देकर खुद ही फंस गए। उनके इस नारे को कांग्रेस ने तत्काल पकड़ते हुए संविधान बदलने की बात कह डाली। इसका इतना असर हुआ कि जो दलित बसपा का मूल वोट बैंक माना जाता था, उसका माइंड तुरंत बदल गया। इसमें दो बात दलितों के मन में मुख्य रूप से आई। पहली बात यह कि संविधान बाबा साहेब डा. भीमराव आंबेडकर ने लिखा था। यदि उस संविधान को बदला जाता है, तो यह दलितों की आस्था पर सीधे-सीधे चोट करता है। इसके साथ ही संविधान बदलने के पीछे कांग्रेस ने एक बयान और दिया कि संविधान बदलकर भाजपा आरक्षण भी बदलना चाहती है। इस बयान ने दलितों को और ज्यादा भाजपा के विपरीत कर दिया।

ऐसे में बसपा की कमजोर स्थिति को देख दलितों ने अपना रूख बदलते हुए सपा-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में मतदान कर दिया। इसका सीधा उदाहरण सहारनपुर से लिया जा सकता है, जहां पर इमरान मसूद के सामने बसपा से माजिद अली खड़े थे। माजिद अली को मुस्लिम और दलित वोट दोनों मिले, लेकिन ये इतनी संख्या में नहीं मिले कि जीत की इबारत लिख पाते।

इसके विपरीत इमरान मसूद जो शुरू में मुस्लिम मतों के बूते खड़े नजर आ रहे थे और उसमें भी बंटवारे की उम्मीद थी, वह पचास हजार वोटों से भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देने में कामयाब हुए। इसका मतलब साफ है कि यहां उन्हें दलित और मुस्लिम वोट खासी संख्या में मिला। यह यूपी में अधिकांश सीटों पर नजर आया।

अब चुनाव के दूसरे बदले मिजाज पर गौर करें तो मुस्लिम का मिजाज भी धीरे-धीरे बदल रहा है। अभी तक सपा का वोट बैंक माने जाने वाला मुस्लिम कहीं न कहीं कांग्रेस को पहली पसंद बनाता नजर आ रहा है। इस लोकसभा चुनाव में यह साफ नजर आया। चुनावी सर्वे के दौरान मुस्लिम इलाकों में सपा के मुकाबले कांग्रेस को पहली पसंद बताया गया।

ऐसे में साफ है कि भाजपा के लिए यह लोकसभा चुनाव यूपी में भविष्य की राजनीति के लिए बहुत कड़वा अनुभव देकर जाने वाला लग रहा है। यह कहना हालांक अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन जिस तरह के परिणाम यूपी में लोकसभा चुनाव में आए हैं। उन्हें देखकर साफ कहा जा सकता है कि सपा-कांग्रेस की यह जोड़ी 2027 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए बड़ी खतरे की घंटी बनेगी।

लोकसभा चुनाव की मतगणना में विधानसभाओं के रूझान भी यह साफ कर रहे हैं कि आने वाले विधानसभा चुनाव में क्या स्थिति होने वाली है। भाजपा के धुरंधर प्रत्याशी भी जहां जीते हैं, वहां पर भी उन्हें दो से तीन विधानसभाओं में हार का सामना करना पड़ा है। लखनऊ में राजनाथ सिंह ने जीत तो हासिल की, लेकिन दो विधानसभा से वह हारे हैं। मेरठ में तो चार विधानसभाओं में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।

बाहरी नेता भी नहीं दे पाए लाभ

चुनाव के दौरान सपा और कांग्रेस से तमाम नेता अपनी पार्टियों से बगावत कर भाजपा में शामिल हुए। इनके शामिल होने से माना जा रहा था कि भाजपा को बड़ा लाभ होगा। लेकिन कोई भी नेता भाजपा को लाभ नहीं दे पाया। जिस-जिस सीट पर इन नेताओं को प्रभावशाली माना जा रहा था, वही सीट भाजपा हारी है।

कार्यकर्ताओं को देना होगा सम्मान

भाजपा में मोदी युग के बाद से कार्यकर्ताओं का सम्मान कम होना शुरू हुआ है। बाहर से आने वाले नेता मलाईदार पद पा रहे हैं और पुराने कार्यकर्ता जहां के तहां जमे हुए है। उल्टे उनकी किसी भी स्तर पर कोई सुनवाई तक नहीं हो रही है। यह भी बड़ा कारण रहा कि कार्यकर्ताओं में उदासीनता रही और भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ा।

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