शारदा रिपोर्टर मेरठ। शहर में सफाई के नाम पर हर साल करीब 100 करोड़ रुपये खर्च हो रहा है, लेकिन ना तो स्वच्छता सर्वेक्षण की सूची में आज तक शहर साफ शहरों की सूची में शामिल नहीं हो पाया और ना ही शहर से गंदगी और कूड़े का बदनुमा दाग ही धूल पाया।
हर साल नगर निगम को मुंह को खानी पड़ रही है। स्वच्छता सर्वेक्षण 2024 में भी नगर निगम ने दावे पेश किए हैं, लेकिन बाहर से आई टीम के निरीक्षण में सफाई की पोल खुल गई। शहर में सफाई व्यवस्था सुधारने के लिए नगर निगम प्रशासन ने कर्मचारियों का बीट चार्ट तैयार करने का निर्णय लिया था।
वहीं, तत्कालीन नगरायुक्त ने एक वार्ड से इसकी शुरूआत करने का निर्णय भी लिया था। उनके स्थानांतरण के बाद बीट चार्ट पर काम नहीं हुआ। परिणाम यह हुआ कि, सफाई व्यवस्था बिगड़ती चली गई। इसके अलावा स्वच्छ भारत मिशन के तहत शहर में दिन में दो बार सफाई अनिवार्य है। नगर निगम प्रशासन यह व्यवस्था भी लागूू नहीं करा पाया।
निगरानी भूले अधिकारी
शहर में डोर टू डोर कूड़ा उठाने की व्यवस्था संचालित है। करीब 125 कूड़ा गाड़ी शहर के 90 वार्डों से कूड़ा जमा कर रही हैं। एक कूड़ा गाड़ी कितने घरों में पहुंच रही है। क्या गीला और सूखा कूड़ा अलग अलग ले रही हैं। कितने लोगों को सुविधा का लाभ नहीं मिल पा रहा है। पूरी व्यवस्था में कहीं लापरवाही तो नहीं हो रही। इसकी निगरानी के लिए नगर निगम प्रशासन ने कोई अधिकारी नियुक्त नहीं किया।
सफाई व्यवस्था पर खर्च
सफाई कर्मचारी वेतन- 6 करोड़ प्रतिमाह
ड्राइवर वेतन खर्च- 50 लाख प्रतिमाह
कूड़ा गाड़ी डीजल खर्च- 85 लाख प्रतिमाह
वाहन मरम्मत खर्च – 25 लाख रुपये प्रतिमाह
पक्ष की बजाय विपक्ष में है जनता
नगर निगम प्रशासन के आह्वान पर शहर की जनता झूठ बोलने को तैयार नहीं है। बताया जा रहा है कि अभी तक जिन छह हजार लोगों ने स्वच्छता सर्वेक्षण 2024 के लिए वोटिंग की। उनमें से दो हजार लोगों ने नगर निगम प्रशासन के विरोध में वोटिंग की है। इसका परिणाम इसी वित्तीय वर्ष में सामने आ जाएगा।
नाले चोक, सड़कों पर गंदगी के ढेर
ओडियन नाले में भरी सिल्ट इस मौसम में भी सूखी नजर आ रही है। यह सिल्ट नगर निगम की पोल खोलने के लिए काफी है। इस नाले से बड़ा इलाका जुड़ा है। आए दिन ब्रह्मपुरी, भुमियापुल से सटे इलाके जलमग्न रहते हैं। कारण है कि छोटे नालों का पानी ओडियन नाले तक पहुंच ही नहीं पाता है। शहर की सड़कों पर भी गंदगी की हद है। जगह जगह कूड़े के ढेर लगे हैं।
पूरे साल सफाई के संसाधनों पर 100 करोड़ रुपये खर्च हो जाते हैं। लगातार सफाई के बाद भी नालों में सिल्ट से इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन जनता को भी जागरूक होना चाहिए। अगर नालों में कूड़ा डालना बंद हो जाए तो सफाई पर भी कम खर्च होगा। – डॉ. हरपाल सिंह, प्रभारी अधिकारी।