– यूपी के भीतर महागठबंधन का हुआ बुरा हश्र, चुनाव से पहले ही सबकी राहें हो गई जुदा
अनुज मित्तल (समाचार संपादक)
मेरठ। लोकसभा चुनाव के लिए बना महागठबंधन अब लगभग पूरी तरह टूट गया है। हर राज्य में कांग्रेस को झटका ही मिल रहा है। यूपी में पहले रालोद ने किनारा किया तो अब अंतिम आस बची समाजवादी पार्टी ने भी कांग्रेस से किनारा कर लिया है। मतलब साफ है कि अब भाजपा के सामने कांग्रेस, सपा और बसपा अकेले दम पर चुनाव लड़ेंगी।
भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (आईएनडीआईए) 26 पार्टियों को लेकर बनाया गया था। जिसका उद्देश्य इस बार लोकसभा चुनाव में एकजुट होकर प्रत्येक सीट पर भाजपा या उसके सहयोगी पार्टी के प्रत्याशी के सामने मात्र एक ही प्रत्याशी उतारना था। जब यह गठबंधन बना तो लगा था कि इस बार भाजपा के सामने लोकसभा चुनाव फतह करना बड़ी चुनौती होगा। लेकिन एक तरफ जहां भाजपा अपनी नीतियों और निर्णयों से विपक्षी गठबंधन पर हावी होती चली गई, वहीं गठबंधन में शामिल पार्टियों के मुखिया भी अपने वर्चस्व को लेकर गठबंधन से हटते चले गए।
यूपी के भीतर सपा, रालोद और कांग्रेस का गठबंधन बना था। इसमें कमी सिर्फ बसपा की नजर आ रही थी। लेकिन सपा की हठधर्मिता और बसपा को लेकर की गई लगातार बयानबाजी से बसपा सुप्रीमो मायावती ने गठबंधन में शामिल होने से इंकार करते हुए अकेले चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया। सूत्रों की मानें तो इसके पीछे सपा का मकसद यूपी में ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ना था। क्योंकि यदि बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जाता, तो निश्चित रूप से सपा को लगभग अपने बराबर सीट बसपा को देनी पड़ती।
सपा ने गठबंधन में कोई सह्दयता नहीं दिखाई। रालोद को मात्र सात सीटें देने का न केवल एक तरफा फैसला सुनाया, बल्कि उसमें भी तीन सीटों पर प्रत्याशी अपने और चुनाव चिन्ह् रालोद का देने का प्रस्ताव रख दिया। यहां से रालोद से बात बिगड़ी तो भाजपा के लिए रास्ता आसान हो गया। रालोद मुखिया चौ. जयंत सिंह ने भाजपा गठबंधन का दामन थाम लिया।
अब कांग्रेस को लेकर सबकी नजरें लगी थी। क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ों न्याय यात्रा पर निकले हुए हैं। उनकी यात्रा में शामिल होने को लेकर भी तमाम शर्तें और नखरे सपा नेताओं की तरफ से इन दिनों लगातार दिखाए जाते रहे। राहुल गांधी यात्रा में व्यस्त रहे और सपा अपने प्रत्याशी घोषित करने में लगी रही।
यहां बिगड़ी बात
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने पहले कांग्रेस को 11 सीटें देने का एकतरफा ऐलान कर दिया था। लेकिन कांग्रेस इससे सहमत नहीं थी। कांग्रेस ने समझौता करते हुए 20 सीटें मांगी, लेकिन सपा मात्र 17 सीटों पर ही अड़ गई और उसमें भी कांग्रेस की मनचाही सीटों को देने से साफ इंकार कर दिया। इसके बाद कांग्रेस और सपा के बीच समझौता टूट गया।
भाजपा यूपी में दोहरा सकती है 2014 का परिणाम
लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा ने यूपी में 71 सीट जीती थी, जबकि उसके सहयोगी दल को दो सीट मिली थी। जबकि 2019 में भाजपा को 62 और उसके सहयोगी दल को दो सीट मिली थी। मतलब साफ है कि भाजपा को नौ सीटों का नुकसान हुआ था। यह तब था जब दोनों ही चुनावों में सपा गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव मैदान में थी। लेकिन इस बार सब अलग हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में असर रखने वाली रालोद जैसी पार्टी भाजपा के साथ है। ऐसे में साफ है कि भाजपा इस बार जो समीकरण बनकर आए हैं, उससे 2014 का इतिहास दोहरा सकती है।