कैंट एक बार फिर बना भाजपा का तारणहार !

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  • हापुड़ से शहर तक चार विधानसभाओं में मिली हार,
  • कैंट ने अकेले दम पर दिलाई जीत।

अनुज मित्तल मेरठ। लोकसभा चुनाव 2019 हो या फिर इस बार का चुनाव, भाजपा के लिए मेरठ कैंट ही तारणहार बना। यदि कैंट में भी थोड़ा चूक हो जाती, तो बाजी पलट सकती थी। भाजपा का यह हाल तो तब हुआ, जब उसके पास पूरा लाव लश्कर था और चुनाव की तैयारी प्रत्याशी तय होने से कई माह पहले शुरू हो गई थी। जबकि सपा प्रत्याशी ने नामांकन के अंतिम दिन भागदौड़ में अपना पर्चा दाखिल किया था।

 

भाजपा का संगठनात्मक ढांचा निश्चित रूप से अन्य दलों की तुलना में बेहद मजबूत है। इसकी बानगी इसी बात से मिलती है कि चुनाव की अधिसूचना से पहले ही भाजपा तमाम सम्मेलन और बैठकों के माध्यम से जनता के बीच चुनावी माहौल बना चुकी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनावी समर का आगाज मेरठ में प्रबुद्ध समाज के सम्मेलन को संबोधित करते हुए किया था।

 

वहीं दूसरी ओर सपा में प्रत्याशी को लेकर अंतिम समय तक मंथन होता रहा। दो बार प्रत्याशी घोषित करने के बाद उन्हें हटा दिया गया और अंतिम दिन पूर्व महापौर सुनीता वर्मा को प्रत्याशी घोषित किया गया।

 

जिसके चलते उन्हें चुनाव प्रचार और संपर्क का पूरा मौका भी नहीं मिला। इसके साथ ही सपा के संगठनात्मक ढांचे की बात करें तो मेरठ में उसके पास तीन विधायकों को छोड़कर कोई दमदार नेता नहीं है। इनमें पूर्व मंत्री और वर्तमान में किठौर विधायक ही कद्दावर नेता हैं।

 

जबकि भाजपा के पास मेरठ सीट पर वर्तमान सांसद, दो पूर्व राज्यसभा सदस्य, एक राज्यसभा सदस्य, दो एमएलसी, एक राज्यमंत्री और दो विधायक के साथ महापौर, एक पूर्व एमएलसी के रूप में जहां जनप्रतिनिधियों की खासी लाइन है। वहीं संगठन में भी धुरंधर नेता हैं। इसके साथ ही महिला मोर्चा और युवा मोर्चा जैसे दमदार संगठन हैं।

 

बावजूद इसके जो चुनाव परिणाम आया, वह बहुत ही चौंकाने वाला रहा है। भाजपाई अपनी जीत का दावा एक लाख का कर रहे थे। लेकिन बहुत कम अंतर से जीत हासिल होना, भाजपा के चुनावी प्रबंधन पर सवाल उठा रहा है।

 

राज्यमंत्री की विधानसभा में मिली करारी हार: राज्यमंत्री सोमेंद्र तोमर मेरठ दक्षिण से लगातार दो बार विधायक निर्वाचित होते आ रहे हैं। 2017 में जहां वह करीब तीस हजार वोटों से जीते थे, वहीं 2022 में उनकी जीत करीब आठ हजार वोटों से हुई थी। वर्तमान सरकार में वह राज्यमंत्री हैं, लेकिन वह अपने ही गढ़ में भाजपा प्रत्याशी को लीड नहीं दिला पाए। हापुड़ में भाजपा के विधायक विजय पाल भाजपा प्रत्यशी को लीड दिलाने में कामयाब नहीं हुए।

 

यह है विधानसभावार मिले वोटों का आंकड़ा

नीचे दिए आंकड़े साफ बता रहे हैं कि चार विधानसभाओं में सपा प्रत्याशी सुनीता वर्मा को 86747 वोटों की बढ़त मिली थी, लेकिन कैंट विधानसभा ने अकेले भाजपा की लीड़ 96113 करते हुए सारे आंकड़े पलट दिए। यदि बसपा प्रत्याशी हापुड़, किठौर और कैंट में जरा भी कमजोर लड़ जाता तो सपा को जीतने से कोई नहीं रोक सकता था।

विधानसभा     भाजपा       बसपा       सपा        सपा-भाजपा के वोटो का अंतर

किठौर         93578      21392     110315          16737 सपा की लीड

मेरठ कैंट     161892    14492     65779             96113 भाजपा की लीड

मेरठ शहर    75374      2898      113289            37915 सपा की लीड

मेरठ दक्षिण   119881    22463    140354            20473 सपा की लीड

हापुड़          93650     25448    105272             11622  सपा की लीड

 

मेरठ शहर भाजपा का कमजोर गढ़

जातीय समीकरण के चलते मेरठ शहर ऐसी विधानसभा है, जहां पर भाजपा के लिए जीत का गणित बहुत मुश्किल होता है। इस सीट पर भाजपा लगातार दो बार से हारती आ रही है। 1989 में यह सीट पहली बार भाजपा ने जीती थी। उसके बाद 1996, 2002 और 2012 में भाजपा यहां जीती, लेकिन इसके बाद लगातार दो बार से हारती आ रही है। इस सीट पर मुस्लिमों की संख्या ज्यादा होने और उनके वोटों का धु्रवीकरण होने से भाजपा का समीकरण यहां गड़बड़ाता रहा है।

 

किठौर के भी शहर जैसे हालात

किठौर की राजनीति में मुख्य रूप से मुस्लिम नेता ही छाए रहे हैं। यह बात अलग है कि बीच-बीच में हिंदुओं की एकजुटता से यह सीट दूसरे दलों को भी मिलती रही है। लेकिन ज्यादा समय यहां पर मुस्लिम प्रत्याशी ही जीते हैं।

 

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