एजेंसी, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई सिर्फ आरक्षण का फायदा लेने के लिए धर्मांतरण कर रहा है तो उसे इसकी आड़ में इसका फायदा उठाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। नियमित तौर पर चर्च जाने और ईसाई धर्म परंपरा का पालन करने वाला, खुद को हिंदू बताकर अनुसूचित जाति के तहत मिलने आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकता।

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत देश के हर नागरिक को अपनी मर्जी से किसी धर्म को चुनने और उसके परंपराओं का पालन करने की स्वतंत्रता है।
कोई अपना धर्म तब बदलता है, जब वास्तव में वो किसी दूसरे धर्म के सिद्धांतों ,परंपराओं से प्रभावित हो।

हालांकि, अगर कोई धर्मांतरण सिर्फ दूसरे धर्म के तहत मिलने वाले आरक्षण का फायदा लेने के लिए हो रहा है तो इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। ऐसा करना आरक्षण की नीति के सामाजिक सरोकार को हराना होगा। पीठ ने पुडुचेरी की एक महिला की अर्जी खारिज करते हुए ये टिप्पणी की है। महिला ने नौकरी में अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाले आरक्षण का लाभ हासिल करने के लिए याचिका दायर की थी।

 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला ईसाई धर्म की परंपरा का पालन करती है, वो नियमित तौर पर चर्च जाती है। इसके बावजूद वो खुद को हिंदू बताते हुए नौकरी के मकसद से अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण का फायदा उठाना चाहती है। इस महिला का दोहरा दावा मंजूर नहीं किया जा सकता है। ईसाई धर्म का पालन करते हुए वो वो खुद को हिंदू होने का दावा नहीं कर सकती, उसे अनुसूचित जाति के आरक्षण का फायदा नहीं दिया जा सकता।

 

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