– आरएसएस का शताब्दी समारोह- विशेष डाक टिकट और सिक्का जारी।
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के 100 साल पूरे होने के मौके पर दिल्ली के अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में बड़ा कार्यक्रम हो रहा है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष रूप से डिजाइन किया गया स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी किया। वह इस अवसर पर वहां मौजूद लोगों को संबोधित भी कर रहे हैं। संघ के सर-कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले भी मौजूद हैं।
प्रधानमंत्री मोदी खुद लंबे समय तक आरएसएस के प्रचारक रहे हैं और बीजेपी में आने से पहले उन्होंने आरएसएस के लिए काफी काम किया है। आज भी बीजेपी अपनी वैचारिक प्रेरणा आरएसएस से लेती है। आरएसएस की स्थापना साल 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में की थी। संघ का उद्देश्य था सांस्कृतिक जागरूकता, अनुशासन, सेवा और सामाजिक जिम्मेदारी को बढ़ावा देना। कल दशहरा है और इस दिन आरएसएस की स्थापना के 100 साल पूरे हो रहे हैं। संघ का लक्ष्य एक ही रहा एक भारत-श्रेष्ठ भारत। राष्ट्र साधना की यात्रा में ऐसा नहीं कि संघ पर हमले नहीं हुए, आजादी के बाद भी संघ को मुख्य धारा में आने से रोकने के लिए षड्यंत्र हुए। पूज्य गुरुजी को जेल तक भेजा गया।
जब वे बाहर आए तो उन्होंने कहा था- कभी कभी जीभ दांतों के नीचे आकर दब जाती है, कुचल जाती है लेकिन हम दांविभाजन की पीड़ा ने लाखों परिवारों को बेघर किया, स्वयं सेवक सबसे आगे खड़े थे। यह केवल राहत नहीं राष्ट्र की आत्मा को संबल देने का काम था। 1956 में अंजार के भूकंप में भी स्वयं सेवक राहत बचाव में जुटे थे। गुरुजी ने लिखा था- किसी दूसरे के दुख का दूर करने खुद कष्ट उठाना निस्वार्थ हृदय का परिचायक है-त नहीं तोड़ देते, क्योंकि दांत भी हमारे हैं जीभ भी हमारी है। जिन रास्तों में नदी बहती है,उसके किनारे बसे गांवों को सुजलां सुफलां बनाती है। वैसे ही संघ ने किया।
जिस तरह नदी कई धाराओं में अलग अलग क्षेत्र में पोषित करती है,संघ की हर धारा भी ऐसी ही है। समाज के कई क्षेत्रों में संघ लगाातार काम कर रहा है। संघ की एक धारा, बंटती तो गई, लेकिन उनमें कभी विरोधाभास पैदा नहीं हुआ, क्योंकि हर धारा का उद्देश्य, भाव एक ही है, राष्ट्र प्रथम।