प्रयागराज। उच्च न्यायालय ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तीन वरिष्ठ प्रोफेसरों के खिलाफ एससी-एसटी कानून के तहत फर्जी प्राथिमिकी दर्ज कराने के लिए इस विश्वविद्यालय की एक महिला सहायक प्रोफेसर पर शुक्रवार को 15 लाख रुपये का जुमार्ना लगाया।अदालत ने प्राथमिकी भी रद्द कर दी। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने इन तीन प्रोफेसरों- मनमोहन कृष्ण, प्रह्लाद कुमार और जावेद अख्तर द्वारा दायर याचिकाएं स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया।
संबंधित पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा, ह्लयह एक ऐसा मामला है जहां कानून की धज्जियां उड़ाई गई हैं। शिकायतकर्ता ने विभागाध्यक्ष से व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने के लिए उन्हें और उनके साथियों को झूठे और तुच्छ मामलों में फंसाने का प्रयास किया।
अदालत ने कहा कि जब कभी वरिष्ठ अध्यापक, विभागाध्यक्ष उसे उचित ढंग से पढ़ाने और नियमित कक्षाएं लेने के लिए कहते, वह उनके खिलाफ शिकायत करती। यह पहला मामला नहीं है जो घटित हुआ है।
शिकायतकर्ता कानून के प्रावधानों को भलीभांति जानती है और वह निजी लाभ के लिए इन प्रावधानों का दुरुपयोग करती रही है। अदालत ने प्रत्येक मामले में पांच लाख रुपये जुमार्ना लगाते हुए कहा कि तुच्छ मामले दर्ज किए जाने की वजह से याचिकाकतार्ओं की प्रतिष्ठा और छवि धूमिल हुई है और उन्हें खुद को बचाने के लिए थाने से लेकर अदालत तक के चक्कर लगाने पड़े।
तथ्यों के मुताबिक, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग की एक सहायक प्रोफेसर द्वारा चार अगस्त, 2016 को स्थानीय थाने में एक प्राथमिकी दर्ज कराई गई कि तीन प्रोफेसरों द्वारा उसका अपमान किया गया और डांटते समय जाति सूचक शब्द कहे गए।
बाद में पुलिस ने इस मामले में आरोप पत्र दाखिल किया जिसके बाद अदालत ने इन प्रोफेसरों के खिलाफ समन जारी किया। आरोपी प्रोफेसरों ने उसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी।