- किसानों ने कहा दस साल पहले हुए समझौते के आधार पर लेंगे अपना हक।
शारदा रिपोर्टर मेरठ। वेदव्यास पुरी में मेरठ मंडपम पर किसानों का मेडा के खिलाफ अनिश्चितकालीन धरना लगातार जारी है। किसानों का कहना है कि पिछले दस सालों से हम प्राधिकरण के खिलाफ इस लड़ाई को लड़ रहे हैं। शुक्रवार को भी पूरे दिन हुई बारिश में भी धरना स्थल पर किसान और बड़ी संख्या में महिलांए वहीं बैठे रहे। धरने पर बैठे किसान धर्मपाल सिंह ने बताया कि जिस समय यह अधिग्रहण हुआ था और यह प्रतिकर निर्धारित हुआ था उस समय इसमें 200 लेकिन समय बढ़ने के साथ वारिसों की संख्या भी बढ़ती गई। आज इस योजना से लगभग 800 किसान प्रभावित हैं।
धरने पर बैठे एडवोकेट नरेश ने बताया कि हमारी लड़ाई किसी सरकार से नहीं है यह सिर्फ किसानों और मेरठ विकास प्राधिकरण के बीच की लड़ाई है। लगातार हमें हमारे हक से वंचित किया जा रहा है लेकिन हम कमजोर नहीं पड़ेंगे और अपना हक लेकर रहेंगे।
किसानों का कहना है कि हम न तो सरकार से और न ही प्राधिकरण से कोई बैर नहीं चाहते हैं। हम बस यही चाहते है कि प्राधिकरण हमारा हक हमे वापस देदे। हम कोई चीज गलत नहीं मांग रहे है हम सिर्फ अपना हक चाहते हैं।
किसान उदयवीर सिंह ने बताया कि हम यहां न तो किसी विशेष संगठन के कार्यकर्ता के रूप में बैठे हैं और न ही किसी राजनीतिक पार्टी से इस धरने का कोई मतलब है। यहां मौजूद सभी लोग सिर्फ पीड़ित किसान हैं जो अपना हक मांग रहे हैं।
धरने पर बैठे किसानों ने उस क्षेत्र में मेरठ विकास प्राधिकरण द्वारा किए जा रहे सभी निर्माण कार्य भी रुकवा दिए। इनमें मुख्य रूप से मेरठ मंडपम, पाइप लाईन, पार्क का निर्माण भी रुकवा दिया गया है और उनका कहना है कि हम काम तब तक शुरू नहीं होने देंगे जब तक हमे अपना हक नहीं मिलेगा।
क्या था 2015 का समझौता: धरने पर बैठे किसान जगदीश कुमार ने बताया कि मेडा से हमारा 2015 में अतिरिक्त प्रतिकर को लेकर एक समझौता हुआ था जिसमें कहा गया था कि छोटे किसानों को नगद प्रतिकर यानी पैसा मिलेगा जिनमें तीन लाख रुपए तक वाले किसान थे। इसके साथ इससे बड़े किसानों को विकास प्राधिकरण यहां भू- खंड प्रदान करेगा।
इसमे लगभग 300 चैक प्राधिकरण ने किसानों को दिए भी 2016 में। इसके बाद हमे सिर्फ बहकाया जा रहा है , हम अपनी मांग को लेकर 10 साल से न्याय पाने के लिए घूम रहे हैं। सभी जमीन मेडा द्वारा बेची जा रही है अगर सारी जमीन ये लोग आवंटितकर देंगे तो हमे हमारा हक कहां मिलेगा हम इस बात के लिए यहां धरने पर बैठे हैं।