– सूदखोर के खिलाफ अपर सत्र न्यायाधीश ने दिए एफआईआर दर्ज करने के आदेश,
बरेली। डेढ़ लाख लोन के बदले डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक कीमत की जमीन हड़पने के मामले में अपर सत्र न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने चार लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। साथ ही डीएम को निर्देश दिया है कि वह इस मामले की जांच निबंधन कार्यालय से करवाएं। कोर्ट ने कहा कि कमजोर लोगों की जमीन भूमाफिया हड़प रहे हैं। ऐसे संगठित आपराधिक गिरोह से दुर्बलों को लड़ने के लिए छोड़ना न्यायोचित नहीं है।
अवर न्यायालय में शिकायतकर्ता कैंट थाना क्षेत्र के गांव कांधरपुर निवासी राम दुलारे ने बताया था कि उन्होंने 2018 में गांव के ओमप्रकाश से डेढ़ लाख रुपये लोन लिया था। उसका प्रतिमाह 7500 रुपये ब्याज देता रहा। जब पूरा ऋण वापस करना चाहा तो ओमप्रकाश व उसके सहयोगी प्रेमपाल, जगदीश और भूदेव कहने लगे कि अपनी जमीन का बैनामा कर दो।
मना करने पर धनराशि वापस लेने को कहा तो वह टाल-मटोल करने लगे और जान से मारने की धमकी दी। शिकायतकर्ता ने उच्चाधिकारियों से शिकायत की तो थाने में ओमप्रकाश ने दरोगा से कहा कि राम दुलारे ने डेढ़ नहीं 12 लाख रुपये का लोन लिया है। 26 नवंबर 2018 को अवर न्यायालय में प्रार्थना पत्र के आधार पर वाद दायर कर लिया गया। इसी बीच 20 अप्रैल 2020 को राम दुलारे की मृत्यु हो गई। थाने की जांच आख्या के आधार पर वाद खारिज कर दिया गया। उसके बाद राम दुलारे की दूसरी पत्नी भाग्यवती ने पुनरीक्षण याचिका सत्र न्यायालय में दायर की।
भाग्यवती ने बताया कि अवर न्यायालय ने मनमाने ढंग से वाद को खारिज कर दिया है। जनवरी 2019 में प्रेमपाल ने राम दुलारे के नाम से एक फर्जी पॉवर आॅफ एटॉर्नी तैयार कर उसकी कृषि भूमि को अपने नाम करा लिया गया। इसके बाद 55 लाख में बैनामा ओमप्रकाश को कर दिया गया। भाग्यवती ने कहा कि अवर न्यायालय ने इन तथ्यों की उपेक्षा की थी। 2024 में न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने और तथ्यों का अवलोकन करने के बाद पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली थी।
अब अपर सत्र न्यायालय ने डीएम को आदेश दिया है कि निबंधन कार्यालय से पॉवर आफ अटार्नी की जांच कराई जाए। पीड़ित ने कहा कि पॉवर आफ अटार्नी फर्जी है। कोर्ट ने सवाल उठाया सरकारी दर पर उस जमीन की कीमत 1.54 करोड़ रुपये है तो उसकी रजिस्ट्री 55 लाख में कैसे हो गई। कोर्ट ने कहा कि मृतक की जमीन पर कब्जा करने के लिए 12 लाख रुपये ऋण लेने का आरोप लगाया गया।
कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि यह परिस्थितियां गंभीर संगठित आपराधिक गिरोह के सुनियोजित षड़यंत्र का पदार्फाश कर रही है। इसके तहत किसी निर्धन व दुर्बल वर्ग के व्यक्ति पर मौखिक रूप से ऋण का आरोप लगाकर उसकी अचल संपत्ति को उक्त अभिलेखों के माध्यम से अपने नाम कर लिया गया। कहा कि राम दुलारे ने उस दौरान के बयान में उसकी संपत्ति हड़पने की आशंका व्यक्त की थी। जोकि वाद में सत्य सिद्ध हुई है। अवर न्यायालय द्वारा दिया गया आदेश विधिसंगत नहीं है।
इन बिंदुओं पर जांच के आदेश
1. मृतक राम दुलारे की ओर से ओमप्रकाश से 12 लाख रुपये का ऋण लिया गया था या नहीं
2. किन परिस्थितियों में छह माह के अंदर पॉवर एटॉर्नी, बिक्री राजीनामा और सेल डीड दिए गए
3. विक्रय-विलेख की धनराशि 55 लाख रुपये में से राम दुलारे को कितना प्राप्त हुआ
4. उपनिबंधक कार्यालय की ओर से सरकारी कीमत 1,54,95,000 रुपये की जमीन को 55 लाख रुपये में विक्रय की अनुमति दिया जाना कैसे विधिसंगत था।
5. क्या रामदुलारे के मकान पर कब्जा किया गया है।