कांग्रेस दे रही कुर्बानी, सहयोगी दल कर रहे मनमानी

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– इंडिया गठबंधन बचाने का हरसंभव प्रयास कर रही कांग्रेस
– आम आदमी पार्टी और सपा ने सीटों के बंटवारे दिखाई पूरी मनमानी
– कई गठबंधन छोड़कर पहुंचे भाजपा के पाले में
– किसी ने अकेले चुनाव लड़ने का कर दिया ऐलान


अनुज मित्तल (समाचार संपादक)

मेरठ। भाजपा की केंद्र में हैट्रिक को रोकने के लिए कांग्रेस हर संभव प्रयास कर रही है। इन्हीं प्रयासों के चलते गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद वह हर जगह कुर्बानी दे रही है, लेकिन सहयोगी दल मनमानी से बाज नहीं आ रहे हैं।

इंडिया गठबंधन लोकसभा में भाजपा की हैट्रिक को रोकने के लिए बना था। जिस समय यह गठबंधन तैयार हुआ, तो लग रहा था कि इस बार भाजपा की राह बहुत मुश्किल होगी। लेकिन बीच सफर में ही सहयोगी दल मनमानी पर उतर आए। ममता बनर्जी ने जहां अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया, तो गठबंधन के सूत्रधारों में से एक नीतिश कुमार भाजपा के पाले में जा खड़े हुए। यूपी में रालोद ने गठबंधन का साथ छोड़ दिया और वह भी भाजपा के पाले में पहुंच गया।

यूपी में बहुजन समाज पार्टी पहले ही अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है। जिस कारण यूपी में प्रमुख दलों में सपा और कांग्रेस ही रह गए। यहां भी सपा ने अपनी जमकर मानमानी दिखाई और मात्र 17 सीट कांग्रेस को दी। लेकिन कांग्रेस ने गठबंधन बचाने की पहल करते हुए इस पर समझौता कर लिया।

गठबंधन में शामिल आम आदमी पार्टी ने भी जमकर मनमाना रवैया दिखाया। पंजाब में जहां कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दी, वहीं सिर्फ चंडीगढ ही कांग्रेस को दिया। दिल्ली में भी सात में से मात्र तीन सीट कांग्रेस को दी। इसके साथ ही गोवा की सीट भी कांग्रेस के लिए छोड़ी। लेकिन गुजरात में कांग्रेस से दो सीटें हड़प ली।

चुनाव प्रचार पर पड़ेगा असर

कांग्रेस के सहयोगी दल जिस तरह मनमाना रवैया अपनाकर सीटों का बंटवारा कर रहे हैं। उससे चुनाव प्रचार पर असर आएगा। जहां भी कांग्रेस को सीटें कम मिल रही हैं, वहां के कार्यकर्ताओं में उतना जोश चुनाव के दौरान नहीं होगा, जितना होना चाहिए। ऐसे में सभी का मकसद अपने खाते में आई सीटों को किसी भी तरह जीतने तक सीमित होकर रह जाएगा। जिससे गठबंधन होने के बाद भी उसका असर दिखना मुश्किल हो सकता है।

संयोजक न बनाना भी बड़ी चूक

इंडिया गठबंधन बने कई माह हो चुके हैं। लेकिन अभी तक इसका संयोजक नहीं बनाया गया है। इससे भी कई दलों में नाराजगी है। सूत्रों की मानें तो नीतिश कुमार स्वयं गठबंधन का संयोजक बनना चाहते थे। लेकिन जब ऐसा होता नजर नहीं आया तो वह भी एनडीए में शामिल हो गए।

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