- युवाओं ने प्रकृति से मांगी माफी, लिखे ऐसे खत जो बदल दें पर्यावरणीय सोच और नीतियाँ
- 11,000 से अधिक पत्रों में भारत की युवा-पीढ़ी व्यक्त करेगी पर्यावरण के लिए अपनी चिंता और आशा
- प्रकृति की सुनवाई के लिए जुटे दो युवा, कागज कलम और सोशल मीडिया से लड़ रहे पर्यावरण बचाने की जंग
बागपत। केपी पब्लिक स्कूल, गीतानगर में एक अलग तरह का माहौल था। हर बच्चा कुछ कहना चाहता था, लेकिन कक्षा में शोर नहीं बल्कि गहरा मौन था। नेचर ग्रीन फ्यूचर ट्रस्ट और उड़ान यूथ क्लब के संयुक्त अभियान “एक पत्र प्रकृति के नाम” के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में बच्चों ने सिर्फ पत्र नहीं लिखे, बल्कि उन्होंने प्रकृति से सवाल पूछे, माफी मांगी और अपनी आशाएं भी साझा कीं। यह अभियान प्रकृति से रिश्ते को फिर से जोड़ने की कोशिश है।
एक छात्रा ने लिखा, “प्रकृति दीदी, क्या तुम्हें भी बुखार आता है जब गर्मी ज्यादा हो जाती है?” किसी ने बताया कि उसने कल पेड़ के पत्ते तोड़ दिए थे लेकिन अब उसे दुख हो रहा है। एक और बच्ची ने चिंता जताई कि जब मम्मी प्लास्टिक जलाती हैं तो धुआं उसकी सांस में चला जाता है, क्या धरती भी ऐसे ही खांसती होगी। ये सच्चे और मासूम विचार किसी पाठ्यपुस्तक से नहीं बल्कि बच्चों के अनुभवों और संवेदनशीलता से निकले थे।
इस अभियान के तहत देश भर के बच्चों ने 11,000 से अधिक पत्र लिखे हैं, जिनमें उन्होंने मिट्टी की प्यास, पक्षियों की गर्मी से परेशानी, तितलियों की कमी और फूलों की खुशी के बारे में लिखा है। एक पत्र में लिखा गया था कि जब लोग दुनिया को बुरा कहते हैं तो क्या धरती को भी बुरा लगता है। यह अभियान देश के शीर्ष नीति निर्माताओं तक ये संदेश पहुंचाने का प्रयास है। इस पहल के पीछे दो युवा, सुंदरम तिवारी और अमन कुमार हैं, जो प्रदेश के सर्वोच्च युवा पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं। सुंदरम इस अभियान का क्षेत्रीय नेतृत्व कर रहे हैं, जबकि अमन डिजिटल अभियान का संचालन कर रहे हैं।
कार्यक्रम में पर्यावरणविद सुंदरम तिवारी ने बच्चों से पूछा कि क्या उन्होंने कभी बारिश में भीगकर पेड़ को छुआ है, या सूखे पत्तों को उठाकर खाद बनाया है। उनके सवालों ने बच्चों को प्रकृति से जुड़ने और उसकी सेवा करने के लिए प्रेरित किया। स्कूल प्रबंधक वंदना तिवारी ने कहा कि बच्चों ने हमें आईना दिखाया है जिसमें हमारे पर्यावरणीय कर्तव्यों की अनदेखी साफ दिख रही है। प्रधानाचार्य नरेंद्र तिवारी ने इस अभियान को बच्चों के भीतर पर्यावरण के प्रति भावनात्मक जुड़ाव का प्रमाण बताया।
अभियान में शिक्षकों और स्वयंसेवकों की सक्रिय भागीदारी रही, जबकि समृद्ध संस्कृति फाउंडेशन, दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज और मेरा युवा भारत जैसे संस्थान भी इससे जुड़े हुए हैं। बच्चों ने पत्रों के साथ चित्र भी बनाए, जिनमें धरती मां को थका हुआ, सूखे पेड़ के साथ उदास बच्चे को दर्शाया गया है। बच्चों ने लिखा कि वे रोज सुबह पेड़ को गुड मॉर्निंग कहेंगे ताकि पेड़ को लगे कि वे अभी भी दोस्त हैं।
यह अभियान केवल लेखन का अभ्यास नहीं, बल्कि बच्चों का आत्ममंथन और भावनात्मक जुड़ाव है। इस देशव्यापी पहल के तहत संकलित सभी पत्र विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे जाएंगे। यह संदेश है कि युवा पीढ़ी प्रकृति के प्रति जागरूक होने के साथ-साथ उसे बचाने के लिए भी प्रतिबद्ध है। अभियान में उत्कृष्ट पत्रों के लेखकों को विश्व पर्यावरण दिवस पर सम्मानित किया जाएगा।