चुनाव परिणाम तय करेंगे भाजपा के मंत्रियों और विधायकों के कद

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  • दूसरे दलों से आए नेताओं की भी परीक्षा, भितरघात की भी खुलेगी कलई

अनुज मित्तल मेरठ। लोकसभा चुनाव के नतीजे मंत्रियों और विधायकों के कद नतीजे तय करेंगे। दूसरे दलों से लाकर भाजपा ने जिन नेताओं को पद-प्रतिष्ठा से नवाजा उन सबकी असल परीक्षा परिणाम से होगी।

लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण पूरा होने के बाद अब सबकी नजरें कल आने वाले नतीजों पर टिकी हैं। नतीजों से निकलने वाले संदेश बहुत कुछ तय करेंगे। इन परिणामों से प्रदेश सरकार के कई मंत्रियों का कद तो तय होगा ही, मंत्री बनने का सपना देख रहे कई विधायकों की जमीन पर कितनी पकड़ है, यह भी सामने आएगी।

मेरठ सीट पर चुनाव परिणाम कई का भविष्य तय करने वाले हैं, क्योंकि मेरठ में भाजपा के जनप्रतिनिधियों की लंबी फेहरिश्त है। यहां पर भाजपा के तीन विधायक, एक राज्यसभा सदस्य, दो एमएलसी, जिला पंचायत अध्यक्ष और महापौर हैं। हालांकि राज्यसभा सदस्य डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी और एमएलसी अश्वनी त्यागी जनपद में नहीं रहे।

लक्ष्मीकांत वाजपेयी को झारखंड का चुनाव प्रभारी और अश्वनी त्यागी को वाराणसी सीट का चुनाव प्रभारी बनाया गया था। जिसके चलते ये दोनों लगभग पूरे चुनाव मेरठ से बाहर ही रहे और मतदान करने ही आए।

मेरठ सीट पर राज्यमंत्री डा. सोमेंद्र तोमर, वर्तमान सांसद राजेंद्र अग्रवाल, कैंट विधायक अमित अग्रवाल, एमएलसी धर्मेंद्र भारद्वाज, महापौर हरिकातं अहलूवालिया के हाथ में मुख्य रूप से कमान थी। जबकि राज्यमंत्री दिनेश खटीक की विधानसभा हस्तिनापुर में आने के कारण उन्होंने बिजनौर सीट का चुनाव देखा। वहीं जिला पंचायत अध्यक्ष गौरव चौधरी जो कि मुख्य रूप से सिवालखास विधानसभा के रहने वाले हैं, तो उनके पास जनपद की सभी विधानसभाओं में मेरठ सहित बागपत, मुजफ्फरनगर और बिजनौर सीट के जातीय समीकरण साधने का जिम्मा दिया गया था।

 

भीतरीघात की भी खुलेगी कलई: भाजपा में भीतरीघात हुआ है, यह चर्चा आम है।
इसका बड़ा कारण लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनने का दावा करने वाले स्थानीय नेताओं के ऊपर बाहरी प्रत्याशी को वरियता देकर चुनाव मैदान में उतार दिया गया।

इसके अलावा कुछ जगह पुराने सांसदों को भी कार्यकर्ताओं की राय लिए बगैर उतारा जाना भी भीतरीघात का कारण बना है। यह भीतरीघात कितना और कहां प्रभावी हुआ? इसका भी कल परिणाम आने के बाद स्पष्ट हो जाएगा।

 

बाहर से आए नेताओं की भी है परीक्षा

लोकसभा चुनाव की तैयारियों में भाजपा विधानसभा चुनाव 2022 से जुट गई थी। जिसके चलते तभी से ही दूसरे दलों से आने वालों को कई अच्छे पदों पर भी नवाजा गया। अब देखना ये है कि इनके आने से लोकसभा चुनाव में कितना फायदा मिला है। क्योंकि भाजपा ने अपने पुराने कार्यकर्ताओं के ऊपर इन लोगों को वरियता देकर लोकसभा चुनाव में उनके प्रभाव और जातीय समीकरण से लाभ लेने की रणनीति बनाई थी। यह रणनीति कितनी कारगर हुई है, यह भी चुनाव परिणाम तय करेगा।

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