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Wednesday, December 3, 2025
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Homeशहर और राज्यउत्तर प्रदेशजामा मस्जिद या नीलकंठ महादेव मंदिर? दोनों पक्ष आमने-सामने

जामा मस्जिद या नीलकंठ महादेव मंदिर? दोनों पक्ष आमने-सामने

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  • एक पक्ष ने दावा किया कुतबुद्दीन एबक के समय में मंदिर तोड़कर बनाई गई मस्जिद।

बदायूं। जामा मस्जिद-नीलकंठ महादेव मंदिर मामले में आॅल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के बयान के बाद मामला गरमा गया है। सोशल मीडिया पर लोग अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।

मस्जिद व मंदिर को लेकर दोनों पक्षों के अपने-अपने दावे हैं। कौन सही, कौन गलत है यह तो अदालत साक्ष्य व सबूतों के आधार पर तय करेगी। आठ अगस्त 2022 को विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष मुकेश पटेल ने अदालत में वाद दायर करते हुए कहा कि जहां पर शहर की जामा मस्जिद है, वहां पर पूर्व में नीलकंठ महादेव का मंदिर हुआ करता था। इसके बाद से ही अदालत में इस मामले में सुनवाई शुरू हो गई। सुनवाई शुरू हुई तो सरकार की तरफ से पक्ष रखा गया। पुरातत्व विभाग ने इसे राष्ट्रीय धरोहर बताया। साथ ही कहा कि राष्ट्रीय धरोहर से 200 मीटर तक सरकार की जगह है।

इसके बाद वक्फ बोर्ड व इंतजामियां कमेटी की तरफ से बहस की जा रही है। इसमें अगली सुनवाई तीन दिसंबर को होनी है। इसी बीच असदुद्दीन ओवैसी ने शनिवार को ट्वीट कर इस मामले को भी गरमा दिया। इस पर लोगों ने अपने-अपने अंदाज में प्रतिक्रियाएं दी। कोई इसे जामा मस्जिद तो कोई इसे मंदिर बता रहा है। वहीं, संभल की घटना के बाद पुलिस अधिकारी अलर्ट हो गए हैं। ऐसे में उन्होंने विवादित स्थल के आसपास भी पुलिस तैनात कर रखी है।

मंदिर होने के पूरे सबूत : पटेल: अखिल भारत हिंदू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष मुकेश पटेल ने बताया कि उनके पास पूरे सुबूत हैं कि यहां पर पूर्व में नीलकंठ महादेव का मंदिर ही था। यहां आज भी मूर्तियां हैं, पुराने खंभे हैं, नीचे सुरंग हैं। पूर्व में यहां पास में तालाब हुआ करता था।

कुतुबुद्दीन ऐबक के समय में यहां मंदिर था। तब इसे तोड़कर मस्जिद बनाया गया। 1875 से 1978 तक के गजट में इसके प्रमाण मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि अभी इंतजामिया कमेटी की तरफ से बहस चल रही है। इसके खत्म होने के बाद उनकी तरफ से अधिवक्ता अपना पक्ष रखेंगे।

मौलाना ने बताया कि हिंदुस्तान के बादशाह शमसुद्दीन अल्तमश ने 1223 ईसवी में इस मस्जिद का निर्माण कराया था। यह शम्सी जामा मस्जिद के नाम से जानी जाती है। बादशाह शमसुद्दीन सूफी विचारधारा के प्रबल प्रचारक थे। वह जब बदायूं आए तो यहां कोई मस्जिद नहीं थी। इसी वजह से उन्होंने इस मस्जिद का निर्माण कराया था। ब्रिटिश शासन काल में वर्ष 1856 में भी मस्जिद का उल्लेख मिलता है। बदायूं वैसे भी काफी ऐतिहासिक शहर है।

साढ़े आठ सौ साल से मस्जिद : सिद्दीकी

जामा मस्जिद का मुकदमा लड़ रहे एडवोकेट असरार अहमद सिद्दीकी ने बताया कि यह 850 साल पुरानी जामा मस्जिद है। यहां कभी मंदिर नहीं था। मंदिर का दावा पेश करने का हिंदू महासभा को कोई अधिकार नहीं। इनके दावे के हिसाब से मंदिर का कोई अस्तित्व नहीं। जो चीज अस्तित्व में नहीं है, उसकी तरफ से कोई दावा नहीं हो सकता। अदालत में दावे को खारिज करने पर बहस की जा रही है। उन्होंने बताया कि पुराना रिकॉर्ड भी उठाकर देख लिया जाए तो भी सरकारी रिकॉर्ड में यहां जामा मस्जिद दर्ज है।

सर्वे के नाम पर देश में फैलाया जा रहा सांप्रदायिक तनाव

बदायूं की जामा मस्जिद को लेकर आॅल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने कहा कि गंगा-जमुनी तहजीब वाले हमारे देश को सांप्रदायिक सोच रखने वालों की नजर लग गई है। पूरे देश में सर्वे के नाम पर सांप्रदायिक तनाव फैलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री इसको रोकने की जिम्मेदारी निभाएं।

 

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