सात फीसदी वोटों में सिमट गई यूपी में राज करने वाली बसपा !

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  • 2012 के बाद से हर चुनाव में गिरता गया जनाधार,
  • आगे की पारी हुई और मुश्किल।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी राज करने वाली बहुजन समाज पार्टी आज लगभग पूरी तरह सिमट गई है। हाल ये है कि पिछले 12 वर्ष में बसपा का वोट बैंक 19 प्रतिशत गिर गया है। भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद में फंसी पार्टी को उसके कोर वोट बैंक ने नकार दिया है। पार्टी की इस हालत का जिम्मेदार बसपा सुप्रीमो मायावती को माना जा रहा है, जिन्होंने कालांतर में पार्टी में आमूलचूल परिवर्तन करने का कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

बीते विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो बसपा को वर्ष 2012 में 25.91 फीसद वोट मिले थे और उसके 80 विधायक जीते थे। इसके बाद उसे सत्ता से बाहर होना पड़ा और फिर वापसी नहीं कर पाई। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 22.23 फीसदी वोट पाने वाली बसपा के 19 प्रत्याशी जीते थे। वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव बसपा के लिए भारी नुकसान वाला साबित हुआ। अकेले चुनाव लड़ने के फैसले से उसे महज 12.83 फीसदी वोट मिले और सिर्फ एक प्रत्याशी विधानसभा तक पहुंच पाया। हालिया उपचुनाव में बसपा को महज 7 फीसदी वोट मिले हैं।

चुनाव लड़े लेकिन प्रचार से रहे दूर: उपचुनाव में बसपा ने प्रत्याशी तो उतारे, लेकिन मायावती ने खुद को प्रचार से पूरी तरह दूर ही रखा। ऐसे में उनका उपचुनाव में प्रत्याशी उतारना विपक्षी दलों को भी सोचने पर मजबूर कर रहा है। यही कारण है कि अब भाजपा को छोड़कर अन्य विपक्षी दल बसपा को भाजपा की बी पार्टी बताने लगे हैं।

आनंद और आकाश पर भरोसा: बसपा सुप्रीमो ने अपने भाई आनंद कुमार और भतीजे आकाश आनंद को पार्टी में ज्यादा तवज्जो देनी शुरू कर दी। उन्होंने आनंद को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जबकि आकाश को नेशनल कोआर्डिनेटर बना दिया। जिन ब्राह्मण और दलित नेताओं की वजह से बसपा ने सत्ता का स्वाद चखा था, उन्होंने दूसरे दलों का दामन थाम लिया या वे सक्रिय राजनीति से दूर हो गए। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा और उनके परिवार को ब्राह्मणों को संगठित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई, जो असफल साबित हुई।

भ्रष्टाचार के लगे आरोप

बसपा का सबसे ज्यादा नुकसान वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में हुआ जिसमें उसके तमाम नेता भाजपा में चले गए। इनमें से अधिकतर बसपा सुप्रीमो मायावती पर टिकट के बदले करोड़ों रुपये मांगने का आरोप लगाकर भाजपा के पाले में गए। इन आरोपों से बसपा कभी उबर नहीं सकी। बाद में हुए चुनावों में भी पार्टी पर इस तरह के आरोप टिकट गंवाने वाले प्रत्याशी लगाते रहे।

आगामी चुनाव में राह और भी मुश्किल

बसपा का जिस तरह से जनाधार घटा है और उसकी रणनीति लगातार फेल हो रही है। उससे आगे की राह मुश्किल नजर आ रही है। इसमें यह इसलिए भी ज्यादा मुश्किल हो गई है, क्योंकि वर्तमान में आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और सांसद चंद्रशेखर आजाद बहुत तेजी से दलितों के बीच पैठ बनाते नजर आ रहे हैं।

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