सांसद अरुण गोविल की बेरूखी से मतदाता खफा

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  • भाजपा प्रत्याशी की डूबती नैय्या को बचाया था कैंट ने,
  • जीत के बाद जनता का आभार भी नहीं जताया प्रत्याशी ने,

ज्ञान प्रकाश, संपादक 

मेरठ। इस बार लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के लिए मतदाता नहीं बल्कि पार्टी के नीतियां बनाने वाले नेता पूरी तरह से जिम्मेदार है। टिकट के बंटवारे में खुलकर स्थानीय संगठन की अनदेखी की गई और मनमानी करके जबरन मतदाताओं पर प्रत्याशी थोपे गए। इसका दुष्परिणाम ये हुआ कि भाजपा को कहीं नुकसान उठाना पड़ा तो कहीं जीतने के बाद प्रत्याशी की बेरूखी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा ही कुछ मेरठ में भाजपा प्रत्याशी अरुण गोविल को लेकर हो रहा है। कैंट के 161000 से ज्यादा मतदाताओं के मन में इस बात का गुबार है कि अरुण गोविल जीतने के बाद एक बार भी आभार व्यक्त करने कैंट क्षेत्र में नहीं आए। ये बेरूखी अकेले कैंट की ही नहीं पूरे मेरठ की है। इस वक्त भाजपा सांसद कहां है इसका पता पार्टी के नेताओं तक को नहीं है।

जिस वक्त मेरठ सीट से अरुण गोविल के नाम का ऐलान हुआ उस वक्त हर कोई हैरत में था कि बाहरी प्रत्याशी को मैदान में उतार कर पार्टी ने सही नहीं किया। पार्टी के अंदर काफी हद तक विरोध हुआ और लोग बेमन से प्रचार में जुटे। रामायण में राम का चरित्र निभाने वाले अरुण गोविल लोगों के दिलों में जगह नहीं बना पाए क्योंकि उन्होंने लोगों से शुरू से दूरी बना कर रखी हुई थी। यही कारण था कि लोग फोटो खिंचवाने और एक झलक देखने के लिए ही ज्यादा बेताब दिखे था। अरुण गोविल को 546469 वोट मिले थे और उन्होंने इंडिया गठबंधन प्रत्याशी सुनीता वर्मा को 10 हजार से अधिक वोट से हराया था। अरुण गोविल किठौर, हापुड़, मेरठ दक्षिण और मेरठ शहर से हारते हुए आ रहे थे। कैंट की जनता ने 161892 वोट देकर उनकी डूबती हुई नैय्या को बचा लिया था।

अरुण गोविल को हापुड़ में 93650, किठौर में 93578, मेरठ दक्षिण 119881 और मेरठ शहर से 75384 वोट मिले थे। असंभव दिखने वाली जीत को अपने नाम कराने के बाद भी अरुण गोविल सदर के किसी बाजार में आभार व्यक्त करने नहीं आए। पूरे कैंट क्षेत्र में इसको लेकर बेहद निराशा देखी जा रही है। हर किसी की जुबान पर ये सुनाई दे रहा कि भाजपा प्रत्याशी कहीं दिख नहीं रहे है। दरअसल स्थानीय सांसद होने से लोग अपनी समस्याओं को लेकर उससे मिलते हैं और अपना दुख दर्द सुनाकर तसल्ली कर लेते हैं। पूर्व सांसद राजेन्द्र अग्रवाल तीन बार सांसद रहे और स्थानीय होने के कारण उनके आवास पर सुबह से दरबार लगता था। लोगों का कहना है कि काम हो या न हो लेकिन एक संतोष तो रहता है कि जरुरत पड़ने पर सांसद के पास जा सकते हैं। शारदा एक्सप्रेस ने रविवार को कैंट क्षेत्र का जायजा लिया तो व्यापारियों से लेकर अन्य लोगों का कहना था कि ऐसा कभी नहीं हुआ कि सांसद बनने के बाद प्रत्याशी गायब हो जाए।

कैंट और शहर के कट्टर भाजपा समर्थकों का कहना है कि चुनाव परिणाम आए तेरह दिन हो गए लेकिन न तो पार्टी की तरफ से और न ही सांसद की तरफ से क्षेत्र में आकर आभार व्यक्त किया गया। दरअसल भितरघात से जूझ रही स्थानीय भाजपा नेताओं के कारण पार्टी अरुण गोविल की जीत का जश्न मनाने में इच्छुक नहीं दिख रही और भीषण गर्मी और संगठन की कमजोरी के बाद भी भाजपा प्रत्याशी को जीत दर्ज करवाने में अहम भूमिका निभाने वाले मतदाता खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।

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