शहरी भारतीय परिवारों में चिंता का विषय
ज्ञान प्रकाश
मेरठ। वर्तमान समय में यह समस्या हर अभिभावकों के सामने आ रही है कि उनका बच्चा ज्यादा वक्त मोबाइल और टेलीविजन के सामने गुजार रहा है। कुछ मां बाप यह सोचकर ध्यान नहीं दे रहे कि बच्चा व्यस्त रहेगा और परेशान नहीं करेगा। कुछ अभिभावक परेशान हैं कि बच्चे की इस आदत को कैसे छुड़ाया जाए।
डिजिटल युग में, मोबाइल, टैबलेट और टीवी जैसे उपकरण बच्चों के जीवन का हिस्सा बन गए हैं। हालांकि, इस तकनीकी सुविधा ने बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। शारदा एक्सप्रेस से बात करते हुए डॉ. सोनिका शर्मा, संस्थापक और सीईओ, दिवित हेल्थ, ने अपने हालिया शोध में इस विषय पर विस्तार से बात की।
उन्होंने बताया कि शहरी भारतीय परिवारों में प्रीस्कूल आयु (3-5 वर्ष) के बच्चों का स्क्रीन टाइम विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों से अधिक है। इस आयु वर्ग के बच्चों को एक दिन में एक घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम नहीं देना चाहिए। इसके बावजूद, अधिकांश बच्चे इस सीमा को पार कर रहे हैं, जिससे उनके संज्ञानात्मक और सामाजिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
शोध के अनुसार, बच्चों में स्क्रीन टाइम की अधिकता से ध्यान केंद्रित करने की क्षमता, स्मरण शक्ति और भाषा कौशल प्रभावित हो रहे हैं। जब बच्चे अधिक समय गैर से क्षाजिक सामग्री जैसे गेम्स या मनोरंजन के वीडियो देखने में बिताते हैं, तो उनके सीखने की क्षमता में कमी देखी गई है।
स्क्रीन टाइम का सीधा असर बच्चों की सामाजिक कुशलताओं पर भी पड़ता है। लंबे समय तक स्क्रीन से जुड़ाव के कारण बच्चे आपसी संवाद और रिश्ते बनाने में कठिनाई भहसूस करते हैं। अध्ययन में पाया गया कि ऐसे बच्चे दूसरों के साथ सहानुभूति और सहयोग दिखाने में कमजोर होते हैं।
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य
स्क्रीन टाइम में वृद्धि से बच्चों में मोटापा, नींद की गुणवत्ता में गिरावट और शारीरिक गतिविधियों की कमी देखी गई। इसके अतिरिक्त, भावनात्मक अस्थिरता, चिंता और मूड स्विंग्स जैसी समस्याएं भी उभर रही हैं।
शैक्षणिक सामग्री का सकारात्मक प्रभाव
हालांकि, शोध से यह भी पता चला है कि अगर स्क्रीन का उपयोग शैक्षणिक सामग्री देखने के लिए किया जाए, तो इससे बच्चों के सीखने की क्षमता को प्रोत्साहन मिल सकता है।
सुझाव
बच्चों का स्क्रीन टाइम एक घंटे प्रतिदिन तक सीमित रखें।
बच्चों के लिए शैक्षणिक और इंटरैक्टिव सामग्री का चयन करें।
बच्चों को बाहरी खेलों और समूह गतिविधियों में शामिल करें।
स्क्रीन समय के दौरान माता-पिता बच्चों के साथ रहें और सामग्री को समझाने में उनकी मदद करें।