किसी के पास नहीं है अग्निशमन विभाग की एनओसी, प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान।
शारदा रिपोर्टर
मेरठ। राजकोट की ह्दय विदारक घटना के बाद भी प्रशासन की नजर शहर में संचालित गेमिंग जोन पर नहीं है। सभी गेमिंग जोन बिना किसी विभागीय अनुमति और अग्निशमन विभाग की एनओसी के संचालित हैं। ऐसे में शायद यहां पर भी प्रशासन किसी राजकोट जैसी घटना के इंतजार में है।
राजकोट घटना पर गुजरात हाईकोर्ट का बयान व्यवस्था को आईना दिखाने वाला है। हाईकोर्ट ने कहा कि उन्हें स्थानीय प्रशासन और सरकार से उम्मीद नहीं है, इसलिए कोर्ट आरोपियों को गिरफ्तार करने का आदेश दे रहा है। कोर्ट की यह नजीर यहां पर भी लागू होती है। क्योंकि सभी गेमिंग जोन रसूखदार लोगों के हैं।
रबर व फोम शीट से कवर गेम एरिया: अधिकतर गेमिंग जोन में छोटे बच्चों के एरिया को रबर व फोम शीट से कवर किया होता है। ये फोम शीट होती तो बच्चों के सेफ्टी के लिए है लेकिन खतरनाक भी साबित हो सकती है। क्योंकि पूरे सेंटर को एसी के कारण सील बंद किया होता है। वहीं किसी भी सेंटर में फायर सेफ्टी के नाम पर किसी प्रकार की सुविधा नही है। ऐसे में यदि आग या किसी अन्य प्रकार का हादसा हो जाए तो बच्चों के लिए इमरजेंसी व्यवस्था भी नही होती है।
घरों में चल रहे गेमिंग सेंटर: शहर में शास्त्रीनगर, गढ़रोड, दिल्ली रोड, आबूलेन, पीएल शर्मा रोड, सरधना रोड, रूड़की रोड, गंगानगर, बेगमपुल रोड, बागपत रोड पर गेमिंग जोन संचालित हैं।
शहर में इनकी संख्या एक दर्जन से ज्यादा है और दो मंजिला तीन मंजिला गेमिंग सेंटर चालू हैं। अधिकतर गेमिंग जोन घर में बने हुए हैं और किसी के पास पर कामर्शियल एक्टिविटी के अनुमति तक नही है। शास्त्रीनगर में आवास विकास कार्यालय से 300 से 500 मीटर की दूरी पर दो दो गेम जोन आवासीय भवन में खुले हुए हैं, लेकिन खुद आवास विकास के अधिकारियों को पता नही है।
अंधेरे कमरों में डिजीटल स्क्रीन
अधिकतर गेमिंग जोन में बड़े बड़े कमरों में अंधेरा कर डिस्को लाइट साथ बड़ी बडी गेमिंग स्क्रीन लगाई हुई हैं। इन स्क्रीन पर फाइटिंग, रेसिंग टाइप के गेम खेले जाते हैं। घंटों घंटों तक बच्चे इन गेम्स की स्क्रीन पर अपनी आंख गढ़ाए बैठे रहते हैंं लेकिन ना तो उनकी आई प्रोटेक्शन के लिए कोई सुविधा मौजूद रहती है और ना ही सेफ्टी के लिए कोई व्यवस्था।