गुवाहाटी। असम में हाल ही में सामने आए भूमि घोटाले ने राज्य की प्रशासनिक ईमानदारी पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। गुवाहाटी में गिरफ्तार की गई असम सिविल सेवा (एसीएस) की युवा अधिकारी नुपुर बोरा केवल छह वर्ष पहले ही सेवा में शामिल हुई थीं। लेकिन उनकी गिरफ्तारी से यह स्पष्ट हो गया है कि भ्रष्टाचार का जाल केवल अनुभवी अधिकारियों तक सीमित नहीं, बल्कि नई पीढ़ी भी इसकी चपेट में आ रही है।
मुख्यमंत्री के सतर्कता प्रकोष्ठ ने नुपुर बोरा के गुवाहाटी स्थित दो फ्लैटों पर छापा मारकर लगभग एक करोड़ रुपये नकद, हीरे और लाखों की ज्वेलरी बरामद की। उनके खिलाफ आरोप है कि बरपेटा जिले में कार्यकाल के दौरान उन्होंने अवैध भूमि हस्तांतरण में भूमिका निभाई, जिसमें कथित तौर पर हिंदू समुदाय की जमीन को दूसरे समुदाय के नाम पर स्थानांतरित किया गया।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने साफ कहा कि यह अधिकारी पिछले छह महीनों से सरकार की निगरानी में थी और उनके खिलाफ गंभीर शिकायतें लगातार आ रही थीं। असम में भूमि केवल आर्थिक संपत्ति नहीं, बल्कि जनसांख्यिकीय संतुलन और सांस्कृतिक पहचान का प्रश्न भी है।
बरपेटा और अन्य निचले असम के जिÞले लंबे समय से बांग्लादेशी घुसपैठियों के ठिकाने माने जाते रहे हैं। ऐसे में भूमि का अवैध हस्तांतरण केवल भ्रष्टाचार का मामला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक अस्तित्व से जुड़ा मुद्दा है।
यही कारण है कि हाल ही में राज्य कैबिनेट ने अंतर-धार्मिक भूमि लेनदेन के लिए असम पुलिस की विशेष शाखा से मंजूरी लेना अनिवार्य कर दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने असम दौरे में इस खतरे की ओर इशारा करते हुए कहा था कि अवैध प्रवासियों से राज्य की जनसांख्यिकी बदलने का खतरा वास्तविक है। इस परिप्रेक्ष्य में नुपुर बोरा का मामला और भी गंभीर हो जाता है, क्योंकि यह केवल व्यक्तिगत भ्रष्टाचार नहीं बल्कि एक बड़े जनसांख्यिकीय संकट में योगदान करने जैसा है।